हल्द्वानी: 24 साल में उत्तराखंड से गायब हो गई 2 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि

हल्द्वानी: 24 साल में उत्तराखंड से गायब हो गई 2 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि

सर्वेश तिवारी, हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव और आरोप-प्रत्यारोप के शोर में खेती-किसानी का मुद्दा गुम है। जिस उत्तराखंड राज्य में 70 फीसदी से अधिक भू-भाग वन क्षेत्र हो और खेती के लिए बेहद सीमित भूमि बची हो, वहां खेती-किसानी का छूटना न सिर्फ चिंताजनक है बल्कि भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।
 
संकट उस सूरत में और भी भयावह दिखता है जब यह तथ्य सामने आता है कि राज्य गठन बाद से अब तक दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि कम हो गई है। लोकसभा चुनाव में खेती और किसानी बेशक राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख मुद्दा न हो, लेकिन उत्तराखंड के ग्रामीण और किसान के लिए छूटती खेती परेशानी का सबसे बड़ा सबब है। 
    
राज्य गठन के समय उत्तराखंड में कृषि का क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था, जो 24 सालों में घट कर 5.68 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है। हर चुनाव में खेती किसानी और कास्तकार के आमदनी बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल मुद्दे बनाते हैं, लेकिन ये चुनावी वादे राज्य में खेती किसानी की तस्वीर नहीं बदल पाई है।
 
हालांकि इस बार ये मुद्दा लोकसभा चुनाव से गायब है। हकीकत यह है कि खेती का रकबा साल दर साल घट रहा है। जंगली जानवरों की समस्या, सिंचाई सुविधा का अभाव, बिखरी कृषि जोत के कारण लोग न सिर्फ खेती छोड़ रहे हैं, बल्कि पलायन की भी यह मुख्य वजह है।किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकारें योजनाओं का मरहम तो लगा रही हैं फिर भी उत्तराखंड में उपजाऊ भूमि बंजर होती जा रही है। खासतौर पर राज्य के पर्वतीय इलाकों में कभी मंडुवा, झंगोरा, लाल चावल, राजमा, मटर की खेती से हरे-भरे रहने वाले खेत आज उजाड़ हो चुके हैं। 
 
1962 से आज तक नहीं हो पाई बंदोबस्ती
हल्द्वानी : पर्वतीय क्षेत्रों में बिखरी कृषि जोत सबसे बड़ी परेशानी है। वर्ष 1962 से आज तक जमीनों का बंदोबस्त नहीं हुआ। एक खेत पहाड़ के इस पार तो दूसरा खेत दूसरी ओर है। जिससे खेतीबाड़ी में मेहनत तो ज्यादा लगती है और फसलों की रखवाली भी नहीं हो पाती। इसे देखते हुए सरकारों ने चकबंदी की पहल थी, लेकिन पहल अंजाम तक नहीं पहुंच पाई।
 
बारिश पर निर्भर पहाड़ का कास्तकार
प्रदेश के कुल कृषि क्षेत्रफल का 49.55 प्रतिशत पर्वतीय क्षेत्र में आता है। जबकि 50.45 प्रतिशत मैदानी व तराई का क्षेत्र है। पर्वतीय क्षेत्रों में मात्र 12.06 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा है। किसानों को फसलों की पैदावार के लिए बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है। समय पर बारिश नहीं हुई तो किसानों को मेहनत के बराबर भी उपज हाथ नहीं लगती है।
 
24 साल में घटकर आधा हुआ मंडुवा का क्षेत्रफल 
हल्द्वानी : राज्य के मोटे अनाजों को श्री अन्य योजना से बाजार तो मिला, लेकिन जोत आधी रह गई। मंडुवा, झंगोरा, चौलाई, राजमा, गहथ, काला भट्ट परंपरागत फसलें है। श्री अन्न योजना से मोटे अनाज की मांग तो बढ़ी, लेकिन पैदावार घटती गई। राज्य गठन के बाद मंडुवा का क्षेत्रफल आधा हो गया है। 2001-02 में प्रदेश में मंडुवे का क्षेत्रफल 1.32 लाख हेक्टेयर था। जो 2023-24 में घट कर 70 हजार हेक्टेयर रह गया।
 
30 फीसद से ज्यादा नुकसान पर ही मुआवजा
हल्द्वानी : मौसम या फिर अन्य प्राकृतिक आपदाओं की वजह से हर साल फसलें बर्बाद होती हैं। फसल बीमा योजना के तहत मानकों के अनुसार 33 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर ही मुआवजा दिया जाता है। यानी नुकसान का प्रतिशत इससे कम है तो मुआवजा नहीं दिया जाता। 2023-24 में 86,376 किसानों ने फसल बीमा कराया है। जिसमें कुल 23,712 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र शामिल है।
 
प्रदेश में फसलों का क्षेत्रफल व उत्पादन
फसल क्षेत्रफल हेक्टेयर में उत्पादन मीट्रिक टन में
धान     2,20,637       5,45,544
मक्का   16,657           40,554
मंडुवा   68,806          10,1058
गेहूं       2,70,000       8,19,207
झंगोरा   35,181            54,479
चौलाई    5,058              5,968
दालें      53,423            50,008