
अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस: उम्र 55, दिल बचपन, बेटे-बहू ने मुंह मोड़ा तो पहुंचे वृद्धाश्रम
मिथलेश त्रिपाठी/प्रयागराज, अमृत विचार। जीवन के आखिरी पड़ाव में भी जलेबी और समोसे की तमन्ना रखने वाले ये दंपती आज भी 55 की उम्र में बचपन का दिल लेकर अपना बाकी की जिंदगी काट रहे है। जी हां हम बात कर रहे है प्रयागराज के नैनी चकदोदी में चल रहे वृद्धाश्रम में रहने वाले बब्बू दादा और उनकी धर्मपत्नी रानी देवी की, जो बेटे और बहू की प्रताड़ना का दंश झेलने के बाद चार साल से वृद्धाश्रम में खुशी से अपना जीवन बिता रहे है।
आइये जानते है बब्बू दादा और रानी देवी की जिंदगी की कहानी...
बीते चार साल पहले की बात है। घूरपुर के रहने वाले बब्बू दादा रिक्शा चालक थे। वह अपनी पत्नी रानी, बेटे संतोष, बेटी बबिता के साथ रहते हुए अपनी छोटी सी कमाई से परिवार चलाते थे। रिक्शा खींचकर वह रुपए जुटाये और बेटी की शादी की। कुछ समय बाद बेटे ने भी अपनी मर्जी से शादी कर ली। परिवार चल रहा था। अचानक से जिंदगी ने करवट बदली और बब्बू दादा को पैरालाइसिस (लकवा) हो गया। दोनों हाथों की ताकत चली गयी। रिक्शा खींचना तो दूर वह होने हांथो से एक गिलास पानी भी नहीं पी सकते थे।
बेटे और बहू ने किया घर से बाहर
उसी घड़ी में बेटे और बहू ने अपने पिता और मा को घर से बाहर कर दिया। खुद बाहर नौकरी करने चला गया। सड़क पर बैठे दोनों बुजुर्गो को गांव के ही एक छात्र और छात्रा ने देखा। दोनों ने आपबीती सुनने के बाद उन्हे वृद्धाश्रम लेकर पहुंच गये। वो वृद्धाश्रम जो एक परिवार की तरह लोगो के जीवन में खुशियां भरने का काम 2015 से कर रहा है।
नैनी के चकदोदी इलाके में चल रहे आधारशीला वृद्धाश्रम में पहुंचने के बाद आज चार साल से बब्बू और रानी अपने जीवन को दूसरे अंदाज में जी रहे है। बब्बू दादा का कहना है कि चार साल पहले जो जिंदगी में बीता मैं उसे भूल चुका है। अब घर कि ओर रुख करने का मन हो होता है।
वहीं रानी देवी ने बताया कि घर में जो बेटे और बहू का सुख एक माता पिता को मिलना चाहिए वो तो नसीब में नहीं था पर उससे बढ़कर हमे इस आश्रम ने जो प्यार और छत की छांव दी है। हम इसी छत के निचे अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव में भी बिताना चाहते है।
आंख बंद करते ही याद आता है बच्चों का चेहरा
बब्बू दादा 24 घंटे में महज 4 घंटे ही सोते हैं। अमृत विचार से विशेष बातचीत के दौरान वह कई बार भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि वह चार घंटे हि सोते है। उन्हे नींद नही आती। 3 बजे नींद खुल जाति है । सोने के लिए जब भी आँख बंद करते है तो उन्हे होने नाती और पोते का चेहरा नजर आता है। लेकिन अफ़सोस अब उन्हे उस घर में कभी नहीं जाना है।
राम नाम की किताब को लिखना ही जीवन
रानी देवी ने बताया कि उनका सारा समय सिर राम नाम कि किताब को ही लिखने में बीत जाता है। इसके अलावा पूजा के लिए रुई कि बत्ती बनाकर अपना समय व्यतीत करती है। भजन और भाव में बाकी का जीवन काटना चाहती है।
2015 में शुरु हुआ था आधारशिला का आधार
आधार शिला वृद्धाश्रम के बारे में बराते हुए वहां कि लेखाकार अनुकृति श्रीवास्तव ने बताया कि इस संस्था को 2015 में शुरु किया गया था। तनलब से आज तक इस संस्था में जुड़कर वृद्धों कि सेवा कर रहे है। यह संस्था लखनऊ के रहने वाले शशांक गोस्वामी का है। जो इसके निदेशक है। यहां पर करीब सौ वृद्धों को रखकर उनकी सेवा कि जा रही है। उन्हे समय पर खाना, नाश्ता, कपड़े, चिकित्सा आदि सारी सुविधाए दी जाती है। यहां पर कैम्पस में ही उनके लिए मनोरंजन की व्यवस्था और एक मिनी अस्पताल की व्यवस्था की गयी है। यह संस्था समाज कल्याण विभाग के माध्यम से चलाई जा रही है।
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