प्रयागराज : फास्टैग टोल प्लाजा नियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

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Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा 7 के प्रावधानों के तहत फास्टैग टोल प्लाजा नियम को वैध ठहराते हुए उक्त नियम के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने आगे कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग फीस (दरों का अवधारण और संग्रहण) नियम, 2008 के नियम 6 का उप-नियम (3) यह प्रावधान करता है कि फास्टैग नहीं लगे वाहनों के उपयोगकर्ता को उस श्रेणी के वाहनों पर लागू शुल्क के दोगुना शुल्क का भुगतान करना होगा।

केंद्र सरकार द्वारा डिजिटल मोड के माध्यम से भुगतान को बढ़ावा देने और टोल प्लाजा के माध्यम से एक निर्बाध मार्ग प्रदान करने के उद्देश्य से प्रावधानों और नियमों का निर्माण किया गया है। राष्ट्रीय राजमार्गों के तेजी से बदलते परिदृश्य को देखते हुए टोल प्लाजा के सभी लेन को फास्टैग लेने के रूप में घोषित करना और नीतिगत निर्णय के माध्यम से शुल्क का भुगतान फास्टैग के माध्यम से करना गलत नहीं माना जा सकता है। फास्टैग सुविधा के अभाव में यात्रियों को लंबे मार्गो से गुजरने के लिए एक विशेष टोल प्लाजा पर लंबे समय तक लाइनों में खड़ा होना पड़ता था। इसके अलावा कोर्ट ने याचिका के अन्य तथ्यों को खारिज करते हुए कहा कि रोड टैक्स और टोल शुल्क वसूलने का उद्देश्य और अधिकार एक-दूसरे से पूरी तरह से अलग हैं तथा विभिन्न कानून के तहत पोषित हैं।

वाहन के मूल्य के आधार पर शुल्क वसूलने के संबंध में दिया गया सुझाव भी उपरोक्त नियम, 2008 के नियम 4 के प्रावधानों के विपरीत है। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने विजय प्रताप सिंह की जनहित याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। दरअसल याची ने टोल प्लाजा पर सभी लेन को फास्टैग लेन के रूप में घोषित करने के मामले में विपक्षियों की कार्यवाही पूरी तरह से अनुचित और मनमानी बताई थी। याचिका में यह भी तर्क दिया गया था कि रोड टैक्स का भुगतान हो जाने के बाद किसी भी टोल शुल्क के भुगतान की मांग गलत है। याची ने संबंधित अधिनियम की धारा 7 के प्रावधानों की वैधता पर भी प्रश्न उठाया था। याचिका में दलील दी गई थी कि टोल प्लाजा की सभी लेन को फास्टैग लेन घोषित करना असंवैधानिक और मनमाना है, जिससे फास्टैग न लगाने पर दोगुना शुल्क वसूला जा रहा है।

याची ने दलील दी कि टोल वसूली और रोड टैक्स का भुगतान दोहरी कराधान है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा 7 और संबंधित नियम 2008 के प्रावधानों के तहत टोल शुल्क वसूला जाता है। कोर्ट ने प्रतिवादी के वकील प्रांजल मेहरोत्रा की दलील को मान्यता दी, जिसमें कहा गया था कि फास्टैग के माध्यम से टोल भुगतान की सुविधा यात्रियों के लिए फायदेमंद है और इसमें कोई असंवैधानिकता नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि रोड टैक्स और टोल शुल्क का उद्देश्य और अधिकार अलग-अलग हैं और एक दूसरे से स्वतंत्र हैं। याचिका में उठाई गई दलीलों का कोई ठोस आधार नहीं था, और इसलिए इसे खारिज कर दिया गया।

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