संयुक्त रुप से लिखित बयान में संशोधन के लिए सभी हस्ताक्षरकर्ताओं की सहमति आवश्यक: हाईकोर्ट

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिखित बयान में संशोधन के एक मामले पर सुनवाई के दौरान अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि कई प्रतिवादियों की ओर से संयुक्त रूप से दाखिल लिखित बयान को किसी एक प्रतिवादी के कहने पर संशोधित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि अन्य प्रतिवादियों की स्पष्ट सहमति न हो। ऐसी स्थितियां अन्य प्रतिवादियों के अधिकारों और हितों को खतरे में डाल सकती हैं। 

कोर्ट ने माना कि आदेश 6 नियम 17 सीपीसी के तहत एक संयुक्त लिखित बयान में संशोधन आवेदन पर निर्णय लेते समय ट्रायल कोर्ट को पहले यह तय करना होगा कि क्या संशोधन आवेदन संयुक्त रूप से उन सभी प्रतिवादियों ने दाखिल किया है, जिन्होंने लिखित प्रस्तुतियों पर हस्ताक्षर किए थे। कोर्ट ने आगे अपने आदेश में कहा कि अगर अदालतें ऐसी स्थिति को रोकने के लिए सतर्क नहीं रहती हैं तो भविष्य में कई जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो मुद्दों को और जटिल बना सकती हैं और अनावश्यक मुकदमेबाजी सहित मुकदमे के परिणाम में देरी कर सकती हैं। 

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की एकलपीठ ने रिमांड आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 227 के तहत दाखिल चंदा केडिया की याचिका को खारिज करते हुए की। कोर्ट ने मामले पर विचार करते हुए माना कि आवेदन में संयुक्त रूप से दाखिल लिखित बयान में संशोधन के लिए प्रतिवादी संख्या 2 से सहमति प्राप्त करने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इससे प्रतिवादी संख्या 2 के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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