विश्व कछुआ दिवस: रामगंगा नदी में कछुओं की आठ में तीन प्रजातियां संकटग्रस्त

पालेज की खेती और कछुओं की तस्करी से विलुप्तीकरण का संकट

विश्व कछुआ दिवस: रामगंगा नदी में कछुओं की आठ में तीन प्रजातियां संकटग्रस्त

मोनिस खान, बरेली, अमृत विचार। भारतीय संस्कृति में कछुओं का पौराणिक महत्व है। पूरे देश में कछुओं की लगभग 29 प्रजातियां हैं, जिनमें से 15 प्रजातियां सिर्फ प्रदेश में पाई जाती हैं, लेकिन आज मानव निर्मित संकट ने कछुओं की कई प्रजातियों को विलुप्तीकरण की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।

बरेली और आसपास के जिलों में बहने वाली रामगंगा नदी में ही कछुओं की आठ प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन तस्करी और शिकार के चलते आज इन आठ में से तीन प्रजातियां संकटग्रस्त हैं। यही वजह है कि वन विभाग की मदद से आज डब्लू डब्लू एफ इंडिया कछुओं के संरक्षण को लेकर काम कर रहा है। खास तौर से बरेली के फरीदपुर क्षेत्र में नदी किनारे हैचरियां बनाकर कछुओं और उनके अंडों के संरक्षण का कार्य किया गया।

डब्लू डब्लू एफ इंडिया के समन्वयक डॉ. मोहम्मद आलम बताते हैं कि कछुआ करीब 20 हजार करोड़ वर्ष पहले से हो रहे जलवायु परिवर्तन के अनुरूप अपने आप को ढाल रहे हैं। इनकी खासियत है कि यह नदी, तालाब, जलाशयों के पारिस्थितिकी तंत्र में अहम किरदार अदा करते हैं।

मसलन साफ पानी को प्रदूषित करने वाले पदार्थों व बीमार मछलियों को खाकर पानी की स्वच्छता बरकरार रखते हैं, लेकिन कुछ लोग अपने फायदे के लिए कछुओं की तस्करी करते हैं। वहीं नदी किनारे होने वाली खेती ( पॉलेज) के कारण सबसे ज्यादा कछुओं को नुकसान होता है। आलम के मुताबिक नदी जितना ज्यादा प्रदूषित होगी, उतना कछुआ की प्रजातियां संकटग्रस्त होंगी। जिसका बड़ा उदाहरण मुरादाबाद जिला है। यहां रामगंगा नदी काफी प्रदूषित है। ऐसे में कछुआ संरक्षण को लेकर काफी मेहनत करनी पड़ी। कई बार कछुए मछुआरों के जाल में फंसकर मर जाते हैं।

रामगंगा में मिलने वाले कछुआ की आठ प्रजातियां
रामगंगा नदी में जो आठ प्रजातियां मिलती हैं उनमें इंडियन ब्लैक टर्टल, ब्राउन रुफ्ड टर्टल, इंडियन टेंट टर्टल, थ्री-स्ट्रिप्ट रुफ्ड टर्टल, इंडियन फ्लैप्सेल टर्टल, इंडियन सॉफ्टशैल टर्टल, इंडियन नैरो-हेडेट साफ्टशैल टर्टल, इंडियन हिल टर्टल शामिल हैं, जिसमें से ब्राउन रुफ्ड टर्टल, इंडियन टेंट टर्टल, थ्री-स्ट्रिप्ट रुफ्ड टर्टल कछुआ की तीन प्रजातियां इन दिनों संकट ग्रस्त हैं।

संरक्षण के लिए मयूर वन चेतना में कछुआ नर्सरी
कछुआ संरक्षण के लिए मयूर वन चेतना में तालाबनुमा नर्सरी बनाई गई है। नदी किनारे खेती करने वाले किसानों को जागरूक किया जाता है कि अगर उन्हें कछुआ के अंडे मिलें तो सूचना दें। इन्हें कछुओं के सुरक्षित घोसलों और अनुकूल टापू स्थित हैचरी में स्थानांतरित किया जाता है। अंडों से जन्म के बाद शावकों को हैचरी से नर्सरी में लेकर आते हैं, ताकि शुरुआती दिनों में खतरों से बचाया जा सके। इसके बाद उन्हें नदी में सुरक्षित छोड़ दिया जाता है।

वन विभाग व जिला प्रशासन के सहयोग से डब्लूडब्लूएफ की टीम कछुओं के संरक्षण को लेकर काम कर रही है। मयूर वन चेतना में शावक कछुओं के लिए नर्सरी भी बनाई गई है। विभाग संकटग्रस्त कछुओं की प्रजाति के संरक्षण को लेकर बेहद गंभीर है- ललित कुमार वर्मा, मुख्य वन संरक्षक।

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