Kanpur News: पत्रकार, लेखक, अधिवक्ता श्री तिलक की जयंती पर हुआ कार्यक्रम, जनता की पैरवी करना पत्रकार का परम धर्म

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Published By Nitesh Mishra
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कानपुर में पत्रकार, लेखक, अधिवक्ता श्री तिलक की जयंती पर हुआ कार्यक्रम।

कानपुर में पत्रकार, लेखक, अधिवक्ता श्री तिलक की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। जनता की पैरवी करना पत्रकार का परम धर्म है।

कानपुर, अमृत विचार। कम लोग ही ऐसे होते हैं, जो   बहुआयाम को न सिर्फ जीते हैं, बल्कि अपने काम से ऐसी अविस्मरणीय छाप छोड़ जाते हैं, जो पीढ़ियों तक याद रखी जाती है। पहले पत्रकार, फिर कथाकार और बाद में वकील यानी श्री तिलक। रविवार को उनकी जयंती पर कई वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में कई बातें कहीं।

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फेडरेशन ऑफ इंडियन जर्नलिस्ट्स एंड एक्टिविस्ट्स (फिजा) के अध्यक्ष शान्तनु चैतन्य ने कार्यक्रम की शुरुआत में कहा कि पत्रकार जनता का वकील होता है। जनता की पैरवी करना पत्रकार का परम धर्म है और श्री तिलक ने इस धर्म को पत्रकार और वकील दोनों रहते हुए सदैव याद रखा।

मनोवैज्ञानिक डॉ. आलोक बाजपेयी ने कहा कि श्री तिलक युवा पीढ़ी को बहुत स्नेह करते थे। वे कहते थे कि बच्चों से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। पूर्व डीजीएमई डॉ. वीएन त्रिपाठी ने कहा कि श्री तिलक लोगों की मदद के लिए हमेशा खड़े रहते थे।

सफर-ए-हयात का विमोचन

इस अवसर पर श्री तिलक के सुपुत्र वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राज तिलक की पुस्तक 'सफर-ए-हयात' का विमोचन किया गया। पुस्तक का सम्पादन श्याम सुन्दर निगम ने किया है। विमोचन कार्यक्रम में डॉ. आरएन चौरसिया, डॉ. अवध दुबे, प्रदीप दीक्षित, डॉ. साधना सिंह, कमल मुसद्दी, मनोज सेंगर, डॉ. विपुल सिंह, एडवोकेट धमेंद्र सिंह, डॉ. अमिता तिलक मौजूद रहीं।

गणेश शंकर विद्यार्थी पर महाग्रन्थ

श्री तिलक ने पत्रकार प्रवर-अमर बलिदानी गणेश शंकर विद्यार्थी पर डेढ़ हजार पृष्ठ का महाग्रन्थ 'युगपुरुष गणेश शंकर विद्यार्थी' रचित किया। इसमें वरिष्ठ पत्रकार विष्णु त्रिपाठी ने सम्पादन सहयोग किया। श्री तिलक की कहानी 'कफनचोर' अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुई।

मुवक्किल से धोखाधड़ी नहीं कर सकते

किस्सागोई, साफगोई और वकालत  में शहर के वरिष्ठ और वयोवृद्ध अधिवक्ता श्री तिलक का कोई जोड़ नहीं था। ग्लूकोज़ कांड का मुकदमा जब श्री तिलक के पास आया, तो उन्होंने आरोपियों से साफ कह दिया, 'बचा तो शायद आपको ईश्वर भी न पाएं, लेकिन हम मुकदमा लड़ देंगे।' मुकदमा चलता रहा और आरोपी भगवान को प्यारे होते रहे। एक दिन श्री तिलक से उनके एक कनिष्ठ वकील ने पूछा, 'बाबूजी! आप मुवक्किल को पहले ही बता देते हैं कि वह मुकदमा जीतेगा या हारेगा। ऐसे तो मुवक्किल दूसरे वकीलों के यहां चले जाएंगे।  इस पर श्री तिलक ने जवाब दिया,' तुम्हारी सलाह तो अपनी जगह बिल्कुल ठीक है, लेकिन यह वकालत है, कपड़े की दुकान नहीं, जो सैटिन को सिल्क बताकर बेच दें।'

इस पर वह कनिष्ठ वकील चुप हो गए और मायूस भी। उनका चेहरा देखकर श्री तिलक ने तुरंत चाय मंगाई और साथ में नाश्ता भी। उन्हें चाय-नाश्ता कराते हुए समझाया, 'वकील के पास हर व्यक्ति बड़ी उम्मीद से आता है। अगर हमने झूठा वादा किया, तो यह धोखाधड़ी हुई और धोखाधड़ी की धारा में हमें जेल नहीं जाना।' यह सुनकर सब लोग हंसने लगे। श्री तिलक का ' युगपुरुष गणेश शंकर विद्यार्थी-व्यक्तित्व एवं कृतित्व' इतिहास के पन्नों को संजोता एक अनमोल ग्रंथ है।
 

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