13 किमी का है इस बुग्याल का ट्रैक और फिर मखमली घास का मैदान… रोमांचकारी है ये सफर

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अगर आप रोमांच, आत्मिक शांति और अपार ऊर्जा के सफर में जाने के इच्छा रखते हैं तो बेदिनी बुग्याल का सफर आपका इंतजार कर रहा है। देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में है सबसे बड़ा बुग्याल है बेदिनी बुग्याल। बेदिनी बुग्याल वाण गांव के पास, रूपकुंड के रास्ते पर पड़ता है। त्रिशूल और नंदा चोटियां …

अगर आप रोमांच, आत्मिक शांति और अपार ऊर्जा के सफर में जाने के इच्छा रखते हैं तो बेदिनी बुग्याल का सफर आपका इंतजार कर रहा है। देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में है सबसे बड़ा बुग्याल है बेदिनी बुग्याल। बेदिनी बुग्याल वाण गांव के पास, रूपकुंड के रास्ते पर पड़ता है। त्रिशूल और नंदा चोटियां यहां से स्पष्ट दिखाई देती हैं, यह बुग्याल अपनी खूबसूरती के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है। हरे-भरे चारागाह इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। अप्रैल मई के बाद सितंबर तक यहां अनेक प्रकार के फूल खिले रहते हैं जिससे सैलानियों का मन इस ओर स्वतः ही आकर्षित हो जाता है।

बेदिनी बुग्याल पर पहुंचे ट्रेकर्स। (फाइल फोटो)

कैल नदी के किनारे बसे वाण गांव से बेदिनी बुग्याल के लिए 13 किमी का कठिन चढ़ाई वाला पहाड़ी रास्ता शुरू होता है। यहां देवदार, बांज, बुरांश आदि का घना जंगल है। वाण से बेदिनी का रास्ता इसी घने जंगल से होकर गुजरता है। इस रास्ते पर करीब चार किमी चलने पर अंतिम गांव रणकाधार मिलता है। रणकाधार के बाद कोई भी आबादी नहीं है। थोड़ा आगे चलने पर कैल गंगा नदी मिलती है। बेदिनी बुग्याल से छह किमी पहले गैरोली पातल में जरूर पानी मिलता है।

बेदिनी बुग्याल में घास के अलावा कई प्रजातियों के छोटे जंगली फूल और जड़ी-बूटियां भी पाए जाते हैं। बेदिनी बुग्याल से चौकम्भा, नीलकंठ, बंदरपूंछ का मनमोहक नजारा दिखाई देता है। मार्च से अक्टूबर तक का समय यहां पहुंचने के लिए खास है। इसके बाद यहां बर्फ पड़नी शुरू हो जाती है। पहले यहां रुकने के लिए वन विभाग के हट्स और स्थानीय लोगों के टेंट हुआ करते था। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इस पर रोक लगा दी गई है। अब गैरोली पातल में रुकने की व्यवस्था की जाती है।

बेदिनी बुग्याल में लगे टेंट।

क्या होते हैं बुग्याल
उत्तराखण्ड के गढ़वाल हिमालय में हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिंबर रेखा (यानी पेडों की पंक्तियां) समाप्त हो जाती हैं, वहां से हरे मखमली घास के मैदान आरम्भ होने लगते हैं। आमतौर पर ये आठ से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।

बेदिनी कुंड में होता है पित्रों का तर्पण
करीब 15 किमी दायरे में फैला वेदनी बुग्याल पर्यटकों की पहली पसंद होने के अलावा धार्मिक आस्था का केंद्र भी है। लोग वेदनी बुग्याल आकर वेदनी कुंड में अपने पित्रों को तर्पण देते हैं। बुग्याल के रखरखाव की जिम्मेदारी वन विभाग के पास है।

बेदिनी बुग्याल में बसा फूलों का खूबसूरत संसार।

कैसे पहुंचे बेदिनी बुग्याल
बेदिनी बुग्याल जाने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, कर्णप्रयाग, थराली, देवाल, लोहाजंग, वाण होते हुए जाया जा सकता है। दूसरा रास्ता हल्द्वानी, कौसानी, ग्वालदम, देवाल, लोहाजंग होते हुए वाण तक का है। दुर्गम गांव वाण के बाद 13 किमी का पैदल ट्रैक बेदिनी बुग्याल के लिए जाता है।

13 किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद बेदिनी बुग्याल में मखमली घास के समतल मैदान के दीदार होते हैं। समुद्र तल से बेदिनी बुग्याल की ऊंचाई करीब 11,000 फीट है। यहां एक पौराणिक नंदा देवी मंदिर भी है। पत्थर से बना यह मंदिर एक प्राकृतिक कुंड के किनारे बना है जिसे बेदिनी कुंड कहा जाता है।वाण से 10 किमी पहले लोहाजंग से भी एक पैदल रास्ता आली बुग्याल होते हुए बेदिनी बुग्याल तक जाता है। हल्द्वानी से वाण की दूरी करीब 230 किमी है।

बेदिनी बुग्याल आने का ये है सही समय
देवभूमि उत्तराखंड की पहाड़ी चोटियां अधिकांश समय बर्फ से ढकी रहती हैं। सर्दियों के मौसम में यहां रास्तों पर कई फुट बर्फ जम जाती है। फरवरी- मार्च के महीने से बर्फ पिघलनी शुरू होती है। गर्मी के दिनों में भी यहां दिन में मौसम सुहावना रहता है, जबकि रात के समय ठिठुरन बढ़ जाती है। यहां आने का सही समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर का महीना है। ऐसे में अगर आप भी बेदिनी बुग्याल आना चाहते हैं तो समय का जरूर ख्याल रखें।

हरे भरे पेड़ों के बीच बेदिनी बुग्याल में मनोहारी घास का मैदान।

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