गुरु गोबिंद सिंह की जयंती आज, पढ़ें गुरु के अनमोल और प्रेरणादायक विचार…जो बदल देंगे अपकी जिदंगी

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Guru Gobind Singh Jayanti 2022 : गुरु गोबिंद सिंह की आज जयंती है। इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह सिखों के 10वें गुरु हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह की सप्तमी तिथि पर गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जाती है। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार …

Guru Gobind Singh Jayanti 2022 : गुरु गोबिंद सिंह की आज जयंती है। इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह सिखों के 10वें गुरु हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह की सप्तमी तिथि पर गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जाती है। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना में हुआ था। इन्हें बचपन में गोबिंद राय के नाम से पुकारा जाता था। इनके पिता सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, जिसे सिख धर्म में प्रमुख माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही वाहे गुरु की फतेह, वाहे गुरु का खालसा का नारा दिया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया था। गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

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9 वर्ष की आयु में संभाली जिम्मेदारी
मुगल शासक औरंगजेब ने इनके पिता गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म कबूल करने मजूबर किया था। लेकिन, वह मुगलों के आगे नहीं झुके और इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार दिया। तब औरंगजेब ने नवंबर 1675 में इनका सिर कलम कर दिया था। तब गुरु गोबिंद सिंह को मात्र 9 वर्ष की आयु में सिख धर्म के 10वें गुरु पर आसीन हुए।

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गुरु गोबिंद सिंह के अनमोल विचार
जब बाकी तरीके विफल हो जाएं
तो हाथ में तलवार उठाना सही है।

अगर आप सिर्फ भविष्य की सोचते हैं
तो वर्तमान को भी खो देंगे।

वह व्यक्ति हमेशा खुद को अकेला पता है
जो लोगों के लिए जुबान पर कुछ और
दिल में कुछ और ही रखता है।

परमपिता परमेश्वर के नाम के अलावा कोई भी आपका मित्र नहीं है
ईश्वर के सेवक इसी का चिंतन करते है
और ईश्वर को ही देखते है।

बिना गुरु के किसी को भगवान की प्राप्ति नही होती है।

जो लोग सच्चाई के मार्ग का अनुसरण करते है
और लोगों के प्रति दया का भाव रखते है
ऐसे लोगो के प्रति ही लोग करुणा और प्रेम का भाव रखते है।

यदि तुम असहाय और कमजोरों पर तलवार उठाते हो
तो एक दिन ईश्वर भी आपके ऊपर अपना तलवार चलायेंगा।

स्वार्थ ही बुरे कर्मो के जन्म का कारण बनता है।

आपने ब्रह्माण्ड की रचना की, आप ही सुख-दुःख के दाता हैं।

हे ईश्वर मुझे आशीर्वाद दें कि मैं कभी अच्छे कर्म करने में संकोच ना करूं।

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गुरु गोबिंद सिंह के प्रेरणादायक विचार

बचन करकै पालना: अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसे हर कीमत में निभाना होगा।

किसी दि निंदा, अतै इर्खा नै करना : किसी की चुगली व निंदा करने से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम करने में फायदा है।

कम करन विच दरीदार नहीं करना : काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें।

गुरुबानी कंठ करनी : गुरुबानी को कंठस्थ कर लें।

दसवंड देना : अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें।

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गुरु गोबिंद सिंह जयंती का महत्व
गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा थे। वह कविता और दर्शन और लेखन के प्रति अपने झुकाव के लिए जाने जाते थे। उसने मुगल आक्रमणकारियों को जवाब देने से इनकार कर दिया और अपने लोगों की रक्षा के लिए खालसा के साथ लड़ाई लड़ी। उनके मार्गदर्शन में उनके अनुयायियों ने एक सख्त संहिता का पालन किया। उनके दर्शन, लेखन और कविता आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाने के लिए दुनिया भर के सिख गुरुद्वारों में जाते हैं, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी के सम्मान में प्रार्थना सभाएं होती हैं। लोग गुरुद्वारों द्वारा आयोजित जुलूसों में भाग लेते हैं, कीर्तन करते हैं और समुदाय के लिए सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सेवा भी करते हैं।

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औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का शीश कर दिया था कलम
सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी ऐसे साहसी योद्धा थे, जिन्होंने खुशी खुशी अपनी जान दे दी। लेकिन, इस्लाम कबूल नहीं किया। इन्होंने न सिर्फ सिक्खी परचम ऊंचा किया, बल्कि अपने सर्वोच्च बलिदान से सिख पंथ की भी रक्षा की। उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म कबूल नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी हिम्मत से सामना किया। गुरु तेग बहादुर जी के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और वह 24 नवंबर 1675 का दिन था, जब गुरु तेग बहादुर जी ने देश धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। उनके अनुयाइयों ने उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा बनाया, जिसे आज गुरुद्वारा शीश गंज साहेब के तौर पर जाना जाता है।

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गुरुजी की पांच शिक्षाएं
महान कार्य छोटे-छोटे कार्यों से बने होते हैं।
सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती, इनमें जो मायने रखता है वो है साहस।
सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।
दिलेरी डर की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि यह फैसला है कि डर से भी जरूरी कुछ है।
जीवन किसी के साहस के अनुपात में सिमटता या विस्तृत होता है।