बरेली के वोटरों को निर्दलीय नापसंद हैं...1967 में इतने वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे आरआर खान

इसके बाद किसी का वोट प्रतिशत नहीं पार कर पाया दहाई का आंकड़ा

बरेली के वोटरों को निर्दलीय नापसंद हैं...1967 में इतने वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे आरआर खान

अनुपम सिंह/बरेली,अमृत विचार। बरेली के 72 साल के चुनावी इतिहास में कुल 123 निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे लेकिन मतदाताओं के दिल में एक भी उतर नहीं पाया। इस अवधि में हुए 17 चुनावों में कोई निर्दलीय कभी दूसरे नंबर पर भी नहीं पहुंच पाया। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सबसे ज्यादा वोट पाने का रिकॉर्ड आरआर खान के नाम दर्ज है जो 1967 के चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे। बरेली का चुनावी इतिहास यह भी बताता है कि आरआर खान के अलावा किसी निर्दलीय उम्मीवार का वोट प्रतिशत दहाई के अंक तक भी नहीं पहुंचा।

बरेली में 1952 और 1957 में हुए पहले दो चुनाव में सतीश चंद्र चुने गए थे। इन दोनों चुनावों में कोई निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरा। 1962 के चुनाव मैदान में उतरे सात प्रत्याशियों में पहली बार दो निर्दलीय थे। इस चुनाव में जनसंघ के ब्रजराज सिंह जीते थे। दोनों निर्दलीय उम्मीदवारों को कुल मिलाकर 8.5 फीसदी वोट मिले थे। इसके बाद 1967 के चुनाव के भी पांच प्रत्याशियों में से दो निर्दलीय थे। इनमें से आरआर खान 69,399 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। यह कुल वोटों का 24.4 फीसदी हिस्सा था। इस चुनाव में भी जनसंघ के ब्रजभूषण लाल 112698 वोट पाकर चुने गए। कांग्रेस प्रत्याशी सतीश चंद्रा 72050 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे।

इसके बाद 1971 में हुए चुनाव के पांच प्रत्याशियों में भी दो निर्दलीय थे। इसमें 115495 वोट पाकर सतीश चंद्र तीसरी बार सांसद बने। दोनों निर्दलीय प्रत्याशियों को कुल मिलाकर 4.7 प्रतिशत वोट ही मिले। 1977 के चुनाव में भी चार में से दो निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे। इस बार दोनों निर्दलीय उम्मीदवारों को और कम वोट मिले और उनका कुल मत प्रतिशत 1.6 ही रहा। इसके बावजूद 1980 में बरेली के चुनाव मैदान में 15 निर्दलीय प्रत्याशी उतर पड़े। दलीय प्रत्याशियों की संख्या पांच ही थी। जनता पार्टी के मिसरयार खान 75448 वोट पाकर सांसद बने। निर्दलियों में सबसे ज्यादा 3.2 प्रतिशत वोट गुलाब प्रसाद को मिला था।

इसके बावजूद 1984 में भी कुल 17 प्रत्याशियों में से 14 निर्दलीय और तीन दलीय थे। इसमें 156904 वोट पाकर आबिदा अहमद सांसद बनीं, निर्दलियों में सबसे ज्यादा 2.0 प्रतिशत वोट डाल चंद्र झा को मिले। बाकी सभी उनसे भी काफी पीछे रहे। 1989 में 15 प्रत्याशियों में से 7 निर्दलीय थे। इसमें संतोष गंगवार 159502 वोट पाकर सांसद बने। निर्दलियों में रजा खान को 5.2 प्रतिशत वोट मिले। 1991 में 25 प्रत्याशियों में 19 निर्दलीय मैदान में थे। इस बार कोई निर्दल प्रत्याशी एक प्रतिशत भी वोट नहीं पा सका। 1996 में 36 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा जिसमें सर्वाधिक 29 उम्मीदवार निर्दलीय थे।

इस चुनाव में भी किसी निर्दलीय को एक फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिला। 1998 में 12 में से छह प्रत्याशी निर्दलीय थे। इस बार भी किसी को एक फीसदी वोट तक नहीं मिल पाया। 1999 में नौ प्रत्याशियों में 4 चार निर्दलीय, 2004 में 15 प्रत्याशियों में 8 निर्दलीय, 2009 में आठ उम्मीदवारों में 2 निर्दलीय, 2014 में 14 प्रत्याशियों में 6 निर्दलीय और 2019 में 16 उम्मीदवारों में 5 निर्दलीय उतरे, मगर कोई भी एक-डेढ़ फीसदी से ज्यादा वोट नहीं ले सका।

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