हड़ताल किसी समस्या का स्थाई और उचित उपाय नहीं, अधिवक्ताओं की हड़ताल पर हाईकोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान हापुड़ कांड के खिलाफ अधिवक्ताओं की चल रही हड़ताल पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हड़ताल को किसी संगठन के समूह द्वारा शिकायत व्यक्त करने या कुछ सौदेबाजी की मांग को आगे बढ़ाने के उद्देश्य के रूप में देखा जाता है। ऐसी कार्यवाही से कुछ अस्थाई लाभ हो सकते हैं, लेकिन अंतत: चारों ओर इसका प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ता है।

न्यायिक प्रणाली में हड़ताल न्याय के पहिए को रोक देती है, जिससे न्याय के दुश्मनों में खुशी की लहर दौड़ जाती है। उनकी लाठियां खून बहते घावों को और भी गहरा कर देती हैं। बेगुनाहों को तब तक न्याय नहीं मिल सकता, जब तक न्याय के रक्षक वकील और न्यायाधीश अन्याय के पीड़ितों के बचाव में नहीं आते हैं।

कोर्ट की तुलना उन औद्योगिक प्रतिष्ठानों से नहीं की जा सकती है, जहां ट्रेड यूनियनों द्वारा अपनी मांग पूरी करवाने के लिए हड़तालों का सहारा लिया जाता है। राज्य बार काउंसिल और बार एसोसिएशन को मांगों के लिए सौदेबाजी करने वाले ट्रेड यूनियन की तरह नहीं माना जा सकता है। वह किसी भी समस्या का समाधान कानूनी ढंग से ढूंढ सकते हैं।

अधिवक्ताओं की हड़ताल से न केवल न्यायिक समय की बर्बादी होती है बल्कि सामाजिक मूल्यों को भी भारी नुकसान पहुंचता है। याची इफराक अली खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र ने अधिवक्ताओं की हड़ताल पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हड़ताल का यह 15 दिन है।

न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बहस करने की सूचना के बावजूद न तो कोई अधिवक्ता बहस करने के लिए उपस्थित हुआ और ना ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वर्तमान याचिका पर विचार करने का कोई अनुरोध न्यायालय को भेजा गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि सामूहिक रूप से हमारे प्रयास ऐसे होने चाहिए कि राष्ट्र के समग्र विकास की यात्रा पटरी से न उतरे, लेकिन वर्तमान समय में न्याय के प्रहरी अधिवक्ता अपने मूल उद्देश्यों से भटक गए हैं।

कोर्ट ने अधिवक्ताओं की हड़ताल को समस्या का उचित समाधान ना बताते हुए कहा कि लंबे समय तक अदालतें बंद रहने से लोग अपनी समस्या के निवारण के लिए अन्य तरीकों का सहारा ले सकते हैं, जिनमें वह उपाय शामिल हो सकते हैं, जिनके लिए कानून कभी मंजूरी नहीं देगा। वर्तमान हड़ताल के पीछे हापुड़ न्यायालय में अधिवक्ताओं पर हुए लाठीचार्ज की घटना के खिलाफ आंदोलन का कुछ औचित्य हो सकता है, लेकिन हड़ताल इसका समाधान कतई नहीं है।

इसका स्थाई और उचित समाधान यह हो सकता है कि अदालतें अपना काम करें और अधिकारियों तथा नौकरशाहों की जवाबदेही तय की जाए। उन्हें लाठीचार्ज की कार्यवाही हेतु अदालतों के सामने उपस्थित होने के लिए बाध्य किया जाए, ना कि अदालतों को बंद कर दिया जाए और दोषी अधिकारियों को स्वतंत्र घूमने के लिए की आजादी दे दी जाए। उक्त टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मामले को आगामी 30 अक्टूबर 2023 के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

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