हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए POCSO मामले में आरोपी की जमानत की रद्द 

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Published By Shobhit Singh
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ईटानगर। अरुणाचल प्रदेश में 21 बच्चों के यौन उत्पीड़न के आरोपी एक हॉस्टल वार्डन को जमानत दिए जाने से हैरान गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए विशेष पॉक्सो अदालत की ओर से आरोपी को दी गई जमानत अर्जी रद्द कर दी है। यह घटनाक्रम अरुणाचल के शि-योमी जिले के मोनिगोंग के कारो गांव के सरकारी आवासीय विद्यालय के छात्रावास वार्डन और आरोपी युमकेन बागरा को जमानत देने के संबंध में समाचार लेखों के बाद आया। युमकेन पर वर्ष 2019 से 2022 के बीच 6 से 12 वर्ष की आयु के 21 बच्चों (15 लड़कियों और 6 लड़कों) का यौन उत्पीड़न करने का आरोप है।

आरोपी, जिस पर 21 बच्चों पर कथित तौर पर यौन हमला करने के लिए यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 की धारा 10/12/14/(1)/15(1)/2 के तहत आरोप लगाया गया था, को गत 23 फरवरी को विशेष अदालत ने जमानत दे दी थी। गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता ने जमानत याचिका को रद्द करने का स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले को अगली 27 जुलाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। 

न्यायालय ने कहा कि रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चलता है कि सभी पीड़ितों (संख्या में 21) की उम्र 15 वर्ष से कम थी जब अधिकार प्राप्त व्यक्ति की ओर से पीड़ितों का यौन उत्पीड़न का घृणित कार्य किया गया था। इसमें हॉस्टल वार्डन पर आरोप लगाया गया था। आरोप-पत्र का अवलोकन, जिसमें पीड़ितों के बयानों का संक्षिप्त संदर्भ शामिल है, यह दर्शाता है कि आरोपी वार्डन ने हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को अश्लील फिल्में देखने के लिए मजबूर किया और बार-बार उनका यौन उत्पीड़न किया। 

अधिकांश पीड़ितों की मेडिकल रिपोर्ट इस तथ्य की पुष्टि करती है कि उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था क्योंकि उनके निजी अंगों पर हिंसा के निशान देखे गए थे। अदालत ने कहा कि मामले में आईपीसी की धारा 376एबी के तहत अपराध भी लागू किया गया है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 439(1ए) के आधार पर जमानत के लिए आवेदन की सुनवाई के समय मुखबिर या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करना अनिवार्य है। 

23 फरवरी 2023 के जमानत आदेश के अवलोकन से पता चलेगा कि विशेष अदालत ने इस अनिवार्य प्रावधान की घोर उपेक्षा की है। अरुणाचल के विशेष लोक अभियोजक ने इस आधार पर जमानत याचिका खारिज करने का अनुरोध किया कि आरोपी को जमानत पर रिहा करने से अभियोजन पक्ष पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि आरोपी गवाहों को प्रभावित करने और सबूतों से छेड़छाड़ करने की क्षमता रखता है, जिसे अभी तक दर्ज नहीं किया गया है।

अदालत ने कहा कि विशेष अदालत ने अरुणाचल के विद्वान विशेष लोक अभियोजक की इन महत्वपूर्ण आपत्तियों पर उचित विचार किए बिना व पीड़ितों के बयानों से पता चलता है कि एक गंभीर अपराध किया गया है, इसके बावजूद बिल्कुल आकस्मिक तरीके से आरोपी को जमानत दे दी। पर, सह-आरोपी डैनियल पर्टिन की अनुपस्थिति के कारण मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है।

न्यायालय ने कहा कि विशेष अदालत की ओर से आरोपी को जमानत देने के लिए कमजोर कारण बताए गए थे। जो हॉस्टल वार्डन है, उसे हॉस्टल में रहने वाले बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का कर्तव्य सौंपा गया था और उसने राक्षसी तरीके से काम किया तथा लगभग तीन वर्षों तक छोटे बच्चों का यौन उत्पीड़न किया और उन्हें अश्लील सामग्री भी दी।

एचसी ने आरोपी को जमानत रद्द करने की कार्यवाही का नोटिस जारी करने का निर्देश देते हुए कहा कि ऐसे गंभीर अपराधों के लिए आरोप पत्र दाखिल किए गए आरोपी के मुकदमे की सुनवाई के लिए फरार आरोपी के पकड़े जाने तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है तथा मुकदमों को अलग करके भी कार्यवाही जारी रखी जा सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि जिस तरह से बिना कोई ठोस कारण बताए मुख्य आरोपी को जमानत देकर इतने गंभीर और संवेदनशील प्रकृति के मामले को लापरवाही से निपटाया गया, उससे अदालत की अंतरात्मा हिल गई है। अदालत के दिमाग में जो बड़ा मुद्दा परेशान कर रहा है, वह आरोपी की जमानत पर रिहाई के बाद यौन उत्पीड़न के भयानक कृत्य के पीड़ितों की सुरक्षा से संबंधित है। 

इस बीच मुख्य न्यायाधीश ने महसूस किया कि अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और असम राज्यों में पॉक्सो अदालतों में तैनात विशेष न्यायाधीशों को संवेदनशील बनाने की उभरती हुई आवश्यकता है। न्यायमूर्ति मेहता ने कहा कि असम स्थित न्यायिक अकादमी के निदेशक तुरंत असम, नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में पॉक्सो अधिनियम के मामलों से निपटने वाले सभी न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण और संवेदनशील बनाने की प्रक्रिया शुरू करेंगे।

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