गोंडा: पपीते के साथ खरबूजे की खेती कर कमाया डेढ़ लाख का मुनाफा, नौकरी छोड़ खेती में किस्मत आजमा रहे इंजीनियर मान बहादुर सिंह

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Published By Deepak Mishra
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राज शुक्ला/मनकापुर/गोंडा,अमृत विचार। कहते हैं कि लगन और मेहनत के साथ कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो सफलता कदम चूमती है। कुछ ऐसा ही कर रहे हैं मनकापुर के इंजीनियर मान बहादुर सिंह जो नौकरी छोड़कर खेती में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मान बहादुर ने पिछले वर्ष महज आधे एकड़‌ जमीन पर पपीते के साथ खरबूजे की खेती कर सवा लाख रुपये का मुनाफा कमाया है। उनकी खेती उन लोगों के लिए मिसाल है जो खेती को घाटे का सौदा मानते हैं। इसी जुनून की बदौलत आज मान बहादुर की गिनती क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों में होती है। 

मनकापुर तहसील क्षेत्र के ग्राम पचपुती जगतापुर के रहने वाले मान बहादुर सिंह चार भाइयों में दूसरे नंबर पर हैं। मान बहादुर बताते हैं कि उन्हें खेती का बचपन से शौक था। उन्होंने वर्ष 1989 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की थी। इंजीनियरिंग करने के बाद 1992 तक मनकापुर स्थित आईटीआई फैक्ट्री में नौकरी भी की, लेकिन खेती के शौक के कारण उनका नौकरी से जल्दी ही मोहभंग हो गया। वह नौकरी छोड़कर खेती में जुट गए। तब से वह परंपरागत खेती से हटकर व्यावसायिक खेती कर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे है।

मान बहादुर ने पिछले वर्ष मार्च में आधे एकड़ जमीन में पपीता लगाया था। बेहतर पैदावार के लिए उन्होने रेड लेडी प्रजाति के पौधों की रोपाई की थी‌ पौधों की रोपाई करते वक्त उनके बीच 6 फिट की दूरी रखी गयी। इसके अलावा पंक्तियों के बीत की दूरी करीब 8 फिट रखी गयी। पौध रोपाई के समय 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद प्रति पौधा के साथ यूरिया, डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट एवं म्यूरेट आफ पोटाश का प्रयोग किया गया।

रोपाई के समय पपीते की दो पंक्तियों के बीच खाली जगह में सहफसली के रूप में खरबूजा लगाया। तीन महीने के भीतर खरबूजे की फसल तैयार हो गयी। मान बहादुर ने बताया कि तीन महीने में करीब 50 क्विंटल खरबूजा तैयार हुआ और इससे करीब 1.25 लाख रुपये की आय हुई। वहीं पपीते के पौधे में भी सितंबर महीने से फल लगना प्रारंभ हो गया।

जनवरी महीने तक वह करीब 15 क्विंटल पपीता बेंच चुके हैं। इससे उन्हे 45 हजार रुपये की आय हुई है। मान बहादुर ने बताया कि उन्होंने कुल 50 हजार रुपये की पूंजी लगायी थी। पूंजी काटकर अब तक वह 1.25 लाख रुपया मुनाफा कमा चुके हैं। मान बहादुर कहते हैं कि पपीते की फसल से 3 वर्ष तक लगातार फल प्राप्त किये जा सकते हैं।उन्होने बताया कि इस हिसाब से एक एकड़ की पपीते और खरबूजे की सहफसली वाली खेती से एक साल में सवा तीन लाख रुपये की आमदनी की जा सकती है। 

बाराबंकी में पपीते की खेती देखकर मिली प्रेरणा

मान बहादुर सिंह ने बताया कि वह इसके पहले कांद (सूरन) की खेती कर रहे थे। इसी बीच वह अपने परिचित और उन्नतशील किसान  प्रवीन सिंह के साथ बाराबंकी गए थे। वहां उन्होने पपीते और खरबूजे की खेती देखी। इसके बाद उन्होंने इसकी खेती करने का निश्चय किया। उनके साथ गांव के ही रामकुमार सिंह भी थे। दोनो ने एक साथ फसलों को लगाया था और अच्छा मुनाफ़ा प्राप्त किया। 

कब्ज और बवासीर जैसे रोगों में है लाभकारी

अमृत विचार: पपीते का फल कब्ज और बवासीर जैसे रोगों के लिये रामबाण की तरह है। इसके फल में विटामिन ए तथा विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। इसके नियमित सेवन से कब्ज एवं बवासीर जैसे रोग की समस्या से छुटकारा मिल जाता है। इसके कच्चे फलों से रस निकालकर पेपेन नामक पदार्थ बनाया जात है। पेपेन का प्रयोग अल्सर आदि बीमारियों के नियंत्रण में किया जाता है। पपीता के कच्चे फलों का प्रयोग सलाद एवं सब्जी में तथा पके फलों का प्रयोग खाने में किया जाता है।

सहफसली खेती लाभकारी - डा रामलखन

कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक शस्य विज्ञान डा राम लखन सिंह ने भी मान बहादुर की लगन को सराहा है। उन्होने  मौके पर जाकर फसल को देखा और मान बहादुर की सराहना की। डा राम लखन ने बताया कि पपीते की उन्नतशील प्रजातियों में रेड लेडी, रांची, कुर्ग हनीड्यू, पूसा डेलीशियस, पूसा ड्वार्फ आदि तथा संकर प्रजातियों में माधुरी, विनायक तथा मधुबाला आदि मुख्य हैं। इसकी बुवाई में प्रति एकड़ 200 ग्राम बीज की जरूरत होती है। पपीता व खरबूजा की सहफसली खेती अपनाकर किसान भाई मालामाल हो सकते हैं।

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