मुरादाबाद : सूचना के अधिकार ने थाम दिए पुलिस के हाथ, पीआर सेल अलर्ट

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मुरादाबाद, अमृत विचार। आरटीआई का पेच यहां पुलिस के सिर दर्द बन गया है। छह माह पहले फोटो को लेकर पूछे गए सवाल ने पुलिस के हाथ बांध दिए। सीधा जवाब देने की बजाय पुलिस से बचने के लिए जुबान ही सिल ली है। विभिन्न मामलों में वांछित लोगों की धरपकड़ के बाद भी पुलिस …

मुरादाबाद, अमृत विचार। आरटीआई का पेच यहां पुलिस के सिर दर्द बन गया है। छह माह पहले फोटो को लेकर पूछे गए सवाल ने पुलिस के हाथ बांध दिए। सीधा जवाब देने की बजाय पुलिस से बचने के लिए जुबान ही सिल ली है। विभिन्न मामलों में वांछित लोगों की धरपकड़ के बाद भी पुलिस ब्लर तस्वीरें सोशल प्लेटफार्म पर साझा कर रही है। पुलिसिया भय के शिकार आरोपी ही नहीं बल्कि संभ्रांत लोग भी हो रहे हैं। ऐसे में वायरल तस्वीरों की प्रासंगिकता सवालों के घेरे में है।

दरअसल यहां पुलिस सोशल प्लेटफार्म पर एक्टिव है। विभाग का मीडिया सेल प्रतिदिन ऐसे लोगों की तस्वीरें जारी करता है, जो कानूनी कार्रवाई की जद में हैं। आपराधिक घटनाओं में शामिल आरोपियों की तस्वीरें विभाग के पीआर सेल पर जारी होती हैं। ताकि पुलिस की कार्रवाई का पता मीडियाकर्मी व आम लोगों को चले। बाकायदा ‘पीआर सेल मुरादाबाद 2022’ नाम से व्हाट्सएप ग्रुप है। ग्रुप से जुड़े होने के कारण मीडियाकर्मियों व पुलिस अधिकारियों के बीच सूचनाएं साझा होती हैं।

दिलचस्प बात यह है कि ग्रुप का उपयोग उन सूचनाओं को साझा करने में भी होता है, जो पुलिस व सामाजिक सरोकार से जुड़ी होती हैं। महकमे के आला अधिकारी यदि किसी कार्यक्रम अथवा आयोजन में प्रतिभाग करते हैं तो संबंधित जानकारी पीआर सेल पर उपलब्ध होती है। पुलिस की गतिविधि में दिलचस्पी रखने वालों की आंखें छह माह पहले तब अचानक चौंधिया गईं, जब पुलिस महकमा लगातार ब्लर फोटो वायरल करने लगा। फोटो फ्रेम में मौजूद पुलिस अधिकारी अथवा सिपाही की तस्वीरों से कोई छेड़छाड़ नहीं होती, लेकिन आरोपी अथवा संभ्रांत लोगों की ब्लर तस्वीरें सोशल प्लेटफार्म पर छाने लगीं। उधर, कुछ दिनों तक इसे पुलिस की चूक समझा गया, लेकिन ब्लर तस्वीरें वायरल होने का सिलसिला नहीं थमा। तब हर कोई मामले की तह तक जाने में जुट गया। सामाजिक पटल पर बहादुरी की डंका पीटने वाली पुलिस का अचानक ब्लर फोटो से प्रेम के कारणों की तलाश होने लगी। जेहन में उठे सवाल पुलिस की चौखट तक पहुंच गए।

दबी जुबान खोला था राज
सोशल प्लेटफार्म पर ब्लर तस्वीरों की झड़ी से उपजे सवालों का जवाब चौंकाने वाला रहा। तत्कालीन एसएसपी बबलू कुमार ने पत्रकारों से दबी जुबां कहा कि सूचना के अधिकार ने बेड़ियां डाल दी हैं। आरटीआई के तहत एक व्यक्ति ने सवाल पूछा, अपराधियों अथवा आम लोगों की तस्वीरें समाचार पत्रों में प्रकाशित कराने के बावत शासनादेश अथवा उस अधिकारी का नाम बताने की मांग की, जिसके आदेश से तस्वीरें सोशल प्लेटफार्म पर साझा होती हैं। प्रथम दृष्टया साधारण लगने वाले इस सवाल ने पुलिस महकमे को झकझोर दिया। कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में पुलिस ने फोटो ब्लर करने की तरकीब निकाल ली।

अधिवक्ता पीके गोस्वामी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन है कि किसी भी आरोपी अथवा महिला पीड़ित की तस्वीर सोशल प्लेटफार्म पर पुलिस साझा नहीं कर सकती। इस नजर से यदि मुरादाबाद पुलिस द्वारा फोटो ब्लर करने की घटना की पड़ताल करें तो यह जायज व कानूनी है। लेकिन पुलिस अधिकारी अथवा कर्मी यदि किसी ऐसे कार्यक्रम में शिरकत करते हैं, जहां प्रोटोकाल का अनुपालन हो रहा हो अथवा समाज को सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की गई हो, वहां की तस्वीरें ब्लर किए सोशल प्लेटफार्म पर पुलिस साझा कर सकती है।

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