बरेली रबर फैक्ट्री: ...तो जमीन लेने के लिए कर्मचारियों और बैंकों की देनदारी चुकानी पड़ेगी

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Published By Om Parkash chaubey
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1432 कर्मचारियों की देनदारी में 400 करोड़ का है दावा, लेकिन इससे कम ही मिलेगा, ऑफिशियल लिक्विडेटर मूल वेतन और महंगाई भत्ते के अनुसार ही देनदारी देने को स्पष्ट कर चुका है

बरेली, अमृत विचार: डीआरटी मुंबई का आदेश रद्द होने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अब रबर फैक्ट्री की बेशकीमती जमीन से अलकेमिस्ट का अधिकार खत्म हाे गया। बाॅम्बे हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में अब राज्य सरकार को जमीन पर मालिकाना हक लेने के लिए पहले कर्मचारियों और विभिन्न बैंकों की देनदारी देनी पड़ेगी। ऐसा जानकार कह रहे हैं।

इसके साथ ही राज्य सरकार को देनदारी चुकाने के संबंध में हाईकोर्ट में शपत्रपत्र देना भी पड़ेगा। इसके बाद कहीं सरकार काे जमीन मिलेगी। इस केस में कर्मचारियों की ओर से सशक्त पैरवी करने वाले श्रमिक नेता अशोक कुमार मिश्रा ने बताया कि उन्होंने 1432 कर्मचारियों की मूल वेतन और महंगाई भत्ता समेत अन्य भत्तों की मांग करते हुए करीब 400 करोड़ रुपये की देनदारी का हिसाब ऑफिशियल लिक्विडेटर काे दिया था, लेकिन ऑफिशियल लिक्विडेटर ने यह पहले स्पष्ट कर दिया था कि कर्मचारियों को सिर्फ मूल वेतन और महंगाई भत्ते की ही देनदारी मिलेगी।

ऑफिशियल लिक्विडेटर के अनुसार करीब सवा दो सौ करोड़ रुपये की देनदारी बनेगी, जो कर्मचारियों को उनके मूल वेतन व महंगाई भत्ते के हिसाब से जारी की जाएगी। इस देनदारी को चुकाने के संबंध में राज्य सरकार को लिखित रूप से शपथ पत्र भी देना होगा। वहीं, 24 साल पहले रबर फैक्ट्री होने के दौरान विभिन्न बैंकों का भी 175 करोड़ रुपये की देनदारी फैक्ट्री प्रबंधन पर थी।

15 जनवरी को ऑफिशियल लिक्विडेटर 1432 कर्मचारियों के डाटा को सही मान चुके हैं: ऑफिशियल लिक्विडेटर बाम्बे हाईकोर्ट 1432 कर्मचारियों के डाटा को 15 जनवरी को ही सही मान चुका है। रबर फैक्ट्री कर्मचारियों की तरफ से यूनियन महामंत्री अशोक मिश्रा एवं प्रमोद व यूनियन के एडवोकेट एकेएस लीगल कंसलटेंट के अकबर नेहाल रिजवी और मोहम्मद सत्तार ने कड़ी पैरवी की थी।

कर्मचारियों की ओर से अशोक मिश्रा ने रबड़ फैक्ट्री कंपनी के ओरिजिनल सेलरी रजिस्टर (जो 15 जुलाई 1999 को ऑन रोल है) को पेश किया। मूल निवास के साथ नियुक्ति प्रमाणपत्र के साक्ष्यों को भी स्पष्ट किया।

सभी 1432 कर्मचारियों के नियुक्ति पत्र के संबंध में रीजनल प्रोविडेंट फंड कमिश्नर बरेली से सत्यापित कापी भी ऑफिशियल लिक्विडेटर को उपलब्ध कराई थी। सभी कर्मचारियों की इम्पलाइमेंट नंबर के साथ भविष्य निधि खाते का विवरण भी दिया। इन्ही साक्ष्यों को ऑफिशियल लिक्विडेटर ने सही बताते हुए संपूर्ण रिपोर्ट हाईकोर्ट में प्रस्तुत की थी।

18 सौ करोड़... दरअसल, लंबे समय से बंद सुनवाई दो फरवरी 2023 से शुरू हुई थी। इसके बाद 15 फरवरी की तारीख लगी। उस दिन सुनवाई नहीं होने पर 16 फरवरी की तारीख लगी थी। उस दिन सुनवाई न होकर फिर 17 फरवरी को सुनवाई हुई थी। 22 फरवरी की तारीख लगी थी। इसी तारीख में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। इसके बाद जून माह में पहले 6, फिर 12 तारीख लगी थी। 22 को सुनवाई के बाद बाद 28 जून को फैसले की तारीख दी गई थी।

1960 में स्थापित हुई फैक्ट्री 15 जुलाई 1999 में अचानक बंद हो गई थी: फतेहगंज पश्चिमी में रबर फैक्ट्री के लिए 1960 के दशक में मुंबई के सेठ किलाचंद को 1382.23 एकड़ जमीन राज्य सरकार ने उपलब्ध करायी थी। तत्कालीन राज्य सरकार ने 3.40 लाख रुपये लेकर जमीन लीज पर दी थी।

जो लीज डीड बनी थी, उसमें यह शर्त शामिल की थी कि जब फैक्ट्री बंद होगी, तब सरकार जमीन वापस ले लेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया था। यह फैक्ट्री 15 जुलाई 1999 को बंद हो गई थी।

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