प्रयागराज : मनमोहन कृष्णा समेत 3 प्रोफेसर्स के खिलाफ वारंट जारी
अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मनमोहन कृष्णा, प्रोफेसर प्रहलाद कुमार और प्रोफेसर जावेद अख्तर के खिलाफ गैर जमानती वारंट एनबीडब्ल्यू जारी हुआ है। तीनो लोगों के खिलाफ यह वारंट प्रयागराज की सीजेएम कोर्ट ने जारी किया है। तीनों पर विभाग की ही महिला असिस्टेंट प्रोफेसर ने यौन शोषण और एससी-एसटी एक्ट के तहत 2016 में केस दर्ज कराया था। 4 अगस्त 2016 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर तैनात दीप शिखा सोनकर का आरोप था कि विभाग के ही प्रो. प्रहलाद कुमार और कुछ अन्य वरिष्ठ शिक्षक अनुसूचित जाति का होने के कारण शुरू से ही द्वेष रखते रहे हैं। इसकी शिकायत मैंने विश्वविद्यालय में, कर्नलगंज कोतवाली में और अनुसूचित जाति जनजाति आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग में कर दिया था। तभी से प्रो. प्रहलाद कुमार, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. मनमोहन कृष्ण मुझे अपमानित और प्रताड़ित कर रहे हैं।
4 अगस्त को लगभग 12.45 बजे दिन में विभागाध्यक्ष ने अपने कक्ष में विभाग के कर्मचारी रमेश से मुझे बुलवाया, जब मैं गई तो पूर्व नियोजित ढंग से वहां प्रो. मनमोहन कृष्ण, प्रो. प्रहलाद कुमार और डॉ. जावेद अख्तर पहले से बैठे थे। मेरे पहुंचने पर मनमोहन कृष्ण ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए मुझे डांटना शुरू किया और एक घंटे तक मुझे कक्ष में खड़ा कराये रखा। लगातार घूरते रहे और बीच-बीच में अपशब्दों का प्रयोग करते रहे। बार-बार मेरे कहने पर कि मैं जाऊं तो उन्होंने मुझे जाने नहीं दिया और अनुसूचित जाति की हो अपनी औकात में रहो, कहकर धमकाया। इस घटना से मैं अपने को बेहद अपमानित पीड़ित एवं असुरक्षित महसूस कर रही हूं। जब से मैंने अपने उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी है तब से प्रो. प्रहलाद कुमार, प्रो. मनमोहन कृष्ण और जावेद अख्तर उक्त शिकायत को वापस लेने का दवाव बनाते रहते हैं। अनेक असामाजिक तत्वों को मेरे पास भेजते रहते हैं। तरह तरह से मेरा उत्पीडन करते रहते हैं। तहरीर के आधार पर कर्नलगंज पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर जांच की थी। अब इसी मामले में तीनों आरोपियों को सीजेएम कोर्ट ने गैर जमानती वारंट जारी किया है।
जिस मामले में एनबीडब्ल्यू जारी, उसे खारिज कर चुकी है विश्वविद्यालय की जांच कमेटी
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की जनसंपर्क अधिकारी डॉ. जया कपूर ने बताया कि विश्वविद्यालय ने दीपशिखा सोनकर की शिकायत को गंभीरता से लिया था और तत्कालीन कुलपति द्वारा शिकायत तुरंत नियमानुसार गठित समिति (सीकैश) को दे दिया गया था। समिति ने मामले की विस्तृत पड़ताल की थी और दीशिखा की शिकायत पूरी तरह निराधार निकली थी। इस दौरान सोनकर ने समिति द्वारा भेजे गए सवालों के जवाब भी नहीं दिए थे और अपने आरोपों के संबंध में कोई सबूत भी समिति के समक्ष प्रस्तुत नहीं किये थे। समिति को सोनकर के सहकर्मियों ने असहयोगी और अवज्ञापूर्ण बताया था, जबकि तीनों ही आरोपित शिक्षकों के आचरण से किसी भी प्रकार की कोई शिकायत सामने नहीं आयी थी। उनके असहयोग एवं अपनी बात के पक्ष में साक्ष्य न दे पाने के कारण समिति ने उनकी शिकायत को विभाग एवं उसके वरिष्ठ प्रोफेसरों और विश्वविद्यालय की मानहानि से प्रेरित पाया था।
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