शाहाबाद के दशरथ मांझी बने आशिक, जमीन के अंदर बना दिया मिट्टी का किला  

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Published By Jagat Mishra
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रामप्रकाश राठौर , शाहाबाद/ हरदोई, अमृत विचार। कहते हैं न कि जब जुनून सिर चढ़कर बोलता है तो आदमी कुछ भी कर गुजरता है। झारखंड के दशरथ मांझी के सिर जब जुनून चढ़ा तो उन्होंने पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया। दशरथ मांझी पर फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म तक बना डाली गई। ऐसा ही जुनून यहां एक युवक के सवार हुआ। इस जुनून के कारण युवक ने खुरपी और फावड़े के सहारे खेड़ा काटकर मिट्टी का एक किला तैयार कर दिया। उस किले के अंदर सुरंगे बना डाली और उस सुरंग के अंदर मस्जिद और तिरंगा झंडा बना डाला। जुनून में फंसा यह युवक  अपनी इसी हस्तकला से निर्मित मिट्टी के किले में रहता है। यहीं परवरदिगार को सजदा भी करता है। 

हरदोई जनपद के शाहाबाद कस्बे का एक चर्चित मोहल्ला है खेड़ा बीबीजई। अख्तियारपुर रोड पर मां संकटा देवी का मंदिर है रोड से पश्चिम की ओर जाने वाले रास्ते पर एक बहुत ऊंचा खेड़ा है। यहां पर खेड़ा काटकर मिट्टी का एक किला तैयार किया गया। शहर की मीडिया इस किले से बेफिक्र रही। अमृत विचार के शाहाबाद रिपोर्टर राम प्रकाश राठौर को जब यह खबर लगी तो वह किले को ढूंढते हुए वहां तक जा पहुंचे। यहां पर पहुंचने के बाद लगा यह केवल किला ही नहीं बल्कि भूलभुलैया भी है। सिर पर सवार जुनून को जमीन पर उतारा है । आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी खेड़ा बीबीजई के रहने वाले पप्पू नाम के इस शख्स को लोग आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी के नाम से जानते हैं । घर से दूर अपनी जमीन यानि खेड़ा को काटकर आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी ने एक किला तैयार कर दिया। पिछले 10 वर्षों से आशिक हिंदुस्तानी खुरपी और फावड़े के सहारे किले को तैयार कर रहा है। 10 साल के बाद भी अमृत विचार द्वारा यह पूछे जाने पर कि उनके जुनून का अंत हुआ या नहीं तो उन्होंने बताया वह वाटर लेवल तक जाकर काम करेंगे। 

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अपने पाठकों को बता दूं मिट्टी के इस किले में चारों तरफ नखासेदार डिजाइनिंग की गई परंतु भारी बारिश के चलते ज्यादातर डिजाइनिंग धुल गई है। इस किले में दो गेट तैयार किए गए हैं । एक गेट से प्रवेश है और दूसरे गेट से निकास है। प्रवेश द्वार पर मिट्टी की सीढ़ियां बनाकर 20 फीट गहराई में एक मस्जिद का नक्शा तैयार किया गया। जहां पर आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी बैठ कर नमाज अदा करते हैं। इसके अतिरिक्त इसी 20 फीट गहरी सुरंग में उन्होंने अपने सजदा करने का स्थान भी बनाया और रहने की जगह भी है। 20 फीट गहराई में ही एक पिलर के सहारे तिरंगा बनाया गया है जिससे अपने को हिंदुस्तानी होने का आशिक द्वारा बोध कराया गया। गजब की कारीगरी है। मिट्टी के इस किले में निकास द्वार पर भी 20 फीट गहराई से ऊपर आने के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं । हमारा रिपोर्टर जब मिट्टी के इस किले में पहुंचा तो आशिक ने हमारे रिपोर्टर को 20 फीट गहराई में ले जाकर सभी स्थान दिखाए। डरते डरते हमारा रिपोर्टर नीचे तक गया। टॉर्च जलाकर आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी ने रिपोर्टर को पूरा सुरंग टहलाया। 20 फीट गहराई में खुरपी और फावड़े से जितनी भी खुदाई की गई है कहीं पर मिट्टी को धसकने से रोकने के लिए इंतजाम नहीं है। बावजूद उसके भयंकर बारिश हुई और मिट्टी नीचे नहीं धसकी। आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी बेफिक्री से इसमें सोते हैं, नमाज पढ़ते और अपना दिन गुजारते हैं । उन्हें इसके गिरने और उसमें दबकर मर जाने का कोई मलाल नहीं है। 

अमृत विचार द्वारा यह पूछे जाने पर कि खुरपी और फावड़े से मिट्टी का किला खोजने का फितूर कैसे सवार हुआ तो उन्होंने कहा मेरी अपनी जमीन है । मेरे अंदर एक आवाज आई कि हमें कुछ नया करना चाहिए। उसी आवाज की वजह से स्थान और आस्थाना बनाने के लिए खुरपी और फावड़ा लेकर जुट गए और उन्होंने यह किला तैयार कर दिया। किले का वीडियो वायरल होने के बाद अब लोग आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी की कारीगरी देखने के लिए इस स्थान पर पहुंचने लगे हैं। किले तक पहुंचने के लिए एक पतली पगडंडी बनाई गई है। उस पगडंडी के दोनों और पेड़ लगाकर उनको ऊपर से बांध दिया गया है जिससे एक खूबसूरत नजारा दिखाई पड़ता है । पगडंडी के सहारे किले तक का सफर है। 

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2011-12 में शुरू किया था किले का कार्य
आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी ने वर्ष 2011-12 में जुनून सवार होने के बाद उसे जमीन पर उतारने का कार्य प्रारंभ किया था।  लगभग 10 वर्ष बीत जाने के बाद किला, उसके अंदर सुरंग, मस्जिद और तिरंगा झंडा तैयार है।

वाटर लेवल तक कार्य करना चाहता है आशिक 
मिट्टी के इस खेड़ा को खुरपी से खोदकर किले का रूप देने वाले आशिक 20 फीट गहरी सुरंग बनाने के बाद यहीं पर नहीं रुके । उनका कहना है कि वह वाटर लेवल तक जाकर कुछ न कुछ और नया बनाएंगे। इस किले में बनाई गई सुरंग में जाने से लोग काफी झिझकते हैं लेकिन आशिक अल्लाह हिंदुस्तानी इस सुरंग में बेफिक्री से नमाज अदा करते हैं। पूरा दिन गुजारते हैं और उसके बाद रात्रि में विश्राम भी यही करते हैं।

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