विश्व गौरेया दिवस आजः घरों को चहकाने वाली गौरेया हो रहीं विलुप्त, संरक्षण की है जरूरत तो फिर से चहकेंगी आवाज

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Published By Shobhit Singh
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वैज्ञानिक नाम 'पासर डोमेस्टिकस'से जानी जाती है गौरेया, पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया 'विश्व गौरेया दिवस'

शोभित सिंह, हल्द्वानी, अमृत विचार। छोटे आकार वाली खूबसूरत पक्षी गौरेया का कभी इंसानी घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरेया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है। घरों को अपनी चीं..चीं से चहकाने वाली गौरेया अब दिखाई नहीं देती और कहीं-कहीं तो अब यह विलुप्त सी हो गई हैं।

पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को चुग्गा खिलाया करती थी तो बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे लेकिन ,अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। गौरेया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरेया इतिहास बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।

वर्ष 2023 की थीम ‘आई लव स्पैरो’ 

इस वर्ष विश्व गौरेया दिवस की थीम 'आई लव स्पैरो' है। जिसका विषय इस उम्मीद से प्रेरित है कि अधिक से अधिक लोग इंसान और गौरैया के साथ का जश्न मनाएंगे। आखिरकार, हम दस हजार वर्षों से इन प्यारे छोटे पक्षियों के साथ घनिष्ठता से रहे हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य उस प्रेम को उजागर करना है, जो लोगों में गौरैया के लिए है। 

वर्ष 2010 में पहली बार मनाया गया यह दिवस

इसकी पहल नेचर फॉर एवर सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा इको-एसआईएस एक्शन फाउंडेशन (फ्रांस) और दुनिया भर के कई अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने विलुप्त होती गौरेया के अस्तित्व को बचाने के लिए शुरू की है। यह पहली बार वर्ष 2010 में शुरू किया गया है।

गौरेया पक्षी की ऐसी प्रजाति है जो शांत वातावरण व मिट्टी के घोंसले में रहना पसंद करती है, जो आजकल नहीं मिल रहा है। जिसके कारण इनकी संख्या में लगातार कमी होती जा रही है। बढ़ता ध्वनि प्रदूषण और रेडिएशन आज इनके अस्तित्व के लिए बड़ी समस्या बन चुका है, इसका सीधा असर छोटे से पक्षी गौरेया पर पड़ा है- भूपेंद्र चौधरी, शिक्षक व पर्यावरण संरक्षणविद्।

वर्ष 2023 देखा कि इस वर्ष बिल्कुल भी बारिश व  बर्फबारी में नहीं हुई, जिसके कारण गौरेया पक्षी 1 मार्च से अपने घरों पर आना शुरू करते थे, वह इस वर्ष एक महीने पहले यानि एक फरवरी से ही आने लगीं, लेकिन उन्होंने अंडा देना मार्च में ही शुरू किया। अब अगले वर्ष इनके व्यवहार में क्या बदलाव होगा इस पर हमारी नजर रहेगी- गुलाब सिंह नेगी, स्पैरोमैन। 

 

 

 

 

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