मातृभूमि दैनिक का शताब्दी वर्ष लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की मजबूती का प्रतीक : अनुराग ठाकुर

मातृभूमि दैनिक का शताब्दी वर्ष लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की मजबूती का प्रतीक : अनुराग ठाकुर

कोच्चि। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि केरल के सबसे अग्रणी मलयायम अखबार मातृभूमि का शताब्दी वर्ष देश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की मजबूती और जीवंतता का प्रतीक है। ठाकुर ने शनिवार की शाम यहां मातृभूमि दैनिक के 100 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही। इस मौके पर  ठाकुर ने डिजिटल उपनिवेशवाद के खिलाफ आगाह करते हुए कहा कि भारत की लोकतांत्रिक प्रकृति हमेशा एक तथ्य बनी रहेगी, भले ही देश या विदेश से कितनी ही अतार्किक राय जतायी जाये।

एक कहावत  तथ्य पवित्र हैं और राय स्वतंत्र है का उद्धरण करते हुए उन्होंने कहा ,  हमारे महान देश की लोकतांत्रिक प्रकृति हमेशा एक तथ्य बनी रहेगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी ही निराधार और अतार्किक राय स्वतंत्र रूप से भीतर या बाहर से व्यक्त की जाती रहे। उन्होंने कहा कि नयी तकनीकों के आगमन से बाधाओं को तोड़ने का अनूठा अवसर सामने आता है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पारदर्शिता की दीवारों के पीछे 'डिजिटल उपनिवेशवाद' का बढ़ता खतरा भी है। उन्होंने कहा,  हमें नवाचार और आधुनिकता के नाम पर कुछ भी तथा सब कुछ स्वीकार नहीं करने के लिए सतर्क रहना चाहिए।

विदेशी प्रकाशनों, कंपनियों और संगठनों की निहित भारत विरोधी पूर्वाग्रह वाले विकृत तथ्यों को पहचानना चाहिए और उन्हें परिष्कृत किया जाना चाहिए।" उन्होंने जोर दिया कि यहां जमीनी हकीकत को समझने वाले भारतीय मीडिया को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। मातृभूमि दैनिक के समृद्ध योगदान का उल्लेख करते हुए ठाकुर ने कहा  यह जानना हमेशा आशावान और ऊर्जावान होता है कि जब हमारा भारत आजादी का अमृत महोत्सव यानी स्वतंत्रता के 75 साल मना रहा है, तो मातृभूमि जैसे मीडिया घराने हैं जो पहले ही राष्ट्र के लिए 100 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं।

उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा कि यह इस तथ्य की पुष्टि करता है कि भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मजबूत और जीवंत है। मीडिया बिरादरी से सतर्क रहने और भारत की अखंडता को खतरे में डालने की क्षमता रखने वाली ऐसी आवाजों और आख्यानों को "जानबूझकर या अनजाने में" अपना स्थान देने से बचने का आग्रह करते हुए उन्होंने उम्मीद जतायी कि राष्ट्र में जागरूकता पैदा करने के लिए मातृभूमि का मूल्य और संकल्प बदस्तूर जारी रहेगा।

उन्होंने कहा ,  हम यहां मातृभूमि की उत्कृष्ट पत्रकारिता का जश्न मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम उन बाधाओं पर विचार करें जो उन लोगों द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के मार्ग में रखी गयी हैं जो लोकतंत्र की परंपराओं के बारे में बहुत कुछ बोलते हैं लेकिन उसे बनाये रखने के लिए करते बहुत कम हैं।

 केंद्रीय मंत्री ने कहा कि केरल से कश्मीर तक इस महान राष्ट्र के विविध लोगों को एकजुट करने वाले कई धागों में संभवतः सबसे मजबूत उनका विश्वास है कि भारत उनकी मातृभूमि , कर्मभूमि और पुण्यभूमि है। केशव मेनन ने जिस अखबार की स्थापना की थी, वह इस अटूट विश्वास को श्रद्धांजलि है।' देश में लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता पर हो रही आलोचनाओं के संदर्भ में उन्होंने कहा,  इन दिनों 'लोकतंत्र' शब्द अक्सर सार्वजनिक चर्चा में सुना जाता है।

हमारे देश में लोकतंत्र और इसकी संस्थाओं को लगातार कमजोर करने की कोशिश करने वालों ने शासन के एक महान सिद्धांत को एक फैशन स्टेटमेंट बना दिया है। उल्लंघनकर्ता अब पीड़ित होने का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने कहा ,  हमें याद रखना चाहिए कि पश्चिमी देशों के विपरीत, लोकतंत्र भारत पर एक कृत्रिम प्रत्यारोपण नहीं है।यह हमारे सभ्यता के इतिहास का एक अभिन्न और अविनाशी हिस्सा है। लोकतंत्र तब भी था, अब भी है और भविष्य में भी रहेगा।

केरल में एक प्रमुख समाचार संगठन के कार्यालयों और स्टूडियो में हाल के हमले और तोड़फोड़ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह के अपमानजनक हमले लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं को कमजोर करते हैं। उन्होंने कहा  मैं पत्रकारों से बिना किसी भय या पक्षपात के ईमानदारी से अपना काम करने का आह्वान करता हूं। मातृभूमि ने बहुत ऊंचे मानक स्थापित किए हैं।

दूसरों को उन मानकों तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और यहां तक कि उनसे आगे भी जाना चाहिए। ठाकुर ने मातृभूमि दैनिक के शताब्दी समारोह का विमोचन किया। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने समारोह का उदघाटन और अध्यक्षता की। इस मौके पर राज्य के मंत्री के राजन, पी राजीव, विपक्ष के नेता वीडी सतीसन, मातृभूमि के अध्यक्ष एवं प्रबंध संपादक पीवी चंद्रन, प्रबंध निदेशक एमवी श्रेयम्स कुमार तथा अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद रही। 

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