Wayanad Crisis: केरल की महिला एम्बुलेंस चालक ने अपने दुखों को भुलाकर वायनाड पीड़ितों की सेवा रखी जारी

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Published By Deepak Mishra
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वायनाड। केरल के वायनाड जिले में हुए विनाशकारी भूस्खलन के बाद महिला एम्बुलेंस चालक दीपा जोसेफ लगातार आपदा क्षेत्र से घायलों को अस्पताल और मृतकों को मुर्दाघरों में पहुंचाती रहीं और इस दौरान उन्होंने अपने जीवन में घट चुकी एक त्रासदी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। 

केरल की पहली महिला एम्बुलेंस चालक दीपा एक मजबूत महिला हैं। वह मेप्पाडी के अस्थायी मुर्दाघर में मृतकों और मानव शरीर के अंगों को ले जाते समय देखे गए भयावह दृश्यों को याद करते हुए अपने आंसुओं को नहीं रोक पाती हैं। 

दीपा अपनी बेटी की रक्त कैंसर से मृत्यु हो जाने के बाद अवसाद में चली गईं थी, जिसके बाद उन्होंने एंबुलेंस चलाना बंद कर दिया था, लेकिन जब उन्हें वायनाड की स्थिति का पता चला तो वह अपने दुख को नजरअंदाज करते हुए कोझिकोड से यहां आ गईं। भूस्खलन के बाद अगले पांच दिनों में वह पूरी तरह बदल गईं। इस दौरान उन्हें यह एहसास हुआ कि जिस मनोस्थिति से वह गुजर रही हैं, उससे आसानी से निपटा जा सकता है। 

दीपा ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया, ''एक या दो दिन तक तो हमने ऐसे लोगों को देखा जो यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि उनके प्रियजन मर चुके हैं। अगले दिनों में भी वही लोग मुर्दाघर में आए और प्रार्थना करने लगे की बरामद शव उनके प्रियजनों के हों।" दीपा के सामने अगले कुछ दिनों तक दिल को झकझोर देने वाले दृश्य सामने आए, जिसमें कटे हुए हाथ-पैर और मानव शरीर इस तरह दब गये थे कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो गया। ऐसे में उन्हें अहसास हुआ कि वह अब इसे और सहन नहीं कर सकती। 

उन्होंने कहा, ''मैं साढ़े चार साल से एम्बुलेंस चालक के तौर पर काम कर रही हूं। मैंने कई दिन पुराने और बुरी तरह सड़ चुके शवों को भी पहुंचाया है। लेकिन वायनाड में रिश्तेदारों को अपने परिजनों के शवों की पहचान सिर्फ कटी हुई उंगली या कटे हुए अंग को देखकर करनी पड़ती थी। यह दर्द सहन कर पाने की क्षमता से कहीं ज्यादा अधिक था।"  

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