सेवा न करने पर वेतन का हकदार नहीं कर्मचारी :हाई कोर्ट
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बकाया वेतन भुगतान और वरिष्ठता सहित अन्य परिणामी लाभों के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि हमारे देश में रोजगार के अवसर एक दुर्लभ वस्तु है। प्रत्येक विज्ञापन सीमित संख्या की रिक्तियों के लिए बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को आमंत्रित करता है। ऐसे में किसी उम्मीदवार की पात्रता उपयुक्तता के बावजूद केवल साख के आधार पर रद्द कर दी जाए तो यह उचित नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को सुधार करने, अतीत से सीखने और अपने जीवन में आगे बढ़ने का अवसर मिलना चाहिए। पिछले आचरण को उम्मीदवार की गर्दन पर बोझ बनाना न्यायसंगत नहीं है।
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि केवल झूठी जानकारी को दबाने से इस तथ्य की परवाह किए बिना कि दोषमुक्ति दर्ज की जा चुकी है, कर्मचारी की भर्ती को समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि कर्मचारी उस अवधि के लिए वेतन के किसी भी बकाया का हकदार नहीं है, जिसके दौरान उसने सेवा नहीं की है। इस आधार पर कैट ने वर्तमान मामले से संबंधित याचिकाओं को खारिज कर दिया था, क्योंकि याची रेलवे भर्ती बोर्ड द्वारा जारी विज्ञापन के अनुसार जूनियर इंजीनियर-II(टेली) के पद पर नियुक्त हुआ था। नौकरी में शामिल होने के बाद पता चला कि उसने अपने सत्यापन फार्म में तथ्य छिपाए थे। इसके लिए याची को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।
हालांकि याची ने नोटिस का जवाब दिया, लेकिन प्रतिवादियों द्वारा याची की नियुक्ति रद्द कर दी गई, जिस पर आपत्ति जताते हुए याची ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन दाखिल किया कि उसे बकाया वेतन और वरिष्ठता सहित अन्य परिणामी लाभ प्रदान किए जाएं, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। उक्त आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने रवेंद्र सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
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