राष्ट्रपति का कृषि वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और पारिस्थितिकी संतुलन का आह्वान
कटक। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चावल को देश की खाद्य सुरक्षा का आधार करार देते हुए शनिवार को कृषि वैज्ञानिकों को इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने एवं पारस्थितिकी संतुलन को कायम रखने के प्रयास का आह्वान किया। दूसरी ‘भारतीय चावल कांग्रेस’ का उद्घाटन करते हुए मुर्मू ने कृषि वैज्ञानिकों की तारीफ की और कहा कि उन्होंने भारत को खाद्यान्न अधिशेष देश बनाने में काफी योगदान दिया है।
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उन्होंने कहा कि भारत अब चावल का एक बड़ा उपभोक्ता एवं निर्यातक है, लेकिन जब देश आजाद हुआ था तो स्थिति बिल्कुल भिन्न थी। उन्होंने कहा, ‘‘उन दिनों हम अपनी खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर थे।’’ राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईसीसीआर-एनआरआरआई) को इसका श्रेय देते हुए राष्ट्रपति ने इसे आगे की चुनौतियों की भी याद दिलायी।
उन्होंने कहा कि धान की फसल को बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है, लेकिन दुनिया के कई हिस्से जलवायु परिवर्तन के कारण जल की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब आये दिन सूखा, बाढ़ और चक्रवात आते हैं जो धान की खेती पर असर डालते हैं, ऐसे में कई स्थान हैं, जहां चावल की पारंपरिक किस्में चुनौतियों से जूझ रही हैं।
राष्ट्रपति ने कृषि वैज्ञानिकों से कहा, ‘‘इस तरह, आज हमारे सामने जो जिम्मेदारी है, उसमें बीच का रास्ता ढूंढना है: एक ओर पारंपरिक किस्मों को बचाये भी रखना है और दूसरी ओर पारिस्थितिकी संतुलन को भी बरकरार रखना है।’’ उन्होंने कहा कि दूसरी चुनौती मिट्टी को आधुनिक चावल खेती के लिए जरूरी समझे जाने वाले रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक इस्तेमाल से बचाना है।
मृदा को स्वस्थ बनाये रखने के लिए ऐसे उर्वरकों पर निर्भरता घटाने की जरूरत पर बल देते हुए राष्ट्रपति ने वैज्ञानिकों से ‘पारिस्थतिकी अनुकूल धान कृषि प्रणाली विकसित’ करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि चावल हमारी खाद्य सुरक्षा की बुनियाद है, ऐसे में वैज्ञानिकों को उसके पोषण पहलू को भी ध्यान में रखना चाहिए।
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