बरेली: खाका मास्टर की रेखाएं डालती हैं जरी-जरदोजी परिधानों में जान

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Published By Moazzam Beg
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बरेली, अमृत विचार। इसमें कोई शक नहीं कि किसी शोरूम के डमी पर टंगे जरी के परिधान को महज देखकर उसके पीछे की कारीगरी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। बेशक, इन हुनरमंदों को देखना है तो जरी के लिए मशहूर बरेली शहर की तंग गलियों में बने उन मकानों में झांकना होगा, जिनके घर का चूल्हा इसी काम से चलता है। 

हालांकि, जरी कारीगरों का जिक्र तो गाहे बगाहे होता ही रहा है, मगर जरी जरदोजी को तराशने से पहले इसका खाका कागज पर उतारने वालों को आज तक पहचान नहीं मिल सकी। जिनके बिना जरी-जरदोजी के काम की कल्पना ही नहीं की जा सकती, क्योंकि यह खाका मास्टर लकीर के फकीर नहीं, बल्कि वो हुनरमंद हैं, कागज पर खींची गईं इनकी रेखाएं ही जरी-जरदोजी के परिधानों में जान डालती हैं।

शहर के मोहल्ला शाहाबाद निवासी मकसूद हुसैन 70 साल की उम्र पार कर चुके हैं। उनके मुताबिक 40 साल पहले उनका जरी-जरदोजी का कारखाना था। बड़ी तादाद में कारीगर भी काम करते थे। तब वह अपने खाके स्वयं बनाते थे। यह वो दौर था जब खाका दिल्ली और मुंबई से बनकर आता था। 

कंपनियों में बैठने वाले डिजाइनर ही यह खाके तैयार करते थे। लेकिन 40 साल पहले जरी कारोबार से जुड़े उनके कुछ साथियों ने यहां उन्हें खाका बनाता देख खूब सराहा। जिसके बाद बड़े-बड़े जरी कारोबारी भी उनसे ही डिजाइन तैयार करवाने लगे। लिहाजा, उन्होंने जरी-जरदोजी का कारखाना बंद कर खाका मास्टर के तौर पर काम शुरू कर दिया। आज उनकी तैयार डिजाइन की मांग देश दुनिया में है। हालांकि, अगल-अलग किस्म के कपड़ों के मुताबिक नाप तौलकर डिजाइन बनाना बेहद बारीकी और तकनीक का काम है।

यही रहा हाल तो पेशेवर खाका मास्टर मिलना मुश्किल होगा
मकसूद हुसैन ने यह हुनर दोनों बेटों राजू हुसैन और मोनू हुसैन को भी दिया है। राजू इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, मगर उनका कहना है कि जो सम्मान बतौर खाका मास्टर सरकार की तरफ से मिलना चाहिए था वो आज तक नहीं मिल पाया। यूं तो पहले से ही शहर में खाका मास्टर नहीं, अगर सरकार इसी तरह उदासीन रही तो आने वाले समय में पेशेवर खाका मास्टर मिलना मुश्किल हो जाएंगे। इसलिए, जरूरी है सरकार इसके लिए ट्रेनिंग सेंटर खोले।

क्या होता है जरी का खाका
किसी भी जरी परिधान को तैयार करने से पहले उसका एक डिजाइन पेपर पर तैयार किया जाता है। फिर चाहे वो भारतीय परिधान हो या फिर वेस्टर्न ड्रेस बिना खाके के इसे तैयार नहीं किया जा सकता। राजू हुसैन बताते हैं कि वह अपने डिजाइन तो तैयार करते ही हैं, इसके अलावा जरी कारोबारी शेरवानी, लहंगा, साड़ी और पश्चिमी परिधानों के नमूने और फोटो दिखाकर उससे मिलता जुलता डिजाइन कंपनियों की मांग पर तैयार करवाते हैं।

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