साल 1980 में मुरादाबाद आये थे बिरजू महाराज
आशुतोष मिश्र, मुरादाबाद, अमृत विचार। पद्म विभूषण बृजमोहन मिश्र उर्फ बिरजू महाराज के प्रयाण से कत्थक की गलियां स्तब्ध हैं। क्योंकि, अब लखनऊ घराने के दादरा व ठुमरी के बोल उदास हो गए। सोमवार को दिल्ली में उपचार के दौरान शास्त्रीय नृत्य का वैश्विक किरदार विदा हो गया। यह मनहूस बात आम होते ही यहां …
आशुतोष मिश्र, मुरादाबाद, अमृत विचार। पद्म विभूषण बृजमोहन मिश्र उर्फ बिरजू महाराज के प्रयाण से कत्थक की गलियां स्तब्ध हैं। क्योंकि, अब लखनऊ घराने के दादरा व ठुमरी के बोल उदास हो गए। सोमवार को दिल्ली में उपचार के दौरान शास्त्रीय नृत्य का वैश्विक किरदार विदा हो गया। यह मनहूस बात आम होते ही यहां की संगीतिक गलियों में खामोशी सी छा गयी। बिरजू महाराज के निधन ने कत्थक की दीक्षा देने वाले संस्थानों को अवाक कर दिया। शहर में वह नृत्य प्रवीणा रुक्मिणी खन्ना के घर ठहरे थे।
बात वर्ष 1980 की है। बिरजू महाराज दिल्ली में आयोजित कत्थक प्रस्तुति के आयोजन में हिस्सा लेने जा रहे थे, फिर उन्हें शहर के सांगीतिक घराने से रिश्ते की याद आ गई। वह मंडी चौक पहुंचे। तब यहां कन्या संगीत महाविद्यालय संचालित था। रुक्मिणी के निर्देशन में संचालित महाविद्यालय में बजनेवाले तबले की थाप और घुघुरुंओं के स्वर बरबस संगीत के चाहने वालों को अपनी ओर खींच लेते थे। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा का बड़ा केंद्र मंडी चौक का महाविद्यालय था।
अमृत विचार से बातचीत में वयोवृद्ध नृत्यांगना और शास्त्रीय संगीत प्रवीणा रुक्मिणी खन्ना बिरजू महाराज की समितियों में खो जाती हैं। कहती हैं कि उनसे मेरा रागात्मक संबंध था। हमने प्रयागराज से संगीत की शिक्षा ली। बिरजू महराज के ससुर श्रीचंद्रजी महाराज ने हमने नृत्य सीखा। संगीत की परीक्षक के रूप में प्रयाग जाने के दौरान हमने श्रीचंद्र महाराज को गुरु बना लिया। श्रीचंद्र जी महाराज से मेरे रिश्ते की गांठ मजबूत करने के लिए बिरजू महाराज मेरे घर आए। छह से सात घंटे ठहरे। उनके साथ कई शिष्य थे। उनकी ठुमरी, हाथों के इशारे से वाद्य यंत्रों के चित्र खींचने, नाचने के भाव अद्भुत रहे। उनमें लखनऊ घराने की तालीम थी।
रुक्मिणी कहती हैं कि वह हंसाने के उपक्रम थे। गीत- संगीत और नृत्य उनके रगों में बसा था। चाचा शंभू जी महाराज और पिताजी रामपुर घराने की बड़े संगीतज्ञ थे। बताती हैं कि उन्होंने तबले के बोल का भाव सुनाया। आज सखी एक बात कहूं… कवित्त का राग छेढ़कर मंत्र मुग्ध कर दिया। हाथ से ताली और संगीत वाद्य यंत्रों के 16 मात्राओं के बोल निकाले। वह नृत्य निर्देशक थे। कुछ घंटों का बिरजू महाराज का मेरे घर रुकना मेरे जीवन और नृत्य की साधना में रोमांच भर गया। सचमुच वह ठुमरी, दादरा और मनमोहक शास्त्रीय संगीत के विश्वविद्यालय थे।
अपनी साधना से भारतीय संगीत का नाम पूरे विश्व में फैलाया। जितने अच्छे वह नर्तक थे उतने ही अच्छे गायक व वादक भी। ठुमरी और दादरा के वह श्रेष्ठ गायक थे। पद्मभूषण पंडित बिरजू महाराज का पूरा जीवन संगीत के लिए समर्पित रहा। उन्होंने फिल्मी दुनिया में भी अपना विशिष्ट छाप छोड़ी। रुपहले पर्दे की धकधक गर्ल माधुरी दीक्षित के नृत्य का निर्देशन किया। उनकी दिल तो पागल है और देवदास फिल्म पसंद की गयी। सत्यजीत-रे द्वारा निर्देशित शतरंज के खिलाड़ी में संगीत और नृत्य पक्ष में उनका बड़ा योगदान रहा। उनके निधन से न केवल संगीतज्ञ वरन पूरा भारतीय समाज दुखी है। –डॉ. प्रदीप शर्मा, महामंत्री (आदर्श कला संगम)
