ध्वस्त किया गया पटना कलेक्ट्रेट आज भी जिंदा है विरासत प्रेमियों की स्मृतियों में
पटना/नई दिल्ली। युवा वास्तुकार दीप्तांशु सिन्हा को आज भी 14 मई, 2022 का वह दिन कांटे की तरह चुभता है, जब पटना कलेक्ट्रेट की एक इमारत को ढहाने के लिये बुलडोजर चलाया गया था। ब्रिटिशकालीन पटना जिला परिषद की इमारत जिसके हॉल में अलंकृत ‘कोरिंथियन’ स्तंभ थे, पिछले साल 17 मई तक जमींदोज कर दिये गये थे। डच कालीन ‘रिकॉर्ड रूम’ इमारत के सामने के छोटे हिस्से को छोड़कर बाकी को मलबे के ढेर में बदल दिया गया था।
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कुछ ही महीनों में ऊंची छतों, बड़े-बड़े दरवाजों, शानदार स्तंभों और सदियों के इतिहास को समेटे दीवारों को नया कलेक्ट्रेट परिसर बनाने के लिए ढहा दिया गया था। ऑस्कर विजेता फिल्म ‘‘गांधी’’ में भी इस इमारत को दिखाया गया है। इस इमारत को ढहाये जाने को लेकर भारत और विदेशों में विरासत प्रेमियों और गांधीवादियों में रोष पैदा हो गया था।
सिन्हा ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर न्यास (इंटैक) की याचिका को खारिज किये मुश्किल से एक दिन भी नहीं बीता था कि बुलडोजर से सदियों पुराने कलेक्ट्रेट परिसर को तोड़ने का काम शुरू हो गया था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग इस ऐतिहासिक परिसर को चाहते थे उन्हें इसे एक बार देखने का भी मौका नहीं दिया गया।
जब इसे तोड़ा जा रहा था, तो मैं दुखी था और खुद को असहाय तथा दोषी महसूस कर रहा था।’’ सिन्हा (26) ने कहा, ‘‘एक वर्ष बीत जाने के बाद भी मैं उन मशीनों की आवाज को अपने दिमाग से नहीं निकाल पा रहा हूं, जिसके जरिये इस इमारत को ढहाया जा रहा था।’’ सिन्हा, भारत और विदेशों में रहने वाले पटना के कई अन्य मूल निवासी और समान सोच रखने वाले अन्य देशों के लोग ‘ऐतिहासिक पटना कलेक्ट्रेट बचाओ’ का हिस्सा थे, जो 2016 से इसे बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
उच्चतम न्यायालय ने पटना कलेक्ट्रेट परिसर को ढहाए जाने का रास्ता पिछले साल 13 मई को साफ करते हुए कहा था कि औपनिवेशिक शासकों द्वारा बनाई गई प्रत्येक इमारत को संरक्षित करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने इंटैक की ओर से दाखिल याचिका खारिज कर दी थी। बारह एकड़ के पटना कलेक्ट्रेट परिसर में डच-युग के ‘रिकॉर्ड रूम’ के साथ ही अन्य इमारतों को गिरा दिया गया था।
पटना कलेक्ट्रेट में जिला अभिलेख कक्ष की ‘डिप्टी कलेक्टर इन चार्ज’ के रूप में काम कर चुकी 70 वर्षीय बीना मिश्रा ने कहा कि कलेक्ट्रेट को तोड़कर पटना का ‘‘गहना लूट लिया गया है।’’ उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं 1981 में एक परिवीक्षाधीन के रूप में पटना कलेक्ट्रेट कार्यालय में कार्यरत थी और पुराने रिकॉर्ड रूम में रखे दस्तावेज, जिनमें से कुछ 200-300 साल पुराने थे, एक वास्तविक खजाना थे।’’
पटना में जन्मीं मिश्रा ने कहा कि ‘रिकॉर्ड रूम’ एक ‘‘खूबसूरत इमारत थी, जिसे आने वाली पीढ़ियों को देखना चाहिए था।’’ पटना कलेक्ट्रेट (जिला प्रशासन का मुख्यालय) अब एक नया अवतार ले रहा है, और गंगा के तट पर एक नया बहुमंजिला कलेक्ट्रेट परिसर बनाने का काम जोरों पर जारी है, और इसके दो साल में पूरा होने की उम्मीद है।
पटना कलेक्ट्रेट में ब्रिटिश काल के डीएम कार्यालय भवन, डच युग के जिला अभियंता कार्यालय भवन, एसडीओ कार्यालय भवन और भूमि अधिग्रहण कार्यालय भवन शामिल थे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जिला प्रशासन ने नये परिसर में ‘‘संरक्षित स्तंभों को उपयुक्त रूप से प्रदर्शित करने’’ की योजना बनाई है।
कई इतिहासकारों, विद्वानों, संरक्षण वास्तुकारों, गांधीवादियों और आम नागरिकों ने ऐतिहासिक पटना कलेक्ट्रेट को ढहाये जाने पर नाराजगी जताई है। पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व प्रमुख भारती कुमार ने कलेक्ट्रेट को ढहाये जाने का विरोध किया था। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि "पटना में विरासत भवनों को या तो विकास के नाम पर ढहाया जा रहा है या संस्थागत उपेक्षा के कारण ठीक से संरक्षित नहीं रखा जा रहा है।’’
मुंबई की संरक्षण वास्तुकार आभा नारायण लांबा ने कई शहरों में संरक्षण परियोजनाओं पर काम किया है और इनमें से कुछ ने यूनेस्को पुरस्कार भी प्राप्त किये हैं। लांबा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘पुरानी इमारतों को ढहाने से शहर की ऐतिहासिक विरासत और महान स्मृतियां मिट जाती हैं। पटना में ऐतिहासिक इमारतों के मामले में सोच समझकर फैसला लिया जाना चाहिए।’’
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