मेरठ: मॉलीक्यूलर ब्रीडिंग तकनीक से होगा नई किस्मों का विकास, दूर होगी खाद्यान की समस्या

लगातार देश में बढ़ रही है खाद्यान्न की चुनौतियां , रोग ग्रस्त नहीं होंगी फसल, बढ़ेगा उत्पादन

मेरठ: मॉलीक्यूलर ब्रीडिंग तकनीक से होगा नई किस्मों का विकास, दूर होगी खाद्यान की समस्या

मेरठ, अमृत विचार। भारतीय कृषि विभिन्न चुनौतियों, कठिन परिस्थितियों और सीमित संसाधनों के बावजूद निरंतर प्रगति के पथ पर अपनी यात्रा जारी रखे हुए है। उसी का परिणाम है कि लगातार बढ़ती जनसंख्या के चलते कृषि योग्य भूमि घटने के बाद भी आम जनता को अनाज मुहैया हो पा रहा है। भारतीय कृषि की चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है। प्रतिकूल मौसम में अधिक उत्पादन लेकर न केवल किसानों की आय में इजाफा करने की चुनौती कृषि वैज्ञानिकों के सामने है, बल्कि बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान  की जरूरत को पूरा करना भी उनके लिए एक चुनौती है।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए आने वाला दौर मॉलीक्यूलर ब्रीडिंग तकनीक का है। इस तकनीक के माध्यम से फसल में लगने वाले रोग की पहचान पहले से ही करके उसे दूर कर लिया जाएगा। साधारण भाषा में कहे तो ऐसे बीज विकसित होंगे जो प्रतिकूल मौसम और परिस्थितियों में भी रोग ग्रस्त नहीं होंगे। देश में खाद्यान्न की स्थिति की यदि बात करें तो वर्ष 1950- 51 में 50.8 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन था। जो, वर्ष 2020- 21 में बढ़कर 308.65 मिलियन टन हो गया। यहीं, नहीं अन्नदाता व वैज्ञानिकों की कठिन मेहनत की वजह से यह संभव हो सका।

कृषि वैज्ञानिकों ने अभी तक विभिन्न फसलों की लगभग 5800 किस्मों का विकास कर इन्हें देशव्यापी तौर पर जारी किया है। उच्च पैदावार देने में सक्षम किसानों ने देश की बढ़ती आबादी की आहार आवश्यकताओं की पूर्ति और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभाई है।

नई तकनीक कृषि क्षेत्र में कारगर 
कृषि क्षेत्र में नई तकनीक और नए शोध का ही परिणाम है कि अब से पहले जिन बीजों को विकसित करने में 10 से 12 वर्षों तक का समय लगता था, वह अब 5 से 6 वर्ष में ही पूरा कर लिया जाता है। इसी क्रम में अब मॉलिक्यूलर ब्रीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। मॉलिक्यूलर ब्रीडिंग एक ऐसी आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसका उपयोग नए कल्टीवेट अथवा किस्मों के विकास में आजकल वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है।

इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसकी सहायता से वंचित गुणों वाले लक्षणों का अत्यंत सटीकता से पता लगाकर उचित गुणों से परिपूर्ण नई किस्मों का विकास किया जा सकता है। इतना ही नहीं लक्षण प्रदूषित होने से पूर्व पौध चरण में ही पौधों का पता लगने से इस तकनीक के माध्यम से उसका उपचार अत्यंत सरलता से कर पाना संभव हो गया है। 

मॉलिक्यूलर ब्रीडिंग तकनीक से देश में कितनी किस्म
भारत में मॉलिक्यूलर ब्रीडिंग तकनीक का प्रयोग कर अब तक धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, सोयाबीन, मूंगफली और चना की 74 नई किस्म का विकास किया जा चुका है। इनमें धान की 43, गेहूं की 5, चना की 6, सोयाबीन की 6, मूंगफली की 2, मक्का की 10 तथा बाजरा की 2 उन्नत किस्में शामिल है। इन विकसित किस्मों में जैविक दबाव प्रतिरोधिता अजैविक तनाव के प्रति सहिष्णुता तथा बेहतर पोषक गुण है। दूसरे, शब्दों में इन किस्मों के प्रयोग से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने तथा इसमें विकसित परिस्थितियों में अनुकूलित करने की क्षमता होने के कारण फसल हानि की आशंका अत्यंत कम हो जाती है।

क्या बोले कृषि वैज्ञानिक
देश के किसानों के लिए मॉलिक्यूलर ब्रीडिंग तकनीक से विकसित यह उन्नत किस्में विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से सुरक्षा प्रदान करने के साथ आमदनी बढ़ाने में मददगार सिद्ध होंगी।आने वाले वर्षों में आशा की जा सकती है कि हमें और कई नई प्रजातियां देखने को मिले, जो कि किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होंगी। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विवि में भी इस पर काम कर किसानों को लाभ दिया जाएगा। 
डॉ. आरएस सेंगर, टिश्यू कल्चर  लैब प्रभारी व वैज्ञानिक, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय

क्या बोले कुलपति
ग्लोबल वार्मिंग के चलते फसल उत्पादन को बनाए रखना एक चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए जरूरी है कि ऐसी प्रजातियों का विकास हो जो ग्लोबल वार्मिंग के दौरान भी अच्छा उत्पादन दे सकें। ऐसी प्रजातियां भी विकसित की जाए, जिसमें पानी की जरूरत कम पड़े। जिससे, घटते हुए जलस्तर को संरक्षित किया जा सके-डॉ. केके सिंह, कुलपति सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय।

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