बरेली: मेयर और नगर आयुक्त ने किया ढाई करोड़ से बनने वाले ग्रीन क्रिमोटोरियम का भूमि पूजन
संजय नगर श्मशान भूमि में अब गोकाष्ठ से होगा अंतिम संस्कार
बरेली, अमृत विचार। संजय नगर श्मशान भूमि में अब गोकाष्ठ से अंतिम संस्कार होंगे। अंतिम संस्कार में 90 से 100 किलो गोबर से बनी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाएगा। यह सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल हाेगा। मेयर डॉ. उमेश गौतम और नगर आयुक्त निधि गुप्ता वत्स ने बुधवार को संजय नगर श्मशान भूमि में जिले के पहले ग्रीन क्रिमोटोरियम निर्माण के लिए भूमि पूजन किया।
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मेयर डाॅ. उमेश गौतम ने बताया कि गोबर के लट्ठ निर्माण का प्लांट नंदोसी स्थित कान्हा उपवन में लगाया गया है। इसका इस्तेमाल अब अंतिम संस्कार में भी किया जाएगा। गोकाष्ठ बनाने में गाय का गोबर, कपूर, हवन सामग्री समेत अन्य सामग्री का उपयोग किया गया है। गोबर के बने ईंधन में सबसे अधिक आक्सीजन उत्सर्जित होती है, जो कि पर्यावरण के लिए अनुकूल है। संजय नगर श्मसान भूमि में अब गोकाष्ठ का ही इस्तेमाल अंतिम संस्कार में किया जाएगा। इससे लकड़ी का कटान रुकेगा और वायु प्रदूषण पर भी नियंत्रण पाया जा सकेगा।
नगर आयुक्त निधि गुप्ता वत्स ने कहा कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत श्मशान भूमि में विशेष पौधारोपण के साथ विशेष स्वर्गद्वार समेत अन्य विकास कार्य किए जाएंगे। अपर नगर आयुक्त सर्वेश कुमार गुप्ता ने कहा कि अंतिम संस्कार में चार से पांच क्विंटल लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है, अब गोकाष्ठ से 90 किलो या 100 किलो में ही अंतिम संस्कार किया जा सकेगा। इस दौरान पर्यावरण अभियंता राजीव राठी, भाजपा प्रवक्ता बंटी ठाकुर और क्षेत्रीय पार्षद भी मौजूद रहे।
अंतिम संस्कार में अभी यह है खर्च
900 रुपये प्रति क्विंटल लकड़ी, (कम से कम तीन क्विंटल जरूरी), 400 रुपये की कीमत के 200 कंडे, 200 रुपये प्रति कर्मचारी, 100 रुपये दान की रसीद
ढाई करोड़ से होगा ग्रीन क्रिमोटोरियम
संजय नगर श्मशान भूमि पर शव जलने पर अब धुआं नहीं उठेगा। नगर निगम यहां दो करोड़ रुपये से ग्रीन क्रीमोटोरियम यानी जैव शवदाह गृह बनाएगा। इसका टेंडर भी हो गया है। नगर आयुक्त निधि गुप्ता वत्स ने बताया कि एन-कैप फंड से संजय नगर श्मशान भूमि पर ग्रीन क्रिमोटोरियम बनाया जाएगा। यहां सबसे ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार होता है इसलिए इस जगह को चयनित किया गया है।
जैव शवदाह गृह में एक जगह 100 फुट ऊंची चिमनी लगाई जाएगी। पाइप और चिमनी के जरिए प्रदूषण रहित धुआं ऊपर जाएगा। चिमनी के पास ही वाटर स्प्रिंकल लगेगा। इससे जब धुएं के साथ शरीर के कण ऊपर जाएंगे तो बूंदों के छिड़काव से यह कण नीचे ही रह जाएंगे। इससे वातावरण प्रदूषित नहीं हो पाएगा।
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