प्रयागराज में बाढ़ के बाद गंगा किनारे फिर दिखेगा शवों का भयावह मंजर

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। जुलाई के माह में गंगा नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में फाफामऊ घाट पर दफनाई गयी लाशों को लेकर स्थानीय घाट के पुरोहित और वहा के रहने वालो फिर से चिंतित होने लगे है। बाढ़ के वापस लौटने के बाद दफनाई गईं लाशे जमीन से बाहर आ जाएगी। कोरोना काल के बाद एक बार फिर वही भयावह मंजर देखने को मिलेगा। प्रशासन की तरफ से कोई भी तैयारी नहीं की गयी है।

ज्ञात हो कि कोरोना काल के समय लाशों को जलाने पर पाबंदी थी। साथ ही घाट पर चिताओं के लिए जगह कम पड़ रही थी। जिसके बाद लोग लाशो का अंतिम संस्कार करने के लिए घाट के किनारे दफना रहे थे। हलाकि उस वक्त प्रशासन ने काफी समय बाद लाशों को दफनाने के सिलसिले को बंद कराया था। उस वक्त बारिश से लाशे उपर आ गयी थी। उस वक्त भी प्रशासन ने कोई उचित व्यवस्था नहीं की थी। 

कोरोना में दफनाये गये थे शव
यूपी के प्रयागराज से गुजरने वाली गंगा नदी में तेरह से अधिक लावारिस शव मिल चुके हैं जिसमें तीन आत्महत्या करने वालों के चिन्हित हुए जबकि अन्य बहते शवों का पता नहीं चल सका है। दूसरी ओर गंगा-यमुना किनारे फाफामऊ, श्रृंगवेरपुर, छतनाग, अरैल घाट जैसी कई जगहों पर बड़ी मात्रा में शव दफन मिले हैं। हालांकि यह कह पाना मुश्किल है कि गंगा किनारे रेत में दफन शवों में कितने कोरोना संक्रमित हैं।

संगम तट के दोनों छोर छतनाग और अरैल घाट क्षेत्र में जहां तक नजर जाती है, रेत में दफन शव ही शव नज़र आ रहे हैं। वहीं शहर के दूसरे छोर फाफामऊ में भी बड़ी मात्रा में शव दफन हैं। रेत में दफन होने के कारण शवों की ठीक-ठीक संख्या बता पाना मुश्किल है लेकिन अनुमानित संख्या हजार से भी अधिक हो सकती हैं।

मंडराने लगा खतरा, बढ़ेगी दिक्क़त
प्रयागराज में गंगा-यमुना किनारे भारी संख्या में शवों के दफनाए जाने से पर्यावरण तथा जल प्रदूषण का गम्भीर खतरा मंडराने लगा है। हर साल जुलाई माह से ही गंगा का जलस्तर बढ़ने लगता है। आस-पास के कई मोहल्ले, मंदिर और आश्रम पानी में डूब जाते हैं। फाफामऊ, छतनाग और अरैल घाट के आस-पास तेलियरगंज, सलोरी, बघाड़ा, दारागंज, छतनाग में रहने वाले लोगों में दहशत का माहौल है। 

ये बोले लोग 
कछार में भैंस चरा रहे गांव के सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि "हिन्दू समुदाय में भी कुछ लोग मान्यताओं के कारण अपने परिजन के शवों को मिट्टी में दफन करते हैं लेकिन इतनी बड़ी संख्या में पहली बार शव कछार में दफन किये गए हैं। छतनाग घाट पर दस दिन पहले तक अंधाधुंध लाश जली। शव लाने वालों का तांता लगा रहता था। शव रखने की जगह नहीं रहती थी। लेकिन अभी कुछ सामान्य हुआ है दिनभर में 25-30 लाशें अभी भी आ रही हैं।"

वही पुरोहित शिवशंकर ने कहा कि "जो लाशें मिट्टी में गाड़ी गई हैं। वो बाढ़ आने पर ऊपर नहीं आएंगी लेकिन जो बालू में गाड़ी गई हैं वो बारिश में उतरा (ऊपर) आएंगी। इतना ही नहीं मानव कंकाल बनारस तक पहुंच जाएंगे।"तीन दिनों की लगातार बारिश के बाद गंगा किनारे रेत में दफन शव खुलने लगे। श्रृंगवेरपुर के आस-पास रहने वालों ने बताया कि कुछ शवों के खुलने के बाद कुत्ते और सूअर नोच रहे थे।

शव दफ़नाने पर लगाई रोक 
सूचना के बाद कुछ जगहों पर लाशों पर मिट्टी भी डलवाई गयी हैं। वहीं ग्रामीणों की शिकायत के बाद लाशों को दफन करने पर रोक लगा दिया गया था। पहले और अब जगह-जगह शवों को दफन न करने की चेतावनी लिखी गई हैं। जो शव दफनाये गये है अब उन्हे कुछ नही किया जा सकता है लेकिन आगे के लिए पूरी तरह से रोक लगाई गयी है।
- संजय खत्री, जिलाधिकारी,प्रयागराज

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