मां के लिए श्रवण कुमार बन गया मैसूर का “कृष्ण”, पांच साल से मां को देश-विदेश के मंदिरों का करा रहा भ्रमण
लखनऊ/अमृत विचार। मैसूर में कृष्ण कुमार का जन्म दस लोगों के एक संयुक्त परिवार में हुआ। पढ़ाई के बाद उन्हें बंगलौर की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। समय पंख लगाकर उड़ने लगा। जब भी समय मिलता वह मैसूर आते और परिवार से मिलकर वापस लौट जाते। 2015 में पिता की मौत हो गई तो मां से मिलने जल्दी-जल्दी मैसूर आने लगे। अगस्त 2018 में वह छुट्टी लेकर घर आये तो अपनी मां से पूछा कि मैसूर में कौन-कौन से मंदिर देखे हैं। सवाल सुनकर मां ने कहा कि मैंने तो अपने मोहल्ले तक का मंदिर नहीं देखा।
ये सुनकर कृष्ण कुमार की आंखों में आंसू आ गए कि मां ने कभी घर की दहलीज तक नहीं लांघी। उन्होंने मां के हाथ थामे और कहा कि अब तुम्हें मैं भारत का हर मंदिर दिखाऊंगा। बेटे की बात पर मां चूड़ारत्नम्मा डबडबाती आंखों से बोली कि तेरे पिता के बगैर कैसे देख पाउंगी इतना सब कुछ। कृष्ण कुमार ने आश्वस्त किया कि पिता भी हमारे साथ होंगे।
कृष्ण कुमार ने जनवरी 2018 में नौकरी से इस्तीफा देकर 16 जनवरी को मां को तेईस साल पुराने बजाज चेतक स्कूटर को लेकर भारत भ्रमण पर निकल पड़ा। यात्रा के लिए उन्होंने पिता के स्कूटर को महज इसलिए चुना कि स्कूटर के रूप में पिता का भी साथ मिल सके। बुजर्ग मां बेटे के साथ स्कूटर पर सवार होकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफ़र कर चुकी हैं।
यहीं नहीं बेटे ने भूटान, म्यांमार और नेपाल तक घुमा दिया। हालांकि कोरोना काल में लॉक डाउन के दौरान उनका सफर थम गया। इस दौरान वह मैसूर से 2673 किलोमीटर दूर भूटान में थे। विपरीत परिस्थितियों में कृष्ण कुमार ने मां को स्कूटर पर बिठाकर 400 किलोमीटर का रोजाना सफ़र किया और सात दिनों में वापस अपने घर पहुंच गए।
कोरोना लॉकडाउन समाप्त होने के बाद कृष्ण कुमार ने 15 अगस्त 2022 को यात्रा का दूसरा अध्याय शुरू किया। केरल से मंदिर-मंदिर घूमते हुए मां-बेटे नेपाल पहुंच गए। काठमांडू से सोनौली, लुम्बिनी और कुशीनगर होते हुए गोरखपुर पहुंच गए। गोरखनाथ मंदिर के दर्शन के बाद अयोध्या और लखनऊ आ गए। लखनऊ के मंदिरों के दर्शन के बाद वह नैमिषारण जाएंगे। अब तक वह अपनी मां के साथ स्कूटर से 69,042 किलोमीटर का सफ़र तय कर चुके है।
पांच भाषाओं का जानकार, गीतकार भी है कृष्ण कुमार
मां की सेवा के लिए कृष्ण कुमार ने शादी नहीं की। वह अच्छा गीतकार है। इसके अतरिक्त उसे कन्नड़, तेलगू, मलयालम, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं का जानकारी है। 13 साल की नौकरी के दौरान अपनी सारी कमाई उसने मां के एकाउंट में फिक्स डिपाजिट करा दिया। इस राशि से प्रति माह मिलने वाले ब्याज से मां-बेटे के दोनों वक्त का खाना और स्कूटर के पेट्रोल का इंतजाम हो जाता है।
पिता को खो चुका, मां को जीवन भर हंसाना चाहता हूं
लखनऊ पहुंचे कृष्ण कुमार ने कहा कि मैं मां की तस्वीर पर माला चढ़ाने में भरोसा नहीं करता। मां-बाप धरती के भगवान हैं। पिता को खो चुका हूं। मां को जिन्दगी भर हंसाना चाहता हूं। स्कूटर से इतने लम्बे सफ़र में आपको और आपकी मां को थकन नहीं होती, पूछने पर वह बोले कि हर दिन नया देखता हूं, अच्छे लोगों से मिलता हूं, थकान पास नहीं फटकने पाती। इस यात्रा में किसी से एक रुपया भी नहीं लिया। स्कूटर से चलते देखकर महिंद्रा ने मुझे कार भेंट की थी लेकिन मैं पिता के दिए उस स्कूटर पर चल रहा हूं जो उन्होंने मुझे 21 साल की उम्र में दिया था।
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