हल्द्वानी: उत्तराखंड की एक ऐसी जगह जहां रहती हैं परियां और खुद ही पनप जाते हैं लहसुन और अखरोट

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Published By Bhupesh Kanaujia
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हल्द्वानी, अमत विचार। उत्तराखंड का सीधा मतलब देवभूमि और यहां के लोगों का देवी-देवताओं में असीम विश्वास। वैसे जो भी हो आज भी कई जगहें ऐसी हैं जो रहस्यों से भरी हुई हैं। इन्हीं में से एक जगह है टिहरी गढ़वाल में स्थित खैट पर्वत जिसे परी लोक के नाम से जाना जाता है। समुद्र तल से करीब 10000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद यह पर्वत रहस्यमयी घनसाली इलाके में स्थित थात गांव से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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स्थानीय लोगों की मान्यता है कि, खैट पर्वत की परियां ही गांव की रक्षा करती हैं वहीं इसे इसलिए भी रहस्यमयी माना जाता है क्योंकि यहां पर सालभर फल और फूल खिले रहते हैं। इन फल और फूलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर ये तुरंत खराब हो जाते हैं। लेकिन सबसे हैरत की बात तो ये है कि इस वीरान पर्वत पर अपने आप ही अखरोट और लहसुन की खेती पनप जाती है। अखरोट के बागान लुकी पीड़ी पर्वत पर बने मां बराडी के मंदिर के गर्भ जोन गुफा के करीब ही हैं।

थात गांव से 5 किमी की दूरी पर खैटखाल मंदिर है, जिसे रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र भी कहा जाता है। स्थानीय लोग इसे परियों या आछरियों के मंदिर के रूप में भी पूजते है। यहां प्रतिवर्ष जून माह में मेला लगता है। कहा जाता है कि परियों को चटकीला रंग, शोर और तेज संगीत पसंद नहीं है, इसलिए यहां इन बातों की मनाही भी है।

इस इलाके में जीतू नाम के एक व्यक्ति की कहानी भी काफी चर्चित है, कहते हैं जीतू की बांसुरी की आवाज पर आकर्षित होकर परियां उसके सामने आ गईं और उसे अपने साथ ले गईं। अमेरिका की मैसासयुसेट्स विश्वविद्यालय ने इस पर्वत पर एक शोध किया था, इस शोध में उन्होंने पाया कि, यहां कुछ ऐसी शक्तियां है, जो अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

 मान्यता है कि, इस पर्वत पर 9 परियां रहती हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में आछरियां कहते हैं, सबसे आश्चर्यजनक बात या है कि, यहां अनाज कूटने वाली ओखलियां जो समतल पर बनी होती हैं, खैट पर्वत पर ये ओखलियां दीवारों पर बनी हैं।  एक और कहानी प्रचलति है कि सदियों पहले टिहरी गढ़वाल के चौदाण गांव में राजा आशा रावत का राज हुआ करता था, राजा की छह पत्नियां थीं, लेकिन उनका कोई पुत्र नहीं था।

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राजा इससे बेहद बहुत परेशान रहने लगे थे, राजा की परेशानी देखकर उनकी पहली पत्नी ने कहा कि आप राजा हो तो आप 7वां विवाह कर सकते हो इसके बाद राजा आशा रावत पास ही के थात गांव गए तो वहां दीपा पवार नाम के एक शख़्स ने उनकी ख़ूब खातिरदारी की, दीपा पवार ने जब राजा साहब से थात गांव आने का कारण पूछा तो राजा ने कहा, मैं आपकी छोटी बहन देवा से शादी करना चाहता हूं।

 ये बात सुनकर पूरा गांव उत्साहित हो उठा इसके बाद राजा का विवाह देवा से हो गया और देवा चौदाण रानी बन गईं। इसके कुछ समय बाद रानी देवा ने एक के बाद एक पूरे 9 बच्चों को जन्म दिया, जिनका नाम राजा ने कमला रौतेली, देवी रौतेली, आशा रौतेली, वासदेइ रौतेली, इगुला रौतेली, बिगुल रौतेली, सदेइ रौतेली, गरादुआ रौतेली और वरदेइ रौतेली रखा था। 

राजा आशा रावत और रानी देवा की ये बेटियां आम बच्चों की तरह नहीं थी, बल्कि चमत्कार से कम नहीं थीं, उनमें विशिष्ट दैवीय शक्तियों सी आभा थी। 12 वर्ष की उम्र तक सभी बेहद सुंदर दिखने लगी थीं, कहा जाता है कि एक रात सभी बहनें गहरी नींद में सोई हुई थीं इस दौरान उनके सपने में सेम नागराज आए और उन्होंने सभी बहनों को अपनी रानी बना लिया लेकिन जब सुबह उठते ही सभी बहनें जल स्रोत गईं तो उन्होंने देखा कि उनके गांव में अंधेरा पसरा पड़ा है जबकि ऊंचे पर्वतों पर धूप खिली हुई है, सूरज की इसी तलाश में जब सभी बहनें खैट पर्वत पहुंचीं तो आंछरी (परियां) बन गईं।

स्थानीय लोगों की मान्यता है कि ये आज भी खैट पर्वत पर परियां बनकर घूमती हैं। दरअसल, उत्तराखंड में कुल देवता को प्रसन्न करने की पूजा विधि के दौरान भी राजा आशा रावत और रानी देवा की बेटियों का आंछरी (परियां) बनाने की ये कहानी उल्लेखित होती है। इसलिए भी इस कहानी को सच माना जाता है और खैट पर्वत को परियां का देश कहा जाता है।

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