बीआरएस विधायक ‘प्रलोभन’ मामला: सीबीआई जांच के आदेश के खिलाफ तेलंगाना सरकार की याचिका खारिज
हैदराबाद। तेलंगाना सरकार को झटका देते हुए उच्च न्यायालय ने सोमवार को उसकी उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायकों को कथित तौर पर लालच देकर दूसरे दल में शामिल कराने के मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की थी।
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मुख्य न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन तुकारामजी की खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश की पुष्टि की और सरकार और अन्य की ओर से इसकी विचारणीयता के आधार पर दायर अपील को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 26 दिसंबर 2022 को बीआरएस के चार विधायकों को प्रलोभन देने की कथित साजिश का मामला राज्य पुलिस की एसआईटी से लेकर सीबीआई को सौंप दिया था। उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा एसआईटी गठित करने के आदेश और अबतक की गई जांच को भी खारिज कर दिया। साथ ही उच्च न्यायालय ने शुरुआती चरण में एक सहायक पुलिस आयुक्त द्वारा की गई जांच को भी रद्द कर दिया था। इसके बाद राज्य सरकार और अन्य ने एकल पीठ के आदेश के खिलाफ रिट अपील दाखिल की।
हालांकि, उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने सोमवार को एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा और उक्त आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने सरकारी वकील के उस अनुरोध को भी ठुकरा दिया, जिसमें उन्होंने उच्चतम न्यायालय में अपील करने तक आदेश को निलंबित करने का अनुरोध किया था। इसके साथ ही मामले की सीबीआई जांच का रास्ता साफ हो गया है। केंद्रीय एजेंसी ने पहले ही तेलंगाना के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मामले से जुड़ी सामग्री उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है।
उल्लेखनीय है कि 26 अक्टूबर 2022 को कथित तौर पर भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव पाने वाले चार बीआरएस विधायकों में शामिल पायलट रोहित की शिकायत के बाद रामचंद्र भारती उर्फ सतीश शर्मा , नंदू कुमार और सिम्हायजी स्वामी को मामले में आरोपी के तौर पर नामजद किया गया है। तीनों को उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वे सत्तारूढ़ बीआरएस विधायकों को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का कथित तौर पर लालच दे रहे थे। उनको बाद में उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी। प्राथमिकी की प्रति के मुताबिक, रोहित रेड्डी ने आरोप लगाया है कि उसे तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति के विधायक पद से इस्तीफा देने और अगले चुनाव में भाजपा के टिकट पर लड़ने के लिए 100 करोड़ रुपये दिये जाने का प्रलोभन दिया गया था।
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