बरेली: कोरोना ने खराब किए फेफड़े, ट्रांसप्लांट ही बचा सकती है जिंदगी

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बरेली, अमृत विचार। कोरोना वायरस ने कई मरीजों के फेफड़े इस कदर खराब कर दिए हैं कि अब उनके सामने ट्रांसप्लांट का ही विकल्प बचा है। पोस्ट कोविड का उपचार करा रहे मरीजों से भी निजी अस्पतालों के डॉक्टरों ने लंग्स ट्रांसप्लांट कराने की बात कह दी है। एक-दो महीने से ये मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट …

बरेली, अमृत विचार। कोरोना वायरस ने कई मरीजों के फेफड़े इस कदर खराब कर दिए हैं कि अब उनके सामने ट्रांसप्लांट का ही विकल्प बचा है। पोस्ट कोविड का उपचार करा रहे मरीजों से भी निजी अस्पतालों के डॉक्टरों ने लंग्स ट्रांसप्लांट कराने की बात कह दी है। एक-दो महीने से ये मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। काफी महंगा इलाज होने से फेफड़े का प्रत्यारोपण कराना मुश्किल होता है। जबकि गंभीर संक्रमण झेल रहे दस से ज्यादा मरीज मेडिकल कॉलेजों में इलाज करा रहे हैं।

कोरोना वायरस का कहर कई परिवारों पर टूटा है। अब भले ही दूसरी लहर थम चुकी हो, मगर संक्रमण की चपेट में आ चुके कई मरीजों पर अब भी खतरा बना है। दरअसल संक्रमण से मुक्त होने के बाद इन मरीजों पर पोस्ट कोविड डिजीज काफी भारी पड़ गई है। कुछ मरीजों के फेफड़े लगभग पूरी तरह से खराब हो गए हैं।

इन मरीजों को हाई फ्लो ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। डॉक्टरों ने बताया कि तीन महीने तक ऑक्सीजन पर रहते हुए जितने फेफड़े ठीक होने होते हैं, हो जाते हैं। कई मरीजों का ऑक्सीजन पर रहते हुए दो महीने से भी ज्यादा हो गया है। ऐसे में डॉक्टरों को फेफड़ों में सुधार की गुंजाइश न के बराबर है।

इस कारण चार मरीजों को लंग्स ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक तरफ का लंग्स ट्रांसप्लांट कराने में 30-35 लाख और दोनों तरफ का कराने में 70 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक का खर्च आ सकता है। ऐसे में हर कोई प्रत्यारोपण नहीं करा सकता है। डाक्टरों के अनुसार हार्ट ट्रांसप्लांट की तरह ही फेफड़े का प्रत्यारोपण भी किसी मृत डोनर द्वारा दान किए गए अंग से ही संभव है। हालांकि मरने के बाद फेफड़े दान करने वालों की भारी कमी है।

केस-1
52 वर्षीय एक डाक्टर 17 मई को बुखार और सांस लेने मेंपरेशानी होने पर मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए। उनकी आरटीपीसीआर रिपोर्ट पॉजिटिव आई। वे पहले से ही हाइपरटेंशन और कोरोनरी आर्टरी डिजीज से ग्रसित रहे हैं। लगातार एक्सरे जांच में पता चला कि उन्हें निमोनिया हो गया है। दो महीने के बाद भी वो वाईपैप मशीन पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं। वे लंग्स फाइब्रोसिस से पीड़ित हैं और फेफड़े भी पूरी तरह से खराब हैं।

केस-2
17 अप्रैल को कर्मचारी नगर की 50 साल की महिला मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुई। वह कोरोना पॉजिटिव थी और सीटी स्कैन कराने पर स्कोर 40 में 28 आया। भर्ती के दौरान उनका ऑक्सीजन लेवल 80 प्रतिशत था। उन्हें 15 लीटर ऑकसीजन सपोर्ट पर रखा गया पर ऑक्सीजन की मांग बढ़ती गई। एक्सरे में पता चला कि उनके फेफड़े बुरी तरह खराब हो चुके हैं। इसके चलते दो महीने बाद भी महिला ऑक्सीजन सपोर्ट पर है।

केस-3
सांस लेने में दिक्कत होने पर सिविल लाइंस निवासी 45 साल की महिला 9 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुई, तब ऑक्सीजन लेवल 72 प्रतिशत था। जांच कराने पर सीटी स्कोर 40 में 34 आया। तुरंत ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया। सात दिनों के बाद महिला को हाई फ्लो ऑक्सीजन मशीन पर रखना पड़ गया। 11 जून को फिर से सीटी स्कैन कराया गया तो स्कोर 40 में 37 पहुंच गया। अभी महिला ऑक्सीजन सपोर्ट पर है और फेफड़े खराब हो चुके हैं।

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