पानी शुद्ध करने के लिए अब प्यूरीफायर की नहीं पड़ेगी जरूरत, 5 साल की मेहनत के बाद रामपुर के प्रोफेसर ने की खोज, जानिए...
सदाबहार के पौधों से होगा पानी शुद्ध, भारत सरकार से मिला पेटेंट...मधुमेह रोगियों को भी मिलेगा लाभ
डा. बेबी तबस्सुम और सदाबहार के खिले फूल।
सुहेल जैदी, अमृत विचार। अब सदाबहार के पौधों से पानी भी शुद्ध होगा। जी हां...आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं। रामपुर राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय की जंतु विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. बेबी तबस्सुम की टीम ने पांच वर्षों में सदाबहार के पौधे से पानी शुद्ध करने की शोध की है। बताया कि पानी को शुद्ध करने का तरीका पूरी तरह से हर्बल है। इस पानी को पीने से मधुमेह के रोगियों को भी लाभ मिलेगा। भारत सरकार ने इस फार्मूले को पेटेंट भी दिया है।
कोसी के काले पानी को लेकर किसानों ने लंबे समय तक धरना प्रदर्शन किया और उत्तराखंड की फैक्ट्रियों से कोसी नदी में छोड़े जाने वाले दूषित जल पर रोक लगाए जाने की मांग की। लेकिन, स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। जिसके कारण नदी में रहने वाले जीव-जन्तु दम तोड़ने लगे और मछलियां मरने लगीं। वर्ष 2018 में रामपुर राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय की जंतु विभाग की प्राध्यापक डा. बेबी तबस्सुम की रिसर्च स्कालर्स की टीम ने कोसी नदी के पानी के सैंपल लिए थे। लैब में परीक्षण के बाद हैवी मेटल्स की स्थिति सामने आई थी। पानी में सबसे खतरनाक लेड की मात्रा ज्यादा मिली थी।
डा. बेबी तबस्सुम ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार पानी में लेड की मात्रा 0.10 तक हो तो कोई नुकसान नहीं, जबकि कोसी नदी के पानी में 1.355 एमजी प्रति ली. लेड मिला। कॉपर की मात्रा का मानक 0.05 एमजी प्रति लीटर है जबकि यहां 0.882 मिली मिला। पानी में आर्सेनिक, निकेल और कैडमियम भी पाया गया था। उन्होंने बताया कि दूषित जल को शुद्ध बनाने के लिए सदाबहार का पौधा संजीवनी है। इसके माध्यम से पानी को भारतीय पद्धति के मुताबिक शुद्ध किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कोई कंपनी उनसे संपर्क करती है तब जनहित में फार्मूला कंपनी को दे दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि मधुमेह रोग में सदाबहार का फूल बेहतरीन औषधि है।
सदाबहार के पौधे से रासायनिक प्रक्रिया से शुद्ध होता है पानी
डा. बेबी तबस्सुम ने बताया कि सदाबहार के पौधे से पानी को रासायनिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद शुद्ध किया जाता है। यह प्रक्रिया बहुत सस्ती है और इसमें बार-बार प्यूरीफायर की तरह फिल्टर बदलने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और यह पूरी तरह भारतीय संस्कृति के अनुरूप है।
महाविद्यालय के लिए गर्व का विषय है कि जंतु विज्ञान विभाग की प्राध्यापिका डा. बेबी तबस्सुम के रिसर्च को पेटेंट मिला है। डा. बेबी तबस्सुम महाविद्यालय के अन्य प्राध्यापकों के लिए प्रेरणास्पद हैं। भविष्य में प्राध्यापक आगे तरक्की करेंगे और इसके अलावा भी अन्य दिशाओं में कार्य करके अपना और महाविद्यालय का नाम रोशन करेंगे। - डा. दीपा अग्रवाल, प्राचार्य राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय।
दूषित पानी को शुद्ध बनाए जाने के लिए सस्ता और हर्बल तरीका लोगों के बीच पहुंचाने के लिए लंबे समय से जहन में एक सोच थी। आरओ से निकलने वाले पानी में करंट फ्लो से आयन छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। जिससे मनुष्यों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और विभिन्न प्रकार के जोड़ों के दर्द शुरू हो जाते हैं। शरीर को पानी से कोई नुकसान नहीं पहुंचे और पानी शुद्ध भी हो जाए इसके लिए कई जड़ी-बूटियां अपनाई। जिसमें नीम, सरसों, हल्दी को देखा था लेकिन, सदाबहार का परिणाम पानी को शुद्ध करने वाला मिला। - डा. बेबी तबस्सुम, प्राध्यापक, राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय।
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