रायबरेली: मनोरंजन और सैर-सपाटे की जगह बनकर रह गया इंदिरा गांधी स्मारक उद्यान
रायबरेली। जिले में वनस्पति विज्ञान की देश की पहली खुली प्रयोगशाला बनाने का सपना अधूरा रह गया। बजट के अभाव में आधी अधूरी रह गई यह परियोजना महज सैर सपाटा और मनोरंजन का पाक बनकर रह गया। अपनी मां स्वर्गीय इंदिरा गांधी की याद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने रायबरेली में देश का सबसे …
रायबरेली। जिले में वनस्पति विज्ञान की देश की पहली खुली प्रयोगशाला बनाने का सपना अधूरा रह गया। बजट के अभाव में आधी अधूरी रह गई यह परियोजना महज सैर सपाटा और मनोरंजन का पाक बनकर रह गया।
अपनी मां स्वर्गीय इंदिरा गांधी की याद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने रायबरेली में देश का सबसे बड़ा वानस्पतिक उद्यान स्थापित करने का सपना देखा था। वर्ष 1988 में उसे मूर्त रूप देना भी शुरू किया, लेकिन उनकी हत्या के बाद ही उद्यान की कहानी का पटाक्षेप हो गया। उस समय महज 20 फ़ीसदी काम पूरा हुआ था। उसे ही अंतिम रूप देकर परियोजना का द एंड कर दिया गया।

इस उद्यान को लेकर वनस्पति विज्ञानियों में बड़ा उत्साह था क्योंकि इसे वनस्पति विज्ञान की खुली प्रयोगशाला के तौर पर स्थापित करने की कवायद शुरू हुई थी। परंतु वह सपना पूरा नहीं हो सका और यह उद्यान मनोरंजन और सैर सपाटे तक ही सीमित होकर रह गया।
वर्ष 2004 में सोनिया गांधी के यहां से सांसद बनने के बाद उम्मीदें जगी थी कि वह अपने पति के सपने को पूरा करेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस उद्यान का स्वरूप सैर सपाटा तथा मनोरंजन के पार्क के रूप में ही बना रहा। प्रकरण में प्रभागीय वन अधिकारी का कहना है कि बजट के अभाव में परियोजना का काम पूरा नहीं हो पाया। उनके पूर्व के अधिकारियों ने भी काफी लिखा पढ़ी की थी लेकिन बजट नहीं मिला।
क्या थी इंदिरा उद्यान की प्रस्तावित परियोजना
इंदिरा उद्यान को शहर से सटाकर सई नदी के किनारे 57.105 हेक्टेयर में बनना था। अभी तक मात्र 16.092 हेक्टेयर भूमि अर्जित हो पाई। हालांकि 10 हेक्टेयर में ही उद्यान विकसित हो पाया है। शेष 41.013 हेक्टेयर भूमि अर्जित करने का प्रस्ताव शासन में पड़ा धूल खा रहा है। इस उद्यान में बगीचे पौधशालाए शिक्षा अनुसंधान एवं प्रदर्शनी के लिए ऐसी-ऐसी वानस्पतिक प्रजातियों और साहित्य का संकलन होना था जो भारत में अन्य कहीं नहीं हैं।
उद्देश्य था कि पर्यावरण के संतुलन में वनस्पतियों के योगदान की बाबत लोगों को जागरूक करना। वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थियों के शोध के लिए उचित वातावरण बनाना था। विश्व के अनेक देशों की वनस्पतियों का यहां संकलन होना था। अनुसंधान और अध्ययनरत लोगों के लिए खुली प्रयोगशाला की स्थापना करना, भू-भौतिकी, वानस्पतिक एवं पेलियो बाटनी के अध्ययन संरक्षण एवं उसका विकास करना मकसद था।
उस समय इसका अनुमानित बजट 5.61 करोड रुपए था। शासन ने 27 अक्टूबर 1987 को प्रोजेक्ट निरूपण समिति बनाई थी इसमें फिरोज गांधी कालेज के वनस्पति विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट पीएस पांडे, चीफ टाउन प्लानर जेपी भार्गव, बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सेवानिवृत्त निदेशक एससी जैन, बॉटनिकल गार्डन रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रतिनिधि एससी शर्मा और तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक अवध क्षेत्र केएन सिंह थे।
इन लोगों ने कड़ी मेहनत करके उद्यान का प्रभावशाली और अनूठा खाका खींचा था। 22 नवंबर 1988 को राजीव गांधी ने परियोजना का शुभारंभ किया था, जिससे काम वहां शुरू हुए। उनकी हत्या के बाद धन अभाव के चलते आगे के काम रुक गए।
इंदिरा उद्यान में नियुक्त होना था 73 लोगों का स्टाफ
इंदिरा गांधी बॉटनिकल गार्डन में 73 लोगों का स्टाफ नियुक्त होना था। उनमें निदेशक, उपनिदेशक, सहायक निदेशक, दो जूनियर साइंटिस्ट बॉटनी, दो हॉर्टिकल्चर वैज्ञानिकों सहित कई विशेषज्ञ शामिल थे। परंतु परियोजना में अवरोध लग जाने से यह वह नहीं बन पाया जो इसे बनना था। अब इसके रखरखाव की जिम्मेदारी वन विभाग के पास है। वन विभाग अपने सीमित संसाधनों से किसी प्रकार इसकी खूबसूरती को बचाए हुए है। अक्सर बजट की कमी के चलते इस उद्यान को बचाए रखने में परेशानी का सामना भी करना पड़ता है।
धन के अभाव में किसान को वापस करनी पड़ी जमीन
इंदिरा उद्यान परियोजना पर धन का अभाव इस कदर हावी रहा कि कई किसानों को अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा तक नहीं दिया जा सका। नतीजतन वह भूमि ना तो कब्जे में ली गई और जो भूमि कब्जे में ली गई उसे वापस भी करना पड़ा। मुआवजा न मिलने पर किसान जाहिद रजा खां ने अपनी एक हेक्टेयर जमीन उद्यान से वापस ले ली। प्रकरण में न्यायालय का आदेश था नतीजतन बाउंड्री तोड़ी गई और उसकी जमीन उसे वापस कर दी गई। इस चक्कर में उद्यान की गुलाब वाटिका का सत्यानाश जरूर हो गया।
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