Kanpur News: सीएसए में आलू की फसल पैदावार बढ़ाने पर दिया गया जोर; कम लागत पर बीज उपलब्धता के लिए होंगे नए शोध..
कानपुर में सीएसए यूनिवर्सिट में आलू की फसल पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया गया है।
कानपुर में सीएसए यूनिवर्सिट में आलू की फसल पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया गया है। देश में आलू उत्पादन की कुल क्षमता का मात्र एक चौथाई उत्पादन हो रहा है।
कानपुर, अमृत विचार। आलू एक अद्भुत फसल है जो वैश्विक दृष्टिकोण से कुल उत्पादन के मामले में चावल एवं गेहूं के बाद तीसरे स्थान पर है। देश में उगाई जाने वाली प्रमुख वाणिज्यिक फसलों में से एक है। उत्तर प्रदेश के बहुत से जिलों की आर्थिक स्थिति आलू उत्पादन पर निर्भर करती है।
आलू का पौधा 120 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन करने में सक्षम है लेकिन प्रतिकूलता के कारण प्रदेश के अधिकांश जिलों में आलू की उत्पादकता लगभग 30 टन प्रति हेक्टेयर ही है। ये बाते मंगलवार को सीएसए के सब्जी विज्ञान विभाग में डॉ. बृजेश सिंह ने कहीं। वे आलू उत्पादन पर एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण गोष्ठी में शिमला से आए थे।
मुख्य अतिथि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डॉ. बृजेश सिंह ने बताया कि आलू की उत्पादकता बढ़ाने के लिए केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला निरंतर ऐसी प्रजातियों का विकास कर रहा है जो कम लागत में अधिक उत्पादन दे सकें, जिनका स्वाद भी अच्छा हो। जिसमें कीट एवं रोग के प्रति सहनशील क्षमता हो।
उन्होंने कहा कि आलू के बीज की उपलब्धता कम है इसलिए सीड प्लॉट टेक्निक को अपनाकर किसान आलू बीज की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं। कहा कि आलू के चिप्सोना वर्ग की प्रजातियां की बुवाई करें। आलू के लिए पछेती झुलसा एक घातक बीमारी है जिस पर सुरक्षात्मक छिड़काव बहुत प्रभावकारी है।
अटारी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राघवेंद्र सिंह ने आलू फसल में खरपतवार प्रबंधन पर जानकारी देते हुए कहा कि आलू के खेत में फ्लैट फैन या फ्लैट जेट वाले नोजल स्प्रेयर से मेट्रीब्यूजिन की 500 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
बीज लागत कम करना जरूरी
निदेशक शोध डॉ. पीके सिंह ने बताया कि आलू में 40 से 50 प्रतिशत लागत अकेले बीज पर आती है जिसको कम करने की आवश्यकता है, जिसके लिए नवीन शोध किया जाए। इस अवसर पर सब्जी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. आरबी सिंह के साथ-साथ डॉ. राजीव, डॉ. इंद्रपाल सिंह, डॉ. शशिकांत, डॉ. संजीव कुमार सिंह, डॉ. अजय कुमार यादव आदि वैज्ञानिकों ने भी अपने विचार रखे। औरैया व कानपुर देहात के 100 से अधिक किसानों ने प्रतिभाग किया।
