प्रयागराज : सभी अधीनस्थ अदालतों को दो सप्ताह के भीतर जमानत याचिकाओं के निस्तारण के निर्देश

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत सप्ताह उत्तर प्रदेश के सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन में सभी जमानत याचिकाओं के निस्तारण के संबंध में निर्देश जारी किए।

हाईकोर्ट के महानिबंधक राजीव भारती द्वारा लिखे गए पत्र में उत्तर प्रदेश के जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को निर्देश दिया गया है कि वह दो सप्ताह के भीतर सभी जमानत आवेदनों का निस्तारण करें और दिशानिर्देशों के सख्त अनुपालन की निगरानी के बाद मासिक आधार पर संबंधित प्रशासनिक न्यायाधीश को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने की बात कही गई है। पत्र में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र किया गया है, जिसमें शीर्ष अदालत के बार-बार स्पष्ट निर्देश जारी किए जाने के बाद भी न्यायिक अधिकारियों द्वारा जमानत के मामलों में तत्परता नहीं दिखाई जा रही है।

गौरतलब है कि इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट इस बात से नाराज था कि फैसला सुनाए जाने के 10 महीने बाद भी जिला अदालतें सत्येंद्र कुमार अंतिल मामले में जारी निर्देशों का पालन गिरफ्तारी एवं जमानत के संबंध में नहीं कर रही हैं। गैर अनुपालन का दोहरा असर हो रहा है, जैसे लोगों को तब हिरासत में भेजा जा रहा है, जब भेजने की आवश्यकता नहीं है और अनावश्यक मुकदमेबाजी के कारण न्यायालयों पर बोझ बढ़ता जा रहा है। उक्त अवमानना से अप्रसन्न सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर मजिस्ट्रेट निर्धारित कानून की अवहेलना में आदेश पारित कर रहे हैं तो उन्हें अपने कौशल के उन्नयन के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजे जाने की आवश्यकता हो सकती है।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय का कर्तव्य है कि अधीनस्थ न्यायपालिका उनकी देखरेख में देश के कानून का पालन करती रहे। जिला अदालतें उच्च न्यायालयों की निगरानी में रहें और निचली अदालतों का मार्गदर्शन करना, उन्हें शिक्षित करना, उच्च न्यायालय का कर्तव्य माना गया है। उपरोक्त दिशानिर्देशों तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर उच्च न्यायालय ने आपराधिक मामलों से निपटने वाली सभी अदालतों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि सीआरपीसी की धारा 309 का अक्षरशः अनुपालन सुनिश्चित होना चाहिए। अनावश्यक स्थगनों में सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।

जमानत मामलों में न्यायालयों को सीआरपीसी की धारा 41, 4-ए के अनुपालन में कार्य करना होगा और गैर अनुपालन की स्थिति में आरोपी को जमानत मिल सकती है। संहिता की धारा 88, 170, 204 और 209 के तहत दर्ज मामलों में जमानत आवेदनों पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही सिद्धार्थ बनाम यूपी राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित शासनादेश का कड़ाई से पालन किया जाए। जमानत शर्तों का पालन करने में विचाराधीन कैदियों की रिहाई को सरल बनाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 440 के आलोक में उचित कार्यवाही करने की जरूरत है। अग्रिम जमानत के लिए आवेदनों पर विचार करते समय हस्तक्षेप की स्थिति उत्पन्न होने पर अर्जियों का निपटारा 6 सप्ताह के अंदर होना चाहिए।

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