Kanpur News: नाफरमानी पर मिली जेल, गांधी- नेहरू ने भी दिया आंदोलन को समर्थन

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Published By Deepak Mishra
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होली गंगा मेला आज, हटिया से होली खेलना शुरू हुआ था

महेश शर्मा/कानपुर, अमृत विचार। सोमवार (13 मार्च) को होली गंगा मेला है। गंगा मेला की परंपरा का कोई 70 साल पुराना इतिहास मानता है तो कोई 83 साल। गंगा मेला फिरंगी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने का दिन होने की वजह से भी याद किया जाता है। त्योहार मनाना सांस्कृतिक स्वतंत्रता का प्रतीक भी माना जाता है। होली न मनाने का फिरंगी हुकूमत की सिविल नाफरमानी का नतीजा होली गंगा मेला है।

विरोध के माहौल में जब होली खेली गयी थी तो उस दिन होली के सातवां दिन अनुराधा नक्षत्र था तभी से यह अनुराधा नक्षत्र से ही होली की परंपरा पड़ गयी थी। इस दिन न केवल रंग खेला गया बल्कि हटिया बाजार पार्क में युवाओं ने तिरंगा भी फहरा दिया था। फिरंगियों को कनपुरियों के आगे झुकना पड़ा था। हालांकि इस जोश के पीछे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का इस आंदोलन को पुरजोर समर्थन भी बताया जाता है। तब के क्रांतिकारी युवा गुलाबचंद्र सेठ, नवीन शर्मा, हमीद खां, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, गिरिधर शर्मा, विश्वनाथ टंडन आदि को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया।

सांस्कृतिक क्रांति का उद्घोष
होली को लेकर जबरदस्त विरोध के चलते फिरंगियों को इन तेवर वाले युवाओं को छोड़ना पड़ा। तब से ऐसी परंपरा पड़ी कि लोग भले ही होली के दिन रंग खेले या न खेले पर गंगा मेला के दिन जबरदस्त रंग खेलते हैं, मटकी फोड़ने, रंगों का ठेला निकालने जैसा माहौल सड़कों को भी रंगबिरंगी कर देता है। इसे गुलामी की जंजीरों में जकड़े लोगों को होली खेलने से मना करने के बाद भी होली खेले जाने को सांस्कृति आजादी से जोड़कर देखा जाता है। सरसैया घाट पर मेला आयोजन किया जाता है। वयोवृद्ध कांग्रेस नेता शंकरदत्त मिश्र का कहना है कि लगभग 50 युवा क्रांतिकारियों को जेल में डाल दिया गया था।

उन्हीं को छुड़ाने के संघर्ष के आगे हुक्मरानों ने घुटने टेक दिए थे। तभी से सात दिन तक होली खेलने का चलन हो गया। बताते हैं कि इसी दिन हटिया गंगा मेला समिति की नींव पड़ी। गंगामेला तिथि की घोषणा यही समिति करती है। वरिष्ठ समाजसेवी स्मृति संस्था के संस्थापक राजेंद्र मिश्रा बब्बू भइया बताते हैं कि इसे हटिया गंगा मेला भी कहते हैं जिसकी नींव 1942 में पड़ी थी। हटिया बाजार रज्जन बाबू पार्क में नौजवान क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बगैर पहले तिरंगा फहराया और उसके बाद जमकर रंगबाजी की। फिरंगियों की पुलिस ने झंडा उतारने और होली बंद कराने का भी प्रयास किया पर नहीं चली। शंकरदत्त मिश्र बताते हैं कि युवाओं की गिरफ्तारी हुकूमत को महंगी पड़ी। 

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कुछ ऐसे थे विरोध के तेवर
होली न खेलने के फरमान के विरोध में गिरफ्तार क्रांतिकारियों मे बुद्धलाल मेहरोत्रा, गुलाबचन्द्र सेठ , हमीद खाँ , इकबालकृष्ण कपूर , बालकृष्ण शर्मा नवीन , शिवनारायन टंडन, रघुवरदयाल भट्ट, जागेश्वर त्रिवेदी, विश्वनाथ मेहरोत्रा आदि प्रमुख थे| इनकी गिरफ्तारी के विरोध मे बाजार बंद रहे हड़ताल रही। आखिर में प्रशासन को झुकना पड़ा और सभी गिरफ्तार लोगो को रिहा कर दिया गया। मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता ने फिरंगी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। अभूतपूर्व बाजारबंदी रही। हटिया में तो तकरीबन सौ से ज्यादा घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया। मोहल्ले की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे उसी पार्क में धरने पर बैठ गए। पूरी शहर की जनता ने चेहरे से रंग साफ नहीं किया। इस आंदोलन की आंच दो दिन में ही दिल्ली तक पहुंच गई। जिसके बाद पंडित नेहरू और गांधी जी ने इनके आंदोलन का समर्थन कर दिया।

पांचवे दिन छोड़े गए थे युवा क्रांतिकारी
जानकार बताते हैं कि कपड़ा मिलों में हड़ताल हो गयी थी। कारोबार ठप हो गया। जब यह खबर फैली तो   चौथे ही दिन हुकूमत का एक बड़ा अफसर कानपुर पहुंचा।  आपसी बातचीत से मामला सुलटा और रंग खेलने की अनुमित मिली तब तक होली के दिन से सातवें दिन अनुराधा नक्षत्र में गंगा मेला आयोजित किया गया। बताते हैं कि अफसर बातचीत के लिए हटिया पार्क तक आना पड़ा था। अनुराधा नक्षत्र वाले रोज रिहाई हुई फिर तो जुलूस जेल गेट से निकाल कर हटिया पहुंचा वहां पर जमकर रंग खेला गया। 

ये मोहल्ले हो जाते हैं रंगारंग
होली का रंगों भरा ठेला और हुरियारे हटिया बाज़ार से जुलूस निकालते हैं जो नयागंज, चौक सर्राफा, मेस्टन रोड, हालसी रोड, बिरहाना रोड, घंटाघर, केनाल पटरी आदि मोहल्लों में  सहित कानपुर के करीब एक दर्जन पुराने मोहल्ले में धूमता हुआ दोपहर दो बजे तक हटिया के रज्जन बाबू पार्क में आ कर खत्म कर दिया जाता है। इसके बाद शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन किया जाता है। जहां शहर भर के लोग इकठ्ठा होते है और एक दूसरे को होली की बधाई भी देते है।

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