लखीमपुर खीरी: दुधवा में गैंडों के कुनबे में बढ़े दो नन्हें मेहमान

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पलियाकलां/ लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। अकूत वन संपदा से परिपूर्ण एवं अनुपम नैसर्गिक छटा वाला दुधवा टाइगर रिजर्व जहां स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघ, तेंदुआ, हाथी, भेड़िया, बारहसिंघा, भालू ,चीतल , पाढ़ा, जैसे वन्य जंतुओं के लिए सर्वत्र जाना जाता है, वहीं पूरे विश्व में अत्यंत कम संख्या में शेष बचे एक सींग वाले गैंडों …

पलियाकलां/ लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। अकूत वन संपदा से परिपूर्ण एवं अनुपम नैसर्गिक छटा वाला दुधवा टाइगर रिजर्व जहां स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघ, तेंदुआ, हाथी, भेड़िया, बारहसिंघा, भालू ,चीतल , पाढ़ा, जैसे वन्य जंतुओं के लिए सर्वत्र जाना जाता है, वहीं पूरे विश्व में अत्यंत कम संख्या में शेष बचे एक सींग वाले गैंडों के लिए भी विख्यात है। दुधवा में चलाई जा रही गैंडा परियोजना कई नुकसान उठाने के बाद सही रास्ते पर बढ़ निकली है। यही कारण है कि यहां एक सींग वाले गैंडों की संख्या बढ़कर 44 हो गई है।

ज्ञात हो कि दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में चलाई जा रही गैंडा परियोजनाओं की सफलता के पीछे यहां के जानकार, वन्य जंतु प्रेमी पार्क अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कड़ी मेहनत और देखभाल तो रही ही है साथ ही यहां पाया जाने वाला नैसर्गिक वातावरण और करीब 14 प्रकार की प्राकृतिक रूप से उत्पन्न घास एवं झाड़ियां भी हैं, जिसे गैंडे बहुत ही रूचि पूर्वक चरते हैं। यहां के तालाबों और पोखरों आदि में भरे जल को पीकर मजे से जल क्रीड़ा भी करते हैं।

ऐतिहासिक तथ्यों के पन्ने पलटने पर पाया गया कि यहां करीब 200 वर्ष पूर्व भी गैंडे यहां रहते थे। इस बात के प्रमाण प्राप्त होते ही दुधवा के तत्कालीन अधिकारी एवं पर्यावरणविद् दुधवा में परियोजना चलाकर गैंडों को संरक्षित करने में लग गए। इसके बाद दिल्ली में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में लिए गए निर्णय के बाद 1 अप्रैल 1984 को असम के नवगांव जिले के वन क्षेत्रों से 5 गैंडे दुधवा राष्ट्रीय उद्यान लाये गये।

दुधवा के सोनारीपुर रेंज अंतर्गत सलूकापुर क्षेत्र के ककरहा मैदान के 27 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को बैटरी संचालित विद्युत धारा प्रवाहित तारों से घेरकर गैंडों को पुनर्वासित किया गया। 1985 में नेपाल के चितवन पार्क से भी 4 गैंडे यहां पहुंचाए गए। इनमें कई की मृत्यु हो जाने के बावजूद भी संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसा लगता है कि गैंडों को अपने पुरखों की भूमि जंच गई है।

दुधवा टाइगर रिजर्व में अब सलूकापूर परिक्षेत्र के अतिरिक्त बेलराया रेंज के छंगा नाला परिक्षेत्र में 14 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को घेरकर दूसरी फेस टू गैंडा परियोजना संचालित की गई है जिसमें तीन मादा गैंडा, एक नर और अब दो गैंडा शिशु स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं जिन की लगातार मॉनीटरिंग की जा रही है। दुधवा टाइगर रिजर्व प्रशासन ने इसके लिए पर्याप्त वन कर्मचारियों को तैनात कर रखा है, जो गैंडों की प्रत्येक नैत्यिक दिनचर्या एवं गतिविधियों जैसे उनके घूमने-फिरने ,चरने, खाने, जल क्रीड़ा करने से लेकर केलि करने, मल त्यागने तथा विश्राम करने तक पर लगातार नजर बनाए हुए हैं।

दुधवा टाइगर रिजर्व के मुख्य वन संरक्षक एवं फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक कहते हैं कि दुधवा का प्राकृतिक वातावरण पूरी तरह से गैंडों के माफिक बैठता है। यहां उन्हें पर्याप्त रूप से खाने के लिए रुचिकर घासें, जल-क्रीड़ा करने को विशाल जलाशय एवं स्वच्छंद विचरण करने को पर्याप्त एवं सुरक्षित क्रीड़ांगन मिलता है। इसीलिए यहां चलाई जा रहीं गैंडा परियोजना निरंतर अच्छा परिणाम दे रही हैं। गैंडा पुनर्वासन योजना फेज टू में दो मादा गैंडों कल्पना और रोहिणी ने एक-एक शावक को जन्म दिया है।

शावक के समर्थ होने तक जिम्मेदारी निभाती है मादा गैंडा
प्रायः ऐसा देखा गया है कि एक मादा गैंडा को गर्भधारण करने के बाद लगभग 16 महीने का समय बच्चे को जन्म देने में लग जाता है। कुछ माह तक यह शावक अपनी मां का केवल दुग्ध पान कर जीवन यापन करता है और उसके बाद यह उस क्षेत्र में उगी हुई कोमल घासों को तुनक कर अपना उदर पोषण करने में समर्थ हो जाता है। जंगल में उगी हुई इनके खाने योग्य कोमल वनस्पतियां इनके आहार का स्रोत बनती हैं। जब तक बच्चा सुपुष्ट, समर्थ एवं शत्रुओं का सामना करने लायक नहीं बन जाता, तब तक बच्चे का पालन-पोषण एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी मादा गैंडा स्वयं निभाती है।

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