शीर्ष अदालत की चिंता

शीर्ष अदालत की चिंता

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के स्थानांतरण व नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिश वाले नामों को मंजूरी देने में केंद्र का रवैया मनमाफिक चुनाव वाला है।

न्यायालय ने कहा कि कॉलेजियम ने जिन 11 न्यायाधीशों के स्थानांतरण की सिफारिश की है, उनमें से पांच का स्थानांतरण कर दिया गया है, लेकिन छह के मामले अभी लंबित हैं। इससे पहले 7 नवंबर को मामले की सुनवाई के दौरान  शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों में तबादलों के लिए अनुशंसित नामों के लंबे समय तक लंबित रहने पर चिंता व्यक्त की थी।

दरअसल कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर उच्चतम न्यायालय और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध की स्थिति रही है। पूर्व कानून मंत्री किरन रिजिजू कॉलेजियम सिस्टम में सुधार को लेकर बयान दे चुके हैं। विभिन्न क्षेत्रों की आलोचना के बीच मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कॉलेजियम सिस्टम को बेहतर विकल्प बता चुके हैं।

कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित न होकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को कहा कि चुनिंदा तरीके से नियुक्ति करने से समस्या पैदा होती है, क्योंकि लोगों की वरिष्ठता प्रभावित होती है।

इससे अच्छा संदेश नहीं जाता। यूं तो भारत में व्यवस्था के तीनों अंग-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अंशतः स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं, लेकिन वे किसी भी अंग की अत्यधिक शक्तियों पर नियंत्रण के साथ ही संतुलन भी बनाए रखते हैं। कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका को अपार शक्ति प्रदान करती है।

बता दें कि कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति व स्थानांतरण उच्चतम न्यायालय और केंद्र के बीच टकराव का प्रमुख मुद्दा है। केंद्र भी कुछ सिफारिशों के संबंध में अपनी चुप्पी और निष्क्रियता तथा कुछ नामों को मंजूरी देने में तत्परता दिखाकर अपारदर्शिता में योगदान दे रहा है।

जबकि सरकार, जो नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली की अपारदर्शिता के लिए आलोचना करती रही है, उसे कॉलेजियम द्वारा खुलासे को लेकर चिंतित होना चाहिए। यह एक स्थायी, स्वतंत्र निकाय के बारे में सोचने का समय है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिए न्यायिक प्रधानता की गारंटी देता है, लेकिन न्यायिक विशिष्टता की नहीं।

हालांकि कॉलेजियम सिस्टम एक त्रुटिविहीन तंत्र नहीं है। न्यायपालिका में नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए सरकार और शीर्ष अदालत दोनों को ही इस प्रक्रिया को पारदर्शी और सही बनाने के प्रयास जारी रखने होंगे।

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