प्रयागराज : सामाजिक सुरक्षा और शांति के लिए सजायाफ्ता अपराधी जमानत योग्य नहीं
अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दुर्दांत अपराधी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि सार्वजनिक शांति और समाज की भलाई सुनिश्चित करने हेतु ऐसे सजायाफ्ता अपराधी, जो जघन्य तथा नरसंहार से संबंधित अपराधों में अभ्यस्त अपराधी हो, निश्चित रूप से वह जमानत देने के योग्य नहीं है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर मामले के गुण-दोष पर बिना कोई टिप्पणी किये याची के जमानत आवेदन को निरस्त कर दिया गया। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की एकल पीठ ने रमेश उर्फ पुन्ना की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दी। याची के खिलाफ थाना जलालाबाद, शाहजहांपुर में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले के अनुसार वर्ष 2007 में आईजी जोन, बरेली के निर्देशानुसार 50 हजार रुपए का इनामी डकैत नरेशा धीमर द्वारा अपहृत व्यक्तियों को छुड़ाने के लिए पुलिस फोर्स ग्राम चाचुआपुर, कटरी पहुंची, जहां याची व अन्य आरोपियों द्वारा पुलिस बल पर जान से मारने की नीयत से फायरिंग की गई, जिसमें पुलिस के जवान आरक्षी यशवीर की मृत्यु हो गई। याची के अधिवक्ता का तर्क है कि याची को मामले में झूठा फंसाया गया है। उसे तथाकथित घटनास्थल से गिरफ्तार भी नहीं किया गया है।
उसकी गिरफ्तारी घर से हुई है। मामले में रंजिशन उसे नामित किया गया है और वह लगभग 14 वर्ष 8 माह से कारागार में निरुद्ध है। इसके साथ ही उसे प्राथमिकी में नामजद भी नहीं किया गया है। सरकारी अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि अभियुक्त का अपराधिक इतिहास है और आईपीसी की धारा 302 से संबंधित प्रकरण में वह दोषसिद्ध अपराधी है।
अंत में कोर्ट ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर याचिका खारिज करते हुए जिला न्यायालय को मामले से संबंधित सत्र परीक्षण को दिन-प्रतिदिन की सुनवाई के आधार पर बिना किसी अनावश्यक स्थगन के शीघ्रता से निस्तारित करने का निर्देश दिया है।
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