देवी-देवताओं को प्रिय है यह रहस्यमयी फूल, ऊंची हिमालयी पहाड़ियों में मिलता है, औषधीय गुणों से है भरपूर

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देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवों का वास है। अटूट आस्था के केंद्र देव मंदिरों में रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु और पर्यटक दर्शन को पहुंचते हैं। कोई प्रसाद तो कोई पुष्प अर्पित कर देवताओं के समक्ष अपनी आस्था प्रकट करता है। ऐसा ही एक दिव्य फूल है जो ऊंचे कैलास में खिलता है। कहा जाता है …

देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवों का वास है। अटूट आस्था के केंद्र देव मंदिरों में रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु और पर्यटक दर्शन को पहुंचते हैं। कोई प्रसाद तो कोई पुष्प अर्पित कर देवताओं के समक्ष अपनी आस्था प्रकट करता है। ऐसा ही एक दिव्य फूल है जो ऊंचे कैलास में खिलता है।

कहा जाता है कि यह दिव्य पुष्प हिमालय के देवी-देवताओं का प्रिय फूल है। इसे मासी, रैमासी, जटामासी के नाम से जाना जाता है। हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का मानना है कि मासी का यह सुगंधित पुष्प देवों के देव महादेव को भी भाता है। अल्पाइन हिमालय में तीन हजार मीटर से पांच हजार मीटर की ऊंचाई में पाया जाने वाला यह फूल उत्तराखंड के अलावा सिक्किम और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में भी खूब होता है।

मासी का फूल और जड़।

औषधीय गुणों की खान है मासी का फूल
औषधीय गुणों से भरपूर मासी का पुष्प मध्य हिमालय में नहीं पाया जाता लेकिन इसकी सुगंधित जड़ें बुग्यालों से लाई जाती रही हैं। सुगन्धित जड़ों और पत्तियों को मिलाकर इसकी धूप बनाई जाती है। मासी पुष्प का वैज्ञानिक नाम नारदोस्तचिस जटामासी है।

मासी के पौधे की गुणकारी जड़।

मासी के पुष्प का उपयोग आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। जानकारों के अनुसार, हिस्टीरिया और मिर्गी के इलाज के लिए मासी के पुष्प का उपयोग किया जाता है। मासी के पौधे की जड़ को चिकित्सकीय रूप से अनिद्रा, रक्त संचार और मानसिक विकारों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चिकित्सकीय उपयोग के अलावा मासी के पुष्प का उपयोग इत्र बनाने के लिए भी किया जाता रहा है।

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