अमेरिकी बैंक का डूबना

अमेरिकी बैंक का डूबना

सिलिकन वैली बैंक (एसवीबी) के डूबने का असर आने वाले समय में पूरी दुनिया पर देखने को मिल सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक दो प्रमुख अमेरिकी बैंकों के डूबने से ग्लोबाल बाजार में भारी गिरावट आई है। ब्रिटेन में उसके संबद्ध बैंक का एचएसबीसी ने अधिग्रहण कर लिया। जापान का सॉफ्टबैंक विजन फंड पहले ही दबाव में है और उसका निवेश भी ज्यादा प्रभावित होगा।

स्वीडन के पेंशन फंड को एक अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हो चुका है। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि देश का बैंकिंग सिस्टम पूरी तरह सुरक्षित है। अमेरिका में 9 मार्च को सिल्वरगेट कैपिटल कॉरपोरेशन बैंक डूबा और 10 मार्च को  एसवीबी डूब गया। यह कोई मामूली बैंक नहीं था। दो महीने पहले तक उसके पास 209 अरब डॉलर की संपत्ति थी।

जानकार एसवीबी के डूबने को अमेरिका का 2008 के बाद का दूसरा बड़ा बैंकिंग संकट बता रहे हैं। 2008 में जब लेहमैन ब्रदर्स बैंक डूबा था तो उसने दुनियाभर में भारी आर्थिक तबाही मचा दी थी। कई और बैंक उस वजह से डूब गए थे। वास्तव में अमेरिका में एक ऐसे बैंक का बंद होना जो भारतीय कंपनियों के लिए भी सहारा था, एक बुरी घटना है।

कम से कम 21 भारतीय स्टार्टअप्स में एसवीबी का निवेश था। साल 2022 के आंकड़ों के हिसाब से एसवीबी के ग्लोबल बैंकिंग पोर्टफोलियो में लगभग 56 प्रतिशत हिस्सा वेंचर या प्राइवेट इक्विटी फंड्स का था। पिछले 5-7 वर्षों से यह बैंक काफी चर्चा में आया। अच्छे रिटर्न के चलते लोग इसमें अपना पैसा जमा कराते थे। लेकिन अब भारतीय बाजार में एसवीबी के बंद होने की घबराहट देखी जा सकती है।

भारतीय स्टार्टअप्स इस चिंता में हैं कि एसवीबी से फंड ट्रांसफर में दिक्कत हो सकती है क्योंकि निकासी पर एक लिमिट लगाई जा सकती है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि एसवीबी के बंद होने पर स्टार्टअप कंपनियों को फंड नहीं आएगा, तो उन्हें भी कारोबार समेटने की नौबत आ जाएगी।

टेकक्रंच नाम की पत्रिका ने कहा है कि भारत में स्टार्टअप कंपनियों पर इस का असर पड़ना तय है। कुछ स्टार्टअप में तो एसवीबी उनका एकमात्र बैंकिंग भागीदार था, जिनका पैसा वहां फंस गया है।  एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को यह कहते हुए रिपोर्ट किया गया था कि इसका प्रभाव भारत में सीमित होगा। देश में केवल कुछ तकनीकी स्टार्टअप और आईटी फर्मों को ही ये प्रभावित करेगा। फिर भी बैंकिंग नियामकों को कदम उठाने होंगे। साथ ही एसवीबी की नाकामी से मिले सबक का भी परीक्षण किया जाना चाहिए।