बरेली: कम लागत में अच्छा मुनाफा दिला रही ‘जल की रानी’

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महिपाल गंगवार, बरेली। जिले में मछली पालन किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लागू होने के बाद पर तो किसानों का रुझान तेजी से मछली पालन की ओर बढ़ रहा है। इसकी मुख्य वजह यह है एक हेक्टेयर खेत में गन्ना, धान व गेहूं की फसल से …

महिपाल गंगवार, बरेली। जिले में मछली पालन किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लागू होने के बाद पर तो किसानों का रुझान तेजी से मछली पालन की ओर बढ़ रहा है। इसकी मुख्य वजह यह है एक हेक्टेयर खेत में गन्ना, धान व गेहूं की फसल से किसानों को जहां अधिकतम सवा लाख रुपये तक का लाभ मिलता है वहीं, इतनी ही भूमि में मछली पालन करने से चार लाख रुपये की आय होने का दावा किया गया है।

जिले में मुख्य तौर पर धान, गेहूं व गन्ने की खेती की जाती है। कृषि क्षेत्र से जुड़े जानकार बताते हैं कि इन फसलों की खेती के बाद फिर उपज की बिक्री करने में किसानों को जिस प्रकार लगातार विभिन्न कठिनाइयों का सामना साल दर साल करना पड़ता है उससे ग्रामीणों का ध्यान अन्य विकल्पों की तरफ तेजी से जा रहा है। इस बार तो कोरोना काल में किसान पहले से परेशान हैं। विभागीय अफसरों का कहना है पिछले दो वर्षों में ग्रामीणों का मछली पालन की ओर तेजी से रुझान बढ़ा है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ पाकर किसान पारंपरिक खेती छोड़कर कम लागत में मछली पालन से अच्छी कमाई कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें बकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है। एक हेक्टेयर भूमि में गन्ना, गेहूं व धान की फसल में किसानों को एक से सवा लाख रुपये की सालाना आमदनी होती है। वहीं, इतनी ही भूमि में मछली पालन कर सालान आय चार लाख से अधिक की जा सकती है। जिले में मुख्य रूप से रोहू, सिल्वर, ग्रास, कामन, कतला और नरायन मछलियों का पालन होता है।

जहर पड़ने व रोग से बचाव के उपाय
तालाब में किसी भी तरह से जहर पड़ने पर ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। इससे मछलियां दम तोड़ना शुरू कर देती हैं। ऐसे में तत्काल पानी को बाहर निकालकर शुद्ध पानी भरें। बचाव के लिए ऑक्सीफ्लो नामक दवा का प्रयोग करें। इससे मछलियों को सांस लेने में आसानी होती है। वहीं, किसी प्रकार का रोग लगने पर मछली की पूंछ पीछे की तरफ से सड़ने पर तालाब में पोटेशियम या एक्वावेल्थ नामक दवा का छिड़काव करें। गुल्स नामक रोग के रोकथाम के लिए क्लीनर दवा का छिड़काव करें। सूखा रोग होने पर गंदे पानी को निकालकर ताजे पानी में हल्के चूने का छिड़काव करें।

25 दिन में बिक्री को तैयार हो जाते हैं बच्चे
जिले में सात हैचरी प्लांट हैं। यहां मछली का बच्चा पैदा करने के लिए मछली को वुडर प्लांट में रखा जाता है। एक घंटा ताजा पानी में आराम करने के बाद ग्लान नामक दवा को सुई के रूप में मछली को लगाया जाता है। इसके चार घंटे बाद फिर वही दवा दी जाती है। इसके छह घंटे बाद मछली अंडा देती है जिसे हैचरी प्लांट में रखा जाता है। 12 घंटे बाद अंडे से बच्चे निकलते हैं। 72 घंटे तक उनकी देखरेख के बाद मछली के बच्चे को भी तालाब में डाल दिया जाता है। 25 दिन के बाद ये बच्चे बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं जबकि हाईब्रिड की मछलियां लगभग पांच माह में ही बिक्री के लिए तैयार हो जाती हैं।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना बनी वरदान
मुख्य कार्यकारी अधिकारी सोमपाल गंगवार के मुताबिक, मत्स्य पालकों की आमदनी बढ़ाने को प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना वरदान साबित हो रही है। योजना के तहत मत्स्य पालक, मछली बेचने वाले, स्वयं सहायता समूह, मत्स्य उद्यमी, फिश फार्मर आदि के लिए 70 से अधिक आवेदन आ चुके हैं। पिछले दो सालों से इस तरफ मत्स्य पालकों का रुझान तेजी से बढ़ा है। इतना ही नहीं सरकार ने इस योजना को केसीसी से जोड़ा है ताकि तालाब में मछलियों के लिए पानी छोड़ने, दाना आदि की व्यवस्था के लिए मत्स्य पालकों को दिक्कत का सामना न करना पड़े।

योजना के तहत योजना के तहत सामान्य वर्ग के लोगों की कुल इकाई लागत का अधिकतम 40 प्रतिशत और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला लाभार्थियों को अधिकतम 60 प्रतिशत अनुदान राशि डीबीटी के माध्यम से दिया जाएगा। इसमें सामान्य वर्ग के 60 प्रतिशत अंश और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला लाभार्थियों को 40 प्रतिशत अंश खुद से या फिर किसी बैंक से लोन लेकर देना होगा।

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