कोलकाता में एडेनोवायरस के मामलों में वृद्धि चिंताजनक : डॉ. नरेश पुरोहित

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Published By Om Parkash chaubey
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कोलकाता। राष्ट्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार डॉ नरेश पुरोहित ने पश्चिम बंगाल की राजधानी और आसपास के जिलों में एडेनोवायरस के मामलों में वृद्धि पर चिंता जताई है।

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गौरतलब है कि एडेनोवायरस कोरोना वायरस के विपरीत दो साल से कम उम्र के बच्चे के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील कोलकाता स्थित वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज, स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. पुरोहित ने यूनीवार्ता को बताया कि एडेनोवायरस फैलने की आशंका के बीच 24 घंटे के भीतर कोलकाता में श्वसन संक्रमण के कारण चार बच्चों की हाल ही में हुई मौत चिंताजनक है।

उन्होंने बताया यहां गुरुवार को डॉ बी सी रॉय पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ पीडियाट्रिक साइंसेज में दो मौतों की सूचना मिली थी, जबकि बुधवार को कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एमसीएच) में दो मौतों की सूचना मिली थी। यह जानकारी कोलकाता के अस्पतालों में पांच बच्चों की मौत की सूचना के एक दिन बाद आयी है।

डॉ पुरोहित ने बताया कि एडेनोवायरस सामान्य सर्दी या फ्लू जैसे लक्षणों सहित कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग, विशेषकर बच्चे को इससे अधिक खतरा है। उन्होंने कहा कि राजधानी कोलकाता में बुधवार को जिन बच्चों की मौत हुई, उनमें से ज़्यादातर सह-बीमारियों से पीड़ित थे। ये ऐसे बच्चे थे, जो कम वज़न के पैदा हुए हैं या जिन्हें दिल से जुड़ी समस्या थी।

राष्ट्रीय एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के प्रधान अन्वेषक ने कहा कि एडेनोवायरस आमतौर पर श्वसन संबंधी बीमारियों जैसे कि सामान्य सर्दी, नेत्रश्लेष्मलाशोथ, ब्रोंकाइटिस या निमोनिया का कारण बनता है। बच्चों में, यह आमतौर पर श्वसन पथ और आंत्र पथ में संक्रमण का कारण बनता है। उन्होंने आगाह किया कि दो साल से कम उम्र के बच्चों में एडेनोवायरस मुख्य रूप से श्वसन पथ के माध्यम से संक्रमण का कारण बनता है, जबकि दो से पांच साल की उम्र के बच्चों में जठरांत्र संबंधी मार्ग में संक्रमण विकसित होता है, जिससे दस्त होते हैं।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में एडेनोवायरस संक्रमण के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है जो सर्दी या इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी का कारण बनता है। एडेनोवायरस से संक्रमित लोगों के लिए कोई अनुमोदित एंटीवायरल दवाएं या विशिष्ट उपचार नहीं हैं। लगभग 90 प्रतिशत मामले हल्के होते हैं और आराम के अलावा पेरासिटामोल जैसे दवाओं से इससे निजात पाया जा सकता है। स्टीम इनहेलेशन या यहां तक कि एक नेबुलाइज्ड ब्रोन्कोडायलेटर भी इसमें राहत ला सकता है।

उन्होंने कहा कि गंभीर रूप से प्रभावित कुछ बच्चों को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता होती है और मनोवैज्ञानिक आघात से बचने के लिए माता-पिता को संक्रमित बच्चे को उसकी मां के साथ रखा जाना चाहिए। बच्चों को अपने हाथ अच्छी तरह से धोने चाहिए और खांसी और जुकाम वाले लोगों के पास नहीं जाना चाहिए।

उन्होंने लोगों से इसको लेकर नहीं घबराने की सलाह देते हुए एडेनोवायरस से लड़ने के लिए एहतियाती उपाय करने की अपील की। उन्होंने कहा कि सभी बाल चिकित्सा तीव्र श्वसन संक्रमण (एआरआई) क्लीनिक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों (एमसीएच), जिला अस्पतालों और उप-विभागीय अस्पतालों में चौबीसों घंटे काम करेंगे। संबंधित एमएसवीपी/अस्पताल के अधीक्षक की जानकारी के बिना बाल चिकित्सा एआरआई के किसी भी मामले को रेफर नहीं किया जाएगा। 

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