कानपुर: आईआईटी-नेत्र अनुवांशिकी रोग से छुटकारा पाने को जीन थेरेपी
रिलायंस को दिया गया जीन थेरेपी का लाइसेंस
कानपुर, अमृत विचार। आंखों के अनुवांशिकी बीमारियों से निजात दिलाने को जीन थेरेपी पर आईआईटी और रिलायंस लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड के बीच सोमवार को आपसी समझ पत्र पर हस्ताक्षर किए गए। इसके लिए आईआईटी ने रिलायंस को जीन थेरेपी का लाइसेंस दिया है। बताया जाता है कि इस थेरेपी से विशेष रूप से कई आनुवंशिक नेत्र रोगों को दूर करने और इस क्षेत्र में क्रांति लाने की क्षमता है। अनुवांशिक दोषों के कारण भी कई तरह के नेत्र रोग होते हैं जिन्हें जीन थेरेपी से ठीक किया जा सकता है। आईआईटी का दावा है कि भारत में पहली बार एक जीन थेरेपी से संबंधित तकनीक शैक्षणिक संस्थान ने किसी कंपनी को दी है। इस करार के दौरान आईआईटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर और रिलायंस लाइफ साइंसेज के अध्यक्ष केवी सुब्रमण्यम मौजूद रहे।
आईआईटी कानपुर के जैविक विज्ञान और बायोइंजीनियरिंग विभाग (बीएसबीई) के प्रो. जयनधरन गिरिधर राव और शुभम मौर्य ने इसे विकसित करने के बाद पेटेंट कराया था। पेटेंट तकनीक अनुवांशिक विकार के इलाज के लिए जीव के जीन में सुधार करती है। तकनीक इस स्थान को संशोधित करती है ताकि प्रभावित कोशिकाओं को जीन प्रदान करने की क्षमता को अनुकूलित किया जा सके और इसकी प्रभावशीलता में सुधार किया जा सके। इस तकनीक से एनिमल ट्राइल में दृष्टि दोष को ठीक करने में महत्वपूर्ण परिणाम सामने आ चुका है। आईआईटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि कानपुर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है और हम रिलायंस लाइफ साइंसेज को इस जीन थेरेपी तकनीक का हस्तांतरण करके खुश हैं।
उन्होंने कहा कि वायरल वैक्टर का उपयोग कर जीन थेरेपी हाल ही में चिकित्सा के क्षेत्र में एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभरा है। हमारा मानना है कि यह तकनीक लीबर कंजेनिटल एमोरोसिस, जो की एक जन्म से मौजूद नेत्र विकार है, और रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा, प्रगतिशील निरंतर दृष्टि हानि के कारण बनने वाली बीमारी सहित अनुवांशिक नेत्र रोगों की एक विस्तृत श्रृंखला के इलाज के लिए बहुत बड़ा वरदान साबित होगी ।
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