सुलतानपुर: जब रात के अंधेरे में सुख-सुविधा छोड़कर दो किशोर निकल गए अयोध्या, सात दिन तक रहे भूखे, विजय मिली तभी लौटे!

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Published By Sachin Sharma
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स्थानीय लोगों ने कराया था कारसेवकों को भोजन व जलपान

अजय कुमार पांडेय, सुलतानपुर। 90 के दशक में जब विश्व हिन्दू परिषद के आवाहन पर विभिन्न प्रदेशों के लोग अयोध्या पहुंचने लगे। घबरा कर स्थानीय पुलिस ने सड़कों पर घेराबंदी करनी शुरु कर दी। स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें पुलिस से बचा घर पर भोजन करवा रहे थे। लोगों का राम के प्रति लगाव देख स्थानीय किशोर भी घर की सुख सुविधा छोड़ राम काज में रात के अंधेरे में घर छोड़ भागे। विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद ही घर लौटे थे।

कार सेवा के दौरान जयसिंहपुर तहसील क्षेत्र के कूरेभार विकास खंड अन्तर्गत बझना गांव निवासी एडवोकेट शेष नारायण पांडेय के बड़े पुत्र पूरन चंद्र पांडेय, कालिका प्रसाद पांडेय के पुत्र करुणा शंकर पांडेय भी घर की सुख सुविधा छोड़ रात के अंधेरे में बिना घर वालो बताएं राम काज के लिए अयोध्या निकल गए। सुबह होने पर परिजनों को दोनो किशोर गायब मिले तो ढूंढने निकले  पता चला कि दोनो कार सेवा में निकल गए हैं।

करीब सप्ताह भर भूखे प्यासे दोनो किशोर तब घर वापस लौटे जब विवादित ढांचे को गिराया जा चुका था। कार सेवक पूरन चंद्र पांडेय की करीब 5साल पहले आकस्मिक मौत हो चुकी है। लेकिन दूसरे साथी करुणा शंकर पांडेय ने बताते कि हम दोनो रात में जब घर वाले सो गए तो चुपचाप घर से निकल गए थे। रात भर पैदल यात्रा के बाद हम दोनों  अजना में रुके। दिन में चलना मुश्किल था क्योंकि पुलिस चारो तरफ गस्त कर रही थी। खेत खलिहान के रास्ते दूसरे दिन अयोध्या पहुंचने में सफल रहे। जब विवादित ढांचे को गिरा दिया गया तो हम लोग घर वापस लौटे थे। एक बार तो ऐसा लगा कि अब गोली लग जाएगी लेकिन कुछ देर बाद गोली चलनी बंद हो गई थी। जिससे हम लोग सुरक्षित बच गए थे।

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करुणा शंकर पांडेय पूर्व में ला चुके थे अयोध्या से ज्योति

विवादित ढांचे को गिराए जाने से पूर्व अयोध्या से दिव्य ज्योति गांव गांव आ रही थी। जिसमें करुणा शंकर पांडेय अयोध्या से पैदल दिव्य ज्योति गांव लाए थे। जहां से क्षेत्र के दर्जनों गांवों में दिव्य ज्योति पहुंची थी। करुणा शंकर पांडेय बताते हैं कि पुलिस को जब पता चला कि दिव्य ज्योति घर लाएं है तो पुलिस ने पकड़ने का प्रयास किया। सप्ताह भर घर के बजाय जंगल में रात गुजारनी पड़ी थी। उसी दिव्य ज्योति से उस वर्ष हर गांव में दीपावली मनाई गई थी।

ग्रामीणों ने खूब सेवा की थी कार सेवकों की

बताते चलें कि उस दौरान बझना गांव के पीछे से अयोध्या पहुंचने के लिए सुरक्षित स्थान माना जाता था। क्योंकि गांव के उत्तर तरफ तालाब व खेत खलिहान ही थे। जो सीधे अयोध्या ज़िले को जोड़ते थे। विभिन्न प्रदेशों के आए लोग दिन भर गावों में पुलिस के चलते शरण लेते खाते आराम करते। रात होने पर स्थानीय लोगो द्वारा कार सेवकों को अयोध्या ज़िले की सीमा तक छोड़ आते। कही लाई चना, तो कही गन्ने का रस भी स्थानीय लोगो को पिलाया जाता था। उस समय के अधिकांश लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन जो अभी जीवित है राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उत्साह से भरे हैं।

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