लगभग 50 प्रतिशत अनुपचारित गंदा पानी अभी भी गंगा में छोड़ा जा रहा है: एनजीटी

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नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कहा है कि दशकों की निगरानी के बाद भी अनुपचारित सीवेज और गंदा पानी गंगा नदी में छोड़ा जाना जारी है और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) गैर-अनुपालन के खिलाफ कड़े कदम उठाने की स्थिति में नहीं दिखता है। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदेश कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली …

नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कहा है कि दशकों की निगरानी के बाद भी अनुपचारित सीवेज और गंदा पानी गंगा नदी में छोड़ा जाना जारी है और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) गैर-अनुपालन के खिलाफ कड़े कदम उठाने की स्थिति में नहीं दिखता है। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदेश कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर राष्ट्रीय गंगा परिषद (एनजीसी) से कार्रवाई रिपोर्ट मांगते हुए कहा कि गंगा में पानी की गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार होनी चाहिए क्योंकि इसका उपयोग न केवल नहाने के लिए किया जाता है बल्कि इसका इस्तेमाल आचमन (प्रार्थना या अनुष्ठान से पहले पानी की घूंट लेना) के लिए भी होता है।

एनजीटी ने एनजीसी के सदस्य सचिव को सुनवाई की अगली तारीख 14 अक्टूबर से पहले की गई कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। एनजीटी ने कहा कि दशकों की निगरानी के बाद भी जरूरी कार्यात्मक उपचार क्षमता के अभाव में लगभग 50 प्रतिशत अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट नदी या उसकी सहायक नदियों या नालों में छोड़ा जा रहा है। एनजीटी ने कहा, ‘‘जैसा कि पिछले 37 वर्षों में हुआ है, बिना सफलता के अनिश्चितकाल तक कार्यवाही जारी रखने के बजाय हम सुझाव देते हैं कि सदस्य सचिव, एनजीसी यानी महानिदेशक, एनएमसीजी गंगा के प्रदूषण की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए एनजीसी की अगली बैठक में इसकी समीक्षा का एजेंडा रख सकते हैं।’’

एनजीटी ने कहा कि निराशाजनक स्थिति को देखते हुए निष्पादन और निगरानी में एक आदर्श बदलाव आवश्यक प्रतीत होता है। एनजीटी ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के अधिकारियों द्वारा निष्पादन पर्याप्त नहीं है, बहुत धीमा और दायित्व की कमी है तथा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन गैर-अनुपालन और लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफलता के खिलाफ कड़े कदम उठाने की स्थिति में नहीं है। एनजीटी ने कहा, ‘‘लंबित चुनौती से निपटने के लिए निष्पादन एजेंसी को सक्रिय और प्रभावी होना चाहिए, जिसमें सरल और लचीली प्रक्रियाएं तथा समय-सीमा निर्धारित हो।

देरी के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति होनी चाहिए। कार्य को परिभाषित जवाबदेही के साथ लक्ष्योन्मुख होना चाहिए, इसके बाद चूक के लिए सख्त परिणाम होने चाहिए। फिलहाल उल्टा हो रहा है।’’ एनजीटी ने कहा कि हाल के वर्षों में अधिकरण द्वारा करीबी निगरानी से पता चलता है कि सीवेज और अपशिष्टों के निष्पादन को रोकने में प्रगति अपेक्षित तर्ज पर नहीं हो रही है। एनजीटी ने कहा, ‘‘या तो कई स्थानों पर आवश्यक उपचार प्रणाली स्थापित नहीं हो पाई है या स्थापित एसटीपी/उपचार सुविधाएं पूरी तरह संचालित नहीं हैं। यह अंतहीन देरी अस्वीकार्य है।’

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