सैटेलाइट्स के लिए बड़ा खतरा अंतरिक्ष में फैला कचरा

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
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पृथ्वी के ऑर्बिट में फैले अंतरिक्ष के कचरे ने खगोल वैज्ञानिकों के सामने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। यह वैज्ञानिकों के ऑब्जर्वेशन में बाधा डालने लगा है। साथ ही अंतरिक्ष में विचरते हमारे सैटेलाइट्स के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है। वर्तमान में 10 सेमी. से बड़े आकार का 50 हजार से अधिक कचरा पृथ्वी के ऑर्बिट में तैर रहा है। पृथ्वी के ऑर्बिट में फैला कचरा इंसानों की देन है। जब से अंतरिक्ष में मिशन यानी पृथ्वी की कक्षा में सैटेलाइट्स भेजने का मिशन शुरू हुआ, तभी से अंतरिक्ष में कचरे की समस्या भी उत्पन्न शुरू हो गई। अंतरिक्ष में भेजे गए सैटेलाइट के कार्य का निश्चित समय होता है और कुछ वर्षों के मियाद के बाद काम करना बंद कर देते हैं और बिना किसी काम का सैटेलाइट कचरा बन जाता है।

वर्ष 1957 में स्पुतनिक-1 के प्रक्षेपण किया गया था। इसके बाद पृथ्वी की कक्षा में हजारों की संख्या में कृत्रिम उपग्रह भेजे गए हैं, जिनमें अधिकांश निष्प्रयोज्य हो चुके हैं और अंतरिक्ष में तैर रहे हैं। अंतरिक्ष से कचरे की पहचान करने में यूरोपीय स्पेस एजेंसी विगत दो दशक से कार्य रही है और अभी तक 10 सेमी से बड़े आकार के 54 हजार से अधिक कचरे के टुकड़ों की पहचान की जा चुकी है और 1-10 सेमी के बीच की संख्या 1.2 मिलियन है। इनके अलावा 1 मिमी से छोटे कचरे की संख्या लाखों में पहुंच चुकी हैं।- बबलू चंद्रा, नैनीताल

दो हजार किमी के दायरे में फैला कचरा

इस कचरे में 70 प्रतिशत कचरा पृथ्वी के निचले ऑर्बिट में मौजूद है और दो हजार किमी के दायरे में फैला हुआ है। वर्ष 2009 में अमेरिकी सैटेलाइट इरिडियम-33 और रूसी कोस्मोस-2251 के बीच हुई टक्कर के कारण दोनों सैटेलाइट के टुकड़े-टुकड़े हो गए और हजारों की संख्या में कचरा फैल गया, जबकि गत वर्ष बोइंग द्वारा बनाए गए इंटेलसैट 33 उपग्रह के टूटने से पृथ्वी की कक्षा में काफी अंतरिक्ष कचरा फैल गया। इसके 20 नए टुकड़े अंतरिक्ष में फैल गए।

करना पड़ता है दोबारा अध्ययन

वैज्ञानिक कहते हैं कि कचरे के छोटे टुकड़े पृथ्वी की ओर आए, तो वह जलकर नष्ट हो जाते हैं, लेकिन ये नीचे आने की जगह निश्चित ऑर्बिट में घूमते रह जाते हैं और हमारे जीवित सैटेलाइट के लिए खतरा बन जाते हैं। साथ ही दूरबीनों से चांद, तारों समेत अन्य घटनाओं के ऑब्जर्वेशन के दौरान कचरा सामने आ जाने से खगोलीय अध्ययन में बाधा उत्पन्न कर जाता है। कई कई बार दोबारा से अध्ययन करना पड़ता है।

स्पेस एजेंसियां कर रहीं कचरा हटाने का काम

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार अंतरिक्ष का कचरा वैश्विक समस्या है और मुख्य रूप से सर्वाधिक जिम्मेदार भी विकसित देश हैं, जिन्होंने सबसे अधिक कचरा अंतरिक्ष में फैलाया है और यही देश कचरा हटाने के उपाय भी तलाश रहे हैं। इस दिशा में नासा ने सबसे पहले से ऑर्बिटल डेब्रिस प्रोग्राम नाम से मिशन शुरू किया था। इसके बाद रूस, यूरोप और चीन के साथ भारत भी कचरा हटाने के मिशन में जुट गया है।

एरीज भी उतरने जा रहा अंतरिक्ष में

एरीज के खगोल वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र यादव के अनुसार, इसमें दो राय नहीं कि पृथ्वी के नजदीक घूमते क्षुद्रग्रहों की संख्या हजारों में जा पहुंची है, जो धरती के लिए बड़ा खतरा हैं, लेकिन एक और खतरा सामने नजर आ रहा, जो अंतरिक्ष का कचरा है। यह कचरा निष्प्रयोज्य हो चुके यानी जिन कृत्रिम उपग्रहों ने काम करना बंद कर दिया है, वह हमारी कक्षा में घूम रहे हैं और आसमान में घूमते हमारे सैटेलाइट्स के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं। एरीज अंतरिक्ष में फैले इस कचरे की खोज का कार्य जल्द शुरू करने जा रहा है। इसके लिए एरीज पुरानी दूरबीनों को दुरुस्त कर रहा है। इस कार्य में सर्वप्रथम 14 इंच की दूरबीन की मदद ली जाएगी।