समझौते के आधार पर दुष्कर्म जैसे अपराधों में माफी संभव नहीं :इलाहाबाद हाईकोर्ट

समझौते के आधार पर दुष्कर्म जैसे अपराधों में माफी संभव नहीं :इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग से बलात्कार और छेड़छाड़ जैसे जघन्य अपराध में पीड़िता और आरोपी के बीच समझौते के आधार पर अभियोजन रद्द नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के अपराध से जुड़े मामले में कोर्ट का पहला प्रयास आरोपों की सच्चाई का निर्धारण करना है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल पीठ ने आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म के मामले को रद्द करने से इनकार करते हुए दिया। हालांकि आरोपी का कहना है कि उसने और पीड़िता ने एक-दूसरे से शादी कर ली है। 

पोक्सो अधिनियम की धारा 7/8 और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी के खिलाफ पुलिस स्टेशन कोतवाली, झांसी में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। प्राथमिकी में दर्ज तथ्यों के अनुसार वर्ष 2020 में पीड़िता की याची से दोस्ती हो गई। पीड़िता एक विधवा है। याची ने उससे शादी का झूठा वादा करके उसके साथ दुष्कर्म किया। पीड़िता का आरोप है कि आरोपी ने उसकी बेटी के साथ भी छेड़छाड़ की। पीड़िता और उसकी बेटी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में दुष्कर्म और छेड़छाड़ के आरोपों का समर्थन भी किया। पीड़िता की बेटी नाबालिग है। 

हालांकि अगस्त 2021 में शिकायतकर्ता और आरोपी ने शादी कर ली और विशेष न्यायाधीश के समक्ष अभियोजन को आगे न बढ़ाने का आवेदन किया। दोनों पार्टियों के बीच हुए समझौते के आधार पर याची ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि अभियोजन चलाने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा, बल्कि यह न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग ही होगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि कथित अपराध प्रकृति में गंभीर है। इसमें नाबालिग से दुष्कर्म और छेड़छाड़ शामिल है और यह अपराध ऐसे हैं, जिन्हें समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है। इन्हीं तर्कों के साथ याचिका खारिज कर दी गई।

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