स्वदेशी उत्पाद अपनाएं
स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर सदैव से दिया जाता रहा है लेकिन बीत रहे साल की आखिरी मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश से स्वदेशी उत्पाद खरीदने का संकल्प लेने की अपील की है तो इसके मायने हैं। चीनी वस्तुओं ने पिछले काफी वक्त से बाजार में प्रभाव जमाया है। …
स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर सदैव से दिया जाता रहा है लेकिन बीत रहे साल की आखिरी मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश से स्वदेशी उत्पाद खरीदने का संकल्प लेने की अपील की है तो इसके मायने हैं। चीनी वस्तुओं ने पिछले काफी वक्त से बाजार में प्रभाव जमाया है। उनके आगे स्वदेशी वस्तुओं का महत्व कम हो गया। जाहिर है कि जब स्वदेशी उत्पादों की बिक्री घटेगी तो इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा ही।
इससे पहले भी प्रधानमंत्री देश के सरपंचों को संबोधित करते हुए कह चुके हैं कि कोरोना संकट से हमने पाया है कि हमें आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि कोरोना संकट के बाद भारत के लिए आत्मनिर्भरता और स्वदेशी जरूरी है।
महामारी के शुरू के दिनों में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि उद्योग को राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भरता बढ़ाने की भावना के साथ काम करना चाहिए। दरअसल, आत्मनिर्भरता और स्वदेशी के विचार को लेकर सरकार, सत्तारूढ़ दल बीजेपी और उनके वैचारिक संरक्षक आरएसएस एकमत दिखाई देते हैं। स्वदेशी उनकी विचारधारा का एक अहम उद्देश्य है और ऐसा लगता है कि कोरोना संकट ने इस उद्देश्य को हासिल करने का उन्हें एक अवसर दिया है।
अच्छी बात है कि सरकार लगातार स्वदेशी अपनाने पर जोर दे रही है। कोरोना की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए वोकल फॉर लोकल की अपील की थी। गिरती अर्थव्यवस्था का बड़ा कारण स्वदेशी उत्पाद को न अपनाना भी है। वैश्विक बाजार में यदि हम अपने उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित कर सके तो देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में बड़ा योगदान दे सकते हैं। यह भी सच है कि हम स्वदेशी उत्पादों के निर्माण में किसी भी अन्य देश से आगे निकल सकते हैं।
वजह यह है कि हमारे देश में संसाधनों की कोई कमी नहीं है। बेहतर संसाधनों के साथ स्किल भी है। अगर दोनों का उपयोग इच्छाशक्ति के साथ किया जाए तो हम किसी भी देश से कम साबित नहीं होंगे। बस, जरूरत मजबूत इरादों की है और स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने की। मगर यह भी तय है कि देश में स्वदेशी का पुराना मॉडल नहीं चलेगा, जो हमेशा से विदेशी निवेश के खिलाफ रहा है। हमें विदेशी कंपनियों से मुकाबला करने से घबराना नहीं चाहिए और न ही विदेशी निवेश को आकर्षित करने में कोई कमी करनी चाहिए।
