बरेली: गांव से बिटिया को डाक्टर बनाने लाए थे, कॉलेज प्रबंधन और गरीबी ने छीन लिए सपने

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Published By Vishal Singh
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कक्षा नौ की छात्रा की आत्महत्या का मामला, पढ़ लिखकर डॉक्टर बनना चाहती थी साक्षी

ओमेन्द्र सिंह/बरेली, अमृत विचार। संजय नगर में किराए पर रहने वाले अशोक कुमार गांव से बड़े अरमान लेकर यहां आए थे। बेटी साक्षी को लेकर कई सपने बुने थे। साक्षी पढ़ लिखकर डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन मुफलिसी और कॉलेज प्रबंधन ने अशोक के सपने छीन लिए। पोस्टमार्टम के बाद साक्षी का शव घर पर पहुंचा तो अशोक और उनकी पत्नी कमलेश बेटी को चूमकर रोने लगे। मां बार-बार शव को झकझोर कर कह रही थी कि बेटी एक बार उठ जा। उस वक्त ऐसा लग रहा था कि वह बेटी के शव को नहीं बल्कि सिस्टम को झकझोर कर जगाने का प्रयास कर रही हों।

नवाबगंज क्षेत्र के अभय राजपुर गांव के अशोक गंगवार ने बताया कि उनकी बेटी साक्षी होनहार थी। उसका सपना था कि वह डॉक्टर बने। बेटी के सपने को पूरा करने के लिए शहर आए थे, लेकिन यहां भी गरीबी उनकी दुश्मन बन गई। इस दौरान अशोक बेटी के शव के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं और कहने लगते हैं कि बेटी मुझे माफ कर देना.. मैं तेरे सपने को पूरा नहीं कर सका। इस बीच कभी कॉलेज प्रबंधन और प्रधानाचार्य को कोसते हैं।

मां कमलेश बार बार बेटी को पुकारते हुए बेसुध हो रही थीं। शिवम भी बहन को याद करके रो रहा था। पूरे परिवार को उनके गांव व मोहल्ले के लोग दिलासा दिलाने की कोशिश कर रहे थे। अशोक की बात को उस छात्र ने सही ठहराया था जो साक्षी के साथ उसकी कक्षा में पढ़ता है। सूरजमुखी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज कठघरे में है। छात्र ने बताया कि साक्षी कक्षा की टॉपर थी। वह कभी फेल नहीं हुई। छात्र ने यह भी कहा कि उसे कॉलेज से बाहर कर दिया था, लेकिन उसके पिता ने फीस जमा कर दी। तब परीक्षा में बैठने दिया गया। देर शाम साक्षी के शव की अंत्येष्टि कर दी गई।

छात्रा के परिजनों को मुआवजा दिलाने की मांग की
कन्वीनर पैरेंट्स फोरम बरेली के मुहम्मद खालिद जीलानी एडवोकेट ने कहा कि स्कूल फीस जमा न हो पाने पर प्रबंधन द्वारा परीक्षा से रोकने से व्यथित कक्षा नौ की छात्रा साक्षी गंगवार द्वारा आत्महत्या को मजबूर होने की घटना बेहद दुखद है। हम इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। समाज के सभी तबकों को शिक्षा का कारोबार करने वाले ऐसे स्कूलों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक निर्णय में संविधान के अनुच्छेद-21के तहत किसी छात्र को परीक्षा से रोकना जीवन के अधिकार के समान अधिकारों का उल्लंघन बताया है।

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इस घटना को राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग व अन्य मानवाधिकार मंचों पर उठाएंगे। तमाम स्कूलों ने गृह परीक्षा से पहले ही खुद बनावटी एडमिट कार्ड जारी कर मनमानी फीस वसूली की योजना बना ली थी। आत्महत्या के लिए उकसाने के जिम्मेदार स्कूल प्रबंधन पर आईपीसी की धारा-306 के तहत मुकदमा दर्ज करके छात्रा के परिजनों को 10 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए।

इस प्रकरण में अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है। प्रबंधक से बातचीत करने पर पता चला कि छात्रा ने किसी अन्य कारण से आत्महत्या की है- सोमारु प्रधान, जिला विद्यालय निरीक्षक, बरेली।

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